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‘कर्णावती’ बनने जा रहे अहमदाबाद शहर का है सदियों पुराना इतिहास

सत्ता और शासन तो पहले की तरह ही आते-जाते रहेंगे, लेकिन ऐतिहासिक अहमदाबाद हमेशा आबाद रहेगा.

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बीजेपी सरकार की ओर से देश में शहरों और रेलवे स्टेशनों के नामों को बदलने का सिलसिला जारी है. मुगलसराय, इलाहाबाद और फैजाबाद का नाम बदलने के बाद इस फेहरिस्त में अब गुजरात के प्रमुख औद्योगिक शहर अहमदाबाद का नाम भी शामिल होने वाला है.

बीती कई सदियों में सत्ता के तमाम सिंहासनों और इन पर बैठकर राज करने वाले कई शासकों के दौर को इस शहर ने अपने सामने बदलते हुए देखा है. इनमें भील राजा अशपाल, सोलंकी वंश के राजा कर्णदेव प्रथम, सुल्तान अहमद शाह, मुगल शासन, मराठा शासन और ब्रिटिश शासन शामिल हैं. तो आइए आपको अहमदाबाद के सदियों पुराने इतिहास से रूबरू करवाते हैं.

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11वीं से 13वीं शताब्दी

अहमदाबाद का इतिहास ग्यारहवीं शताब्दी में सोलंकी वंश के शासक राजा कर्णदेव-प्रथम के साथ शुरू होता है. उन्होंने भील राजा अशपाल (जिन्हें अशावल के नाम से भी जाना जाता है) के खिलाफ जंग लड़ा. कर्णदेव ने इस युद्ध में मिली जीत के बाद साबरमती नदी के किनारे कर्णावती नाम के एक शहर की स्थापना की. सोलंकी शासन तेरहवीं शताब्दी तक चला. इसके बाद गुजरात द्वारका के वाघेला वंश के नियंत्रण में आ गया. तेरहवीं शताब्दी के आखिर में गुजरात को दिल्ली की सल्तनत ने जीतकर अपने आधीन कर लिया.

कर्णावती के नजदीक बसा अहमदाबाद

अहमदाबाद को साबरमती की पूर्वी दिशा में राजा अशपाल की रियासत के नजदीक मौजूद बड़े मैदानी इलाके में बसाया गया था. तब इसका ज्यादा विस्तार नहीं हुआ था. इस इलाके को अब भद्र किला या भद्रगढ़ के तौर पर जाना जाता है. सन 1411 में तत्कालीन सुल्तान अहमद शाह ने कर्णावती के पास अहमदाबाद शहर को बसाया.

1487 में अहमद शाह के पोते महमूद बेगाड़ा ने शहर के चारों ओर बाहरी दीवार बनवाया और इसमें 12 द्वार, 189 बुर्ज और और 6,000 से ज्यादा जंग में मोर्चा लेने वाले चहारदीवारी बनवाए. शहर को प्राचीन इंडो-आर्य परंपरा के मुताबिक योजनागत तरीके से बनाया गया, जिसमें राजधानी की ओर जाने वाली मुख्य सड़कें, चौराहे और सहायक सड़कें बनाई गई थी.

गुजरात के सुल्तानों की देखरेख में अहमदाबाद शहर नदी के दोनों किनारों पर नए इलाकों और उपनगरों के साथ हर दिशा में विस्तार करता गया और धीरे-धीरे एक अच्छी तरह से बने शहर के तौर पर विकसित हुआ. इस विस्तार में रिहायशी और कारोबारी इलाके बनते गए, जिनमें महल, मकान, मकबरे, जलाशय, झीलों वाली मस्जिदें और बाग-बगीचे शामिल हैं. इन्हें सुल्तानों, उनके दरबारियों और राजधानी के अमीर व्यापारियों ने बनवाया.   

सम्राट अकबर के आधीन

ये शहर लगभग 162 सालों (सन 1411 से 1573) तक शाही राजधानी बना रहा. इसके बाद सुलतान मुजफ्फर-तृतीय के शासनकाल में गुजरात के स्वतंत्र सल्तनत का अंत हो गया. सुल्तान मुजफ्फर-तृतीय के शासनकाल के दौरान प्रांत में अराजकता का माहौल हो चुका था. मुगल सम्राट अकबर ने 1573 में गुजरात पर हमला कर प्रांत पर जीत हासिल की. हालांकि मुगल शासन के दौरान अहमदाबाद ने गुजरात की राजधानी के रूप में अपना महत्व खो दिया, लेकिन देश के प्रमुख व्यापारिक केंद्र और गुजरात के प्रमुख शहर के तौर पर अहमदाबाद का महत्व बरकरार रहा.

