डोनाल्ड ट्रंप ने सात मुस्लिम देशों की अमेरिका में एंट्री बैन कर दी है. इन देशों के नाम यमन, सोमालिया, इराक, ईरान, सीरिया, सूडान, लीबिया है. ट्रंप के इस फैसले की मलाला युसुफजई और डोनाल्ड ट्रंप ने निंदा की है.
राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के बाद पहली बार पेंटागन पहुंचे ट्रंप ने इस आदेश पर हस्ताक्षर किए हैं. वहीं अफगानिस्तान, पाकिस्तान और सउदी अरब के लोगों के वीजा पर प्रतिबंध तो नहीं है लेकिन उन्हें कड़ी जांच का सामना करना पड़ेगा.
ट्रंप के इस आदेश के बाद कम से कम 120 दिनों तक अमेरिका में शरणार्थियों का प्रवेश निषेध रहेगा. साथ ही पुनर्वास भी फिलहाल रोक दिया जाएगा. नए अधिनियम में इस बात का पुख्ता इंतजाम किया गया है कि शरणार्थी अमेरिकी सुरक्षा के लिए खतरा न बनें.
मैं कट्टरपंथी इस्लामिक आतंकियों को अमेरिका से बाहर रखने के लिए कड़े जांच के नए नियम बना रहा हूं. हम उन्हें यहां देखना नहीं चाहते. हम यह तय करेंगे कि हम उन खतरों को अपने देश में न आने दें, जिनसे हमारे सैनिक विदेशों में लड़ रहे हैं. जो लोग हमारे देश को प्यार करेंगे केवल उन्हीं को हम यहां आने देंगे.डोनाल्ड ट्रंप, राष्ट्रपति, अमेरिका
मलाला युसुफजई ने विरोध जताया
शांति के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित मलाला यूसुफजई ने कहा कि वह शरणार्थियों को लेकर डोनाल्ड ट्रंप के आदेश से बेहद दुखी हैं. मलाला ने ट्रंप से अनुरोध किया कि वह दुनिया के सबसे असुरक्षित लोगों को अकेला ना छोड़ें.
मैं बहुत दुखी हूं कि अमेरिका शरणार्थियों और प्रवासियों का स्वागत करने के अपने गौरवशाली इतिहास को पीछे छोड़ रहा है. इन लोगों ने आपके देश को आगे ले जाने में मदद की और वे एक नई जिंदगी का सही मौका मिलने के बदले कड़ी मेहनत करने के लिए तैयार हैं. दुनिया में अनिश्चितता और अशांति के इस समय में, मैं राष्ट्रपति ट्रंप से अनुरोध करती हूं कि वह दुनिया के सबसे असहाय बच्चों और परिवारों से मुंह ना मोड़ें.मलाला युसुफजई
मलाला शांति के लिए नोबेल पुरस्कार पाने वाली सबसे कम उम्र की विजेता हैं. उन्हें भारत के कैलाश सत्यार्थी के साथ संयुक्त रुप से 2014 में यह पुरस्कार दिया गया था. मलाला अब इंग्लैंड में रहती हैं.
जकरबर्ग ने जताई चिंता
डोनाल्ड ट्रंप के बदले हुए फैसलों की आलोचना की. उन्होंने लिखा,
आप जैसे कई लोगों की तरह, मैं भी राष्ट्रपति ट्रंप के उन आदेशों के प्रभावों पर चिंतित हूं जिन पर उन्होंने हाल ही में दस्तखत किए हैं. हमें इस देेश कोे सुरक्षित रखने की जरुरत है, लेकिन हमें ऐसा उन लोगों का ध्यान रखना चाहिए जिनसे वाकई में खतरा है. हमेंं अपने दरवाजे शरणार्थियोंं के लिए खुले रखने चाहिए. यही हमारी पहचान है. अगर हमने कुछ दशक पहले शरणार्थियों से मुंह फेर लिया होता तो प्रेसिलिया का परिवार आज यहां नहीं होता.मार्क जकरबर्ग
जुकरबर्ग की पत्नी प्रेसिलिया का परिवार चीन और वियतनाम से आए हुए शरणार्थी हैं.
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