साहित्यिक संस्था रचयिता ने अपना पहला साहित्योत्सव गांधी शांति प्रतिष्ठान, नई दिल्ली में 31 अक्टूबर को मनाया. लॉकडाउन के बाद दिल्ली में सार्वजनिक मंचों पर होने वाला यह सबसे बड़ा साहित्योत्सव कार्यक्रमों में से एक था.
इस एकदिवसीय कार्यक्रम का आयोजन चार सत्रों में किया गया था. पहला सत्र पॉपुलर साहित्य, उसकी चुनौतियां और संभावनाओं पर था. इस सत्र के वक्ता नवीन चौधरी ने पॉपुलर साहित्य के अर्थ को स्पष्ट करते हुए कहा कि
पॉपुलर साहित्य वह साहित्य है जो लोकप्रिय है, जो लोगों से जुड़ा हुआ है.नवीन चौधरी, लेखक
शशिकांत मिश्र ने नई हिंदी पर बात करते हुए कहा कि आज की आलोचना नई हिंदी को नाट्यशास्त्र के पैमाने पर परखना चाहती है, जबकि नई हिंदी इसे तोड़ती है.
सत्र की वक्ता रहीं अणुशक्ति सिंह ने कहा कि
आज हम पॉपुलर कल्चर से अधिक वायरल कल्चर में जी रहे हैं.
'गांधी और टैगोर के शिक्षा चिंतन के आईने में आज का भारत'
दूसरा सत्र 'गांधी और टैगोर के शिक्षा चिंतन के आईने में आज का भारत' विषय पर रहा, जिसमें रामेश्वर राय ने अपने संवाद में कहा कि गांधी, टैगोर और टॉलस्टाय की बुनियादी चिंता यह थी कि हमारी शिक्षा का जीवन से कोई सम्बन्ध नहीं बन पा रहा है.
गांधी को उल्लेखित करते हुए उन्होंने कहा कि आपके ज्ञान की जवाबदेही आपके आचरण के प्रति भी है.
गरिमा श्रीवास्तव ने अपने संवाद में कहा कि शिक्षा पर व्यवस्थित ढंग से विचार करने वाले भारतीय टैगोर ही हैं. प्रवीण कुमार ने टैगोर के गोरा उपन्यास को उल्लेखित करते हुए कहा कि हमारी शिक्षा पद्धति में जो छेद है उसे गोरा उपन्यास हमारे सामने लाता है.
आलोचना की परंपरा और पक्षधरता
तीसरा सत्र, 'आलोचना की परंपरा और पक्षधरता' विषय पर था. इस सत्र में काफी गहमागहमी रही. सुजाता और राजीव रंजन गिरि के बीच सहमति-असहमति की लंबी बहस चली.
सुजाता ने अपने संवाद में कहा कि पाठक ही सबसे बड़ा आलोचक है और यह युग पाठकीय आलोचना का है.
चौथा सत्र और आखिरी सत्र काव्य पाठ का था, जिसमें हिंदी के बड़े और महत्वपूर्ण कवि विष्णु नागर, मदन कश्यप और कवयित्री रश्मि भारद्वाज और अनुपम सिंह ने अपनी कविताओं का पाठ कर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया.
गांधी शांति प्रतिष्ठान का भरा हुआ हॉल देखरकर इतना तो संतोष किया जा सकता है कि साहित्यिक का स्थान कोई हिला नहीं सकता. चारों सत्रों का संचालन- साक्षी जोशी, साहिल कैरो, असीम अग्रवाल और ताजवर बानो ने किया. धन्यवाद ज्ञापन लौह कुमार ने किया. कार्यक्रम के अंत में रचयिता के संस्थापक पीयूष पुष्पम ने सभी का धन्यवाद ज्ञापन कर रचयिता द्वारा पुनः इस तरह के साहित्यिक कार्यक्रमों को कराए जाने की बात की.
इस आयोजन में राजपाल और राजकमल की पुस्तक प्रदर्शनी भी लगी हुई थी जिसने पाठकों को अपनी ओर आकर्षित किया.
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