औरंगजेब के बाद

सम्राट औरंगजेब की सल्तनत के बाद वाले मुगल शासक कमजोर थे. मुगल वॉइसरॉय (सूबेदार) आपस में और मराठों के साथ लड़ने में मसरूफ रहते थे. नतीजतन देश में अव्यवस्था फैली और सन 1737 से 1753 तक अहमदाबाद पर मुगल वॉयसरॉय और पेशवा का संयुक्त शासन चला. 1753 में रघुनाथ राव और दामाजी गायकवाड़ की संयुक्त सेना ने गढ़ पर कब्जा कर अहमदाबाद में मुगल शासन का अंत किया.

पिछले साल यूनेस्को ने अहमदाबाद को ‘वर्ल्ड हेरिटेज सिटी’ यानी विश्व धरोहर शहर का दर्जा दिया है. दिलचस्प बात ये है कि अहमदाबाद ये अंतर्राष्ट्रीय दर्जा हासिल करने वाला देश का पहला शहर है. यहां कई ऐसे हिंदू और जैन मंदिर हैं, जिनकी हैरान करने वाली नक्काशियां पर्यटकों का मन मोह लेती हैं. इसके अलावा यहां के पुराने इमारतों, महलों, छोटे किलों, मस्जिदों और मकबरों की इंडो-इस्लामिक वास्तुकला भी बेमिसाल है.
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मराठा शासन

मराठा राज के दौरान, अहमदाबाद का शासन दो हिस्सों में बंटा हुआ था. एक पेशवाओं के हाथों में था, तो दूसरा गायकवाड़ों के हाथों में. इसमें पेशवा के क्षेत्राधिकार में ज्यादा बड़ा हिस्सा था. 64 सालों के मराठा शासन के दौरान अहमदाबाद की स्थिति बदतर होती गई. वजह थी पेशवाओं और गायकवाड़ों के बीच लगातार चलने वाला संघर्ष. 64- पेशावर और गायकवाड़ के बीच निरंतर संघर्ष. इस दौरान नगर की सड़कों, महलों, मकानों और चारों ओर से घिरे दीवारों को भी बहुत नुकसान पहुंचा.

ब्रिटिश राज

सन 1818 में जब ब्रिटेन की ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत पर कब्जा जमाया तो अहमदाबाद एक बार फिर प्रगति के रास्ते पर लौटने लगा. 1824 में एक वहां सैन्य छावनी बनाई गई. 1834 में एक म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन का गठन किया गया, और 1858 से नियमित तौर पर नगर निगम का प्रशासन शुरू किया गया.

1864 में बॉम्बे, बड़ौदा और मध्य भारत रेलवे की ओर से अहमदाबाद और बॉम्बे के बीच एक रेलवे लाइन बिछाई गई. इससे अहमदाबाद उत्तरी और दक्षिणी भारत के बीच यातायात और व्यापार के लिहाज से एक अहम जंक्शन बन गया. ग्रामीण इलाकों से बड़ी तादाद में लोग टेक्सटाइल मिलों में काम करने के लिए वहां आकर बस गए, और एक मजबूत उद्योग की स्थापना की.

लंबे अरसे से खराब शासन व्यवस्था की मार झेल रहे और अपनी पहचान खोते जा रहे अहमदाबाद को एक बार फिर तरक्की करने और जी उठने का मौका मिला.  

स्वाधीनता संग्राम

एक और शताब्दी के बाद, शहर की किस्मत ने आजादी के लिए देश के संघर्ष में एक अहम भूमिका निभाने के लिए अहमदाबाद को चुना. भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन ने शहर में मजबूत जड़ें विकसित की, जब 1915 में महात्मा गांधी ने यहां दो आश्रम बनाए. 1915 में पल्डी के पास कोचरब आश्रम और 1917 में साबरमती के तट पर सत्याग्रह आश्रम की स्थापना से ये शहर राष्ट्रवादी गतिविधियों का केंद्र बन गया. 1 मई 1960 को बॉम्बे के दो हिस्सों में बंटने के बाद अहमदाबाद गुजरात की राजधानी बन गया.

आज अहमदाबाद खूबसूरती और समृद्धि के लिहाज से एक अनोखा शहर है. ऐतिहासिक विरासत की नींव पर टिका एक जीवंत शहर. कला और उद्योग के बीच तालमेल के साथ अतीत के लिए सम्मान और भविष्य के लिए सपने संजोने वाला शहर.

अहमदाबाद का नाम भले ही बदला जा रहा हो, लेकिन इसकी खूबसूरती, उतार-चढ़ाव भरे इसके इतिहास और इसकी अहमियत को बदलना नामुमकिन है. सत्ता और शासन तो पहले की तरह ही आते-जाते रहेंगे, लेकिन ऐतिहासिक अहमदाबाद हमेशा आबाद रहेगा.

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