एक उपन्यासकार से लेकर फिल्म राइटर और टीवी जर्नलिस्ट तक, अगर एक शख्स ने इन भूमिकाओं को एक साथ बखूबी निभाया है तो वो कमलेश्वर हैं. उत्तर प्रदेश के मैनपुरी में जन्मे कमलेश्वर प्रसाद सक्सेना को बीसवीं सदी के सबसे करिश्माई हिंदी लेखकों में से एक समझा जाता है. कमलेश्वर ने लेखन के हर तरीके पर हाथ आजमाए और सभी में वो कामयाब भी रहे.
उन्होंने कहानी, उपन्यास, स्तंभ लेखन और फिल्म की कहानी जैसी अलग-अलग फॉर्मेट के लेखन को अंजाम दिया. कमलेश्वर ने मुंबई में फिल्मों की कहानी लिखने के अलावा टीवी पत्रकारिता भी की थी. इस दौरान ‘कामगार विश्व’ नाम के एक प्रोग्राम में उन्होंने गरीब और मजदूरों की दुनिया को सबके सामने रखा.
जन्म और करियर के शुरूआती दिन
कमलेश्वर का जन्म 6 जनवरी 1932 को यूपी के मैनपुरी में हुआ था. 1954 में उन्होंने अलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिंदी साहित्य में पोस्ट-ग्रेजुएशन की. कमलेश्वर की पहली कहानी ' कॉमरेड' 1948 में ही पब्लिश हो गई थी. अपने करियर की शुरूआत में कमलेश्वर ने प्रूफरीडर के तौर पर भी काम किया. आगे चल कर वो कई साहित्यिक मैगजीनों के एडिटर भी बने.
उपन्यास
कमलेश्वर ने एक सड़क सत्तावन गलियां, तीसरा आदमी, डाक बंगला, समुद्र में खोया हुआ आदमी, काली आंधी, आगामी अतीत, सुबह...दोपहर...शाम, रेगिस्तान, लौटे हुए मुसाफिर, वही बात, एक और चंद्रकांता, कितने पाकिस्तान और अंतिम सफर जैसे उपन्यास लिखे थे.
कहानियां
कमलेश्वर के नाम 300 से भी ज्यादा कहानियां दर्ज हैं. उनकी कुछ मशहूर रचनाओं में राजा निरबंसिया, मांस का दरिया, नीली झील, तलाश, बयान, नागमणि, जिंदा मुर्दे, जॉर्ज पंचम की नाक, मुर्दों की दुनिया, कस्बे का आदमी और स्मारक जैसी कहानियां शामिल हैं.
फिल्मों की पटकथाएं
कमलेश्वर ने उपन्यास और कहानियां लिखने के अलावा फिल्मों के लिए पटकथाएं भी लिखीं. `आंधी', 'मौसम (फिल्म)', 'सारा आकाश', 'रजनीगंधा', 'छोटी सी बात', 'मिस्टर नटवरलाल', 'सौतन', 'लैला', 'रामबलराम' जैसी फिल्मों की कहानियां कमलेश्वर की ही लेखनी का कमाल था. फिल्मों के साथ-साथ लोकप्रिय टीवी सीरियल 'चन्द्रकांता', 'दर्पण' और 'एक कहानी' जैसे सीरियल की कहानी लिखने का श्रेय भी उन्हें ही जाता है.
रचनात्मक लेखन के अलावा कमलेश्वर ने पत्रकारिता में भी खूब नाम कमाया था. उन्होंने नामी हिंदी अखबार दैनिक जागरण और दैनिक भास्कर में बतौर संपादक काम किया था.
उपन्यास 'कितने पाकिस्तान' के लिए कमलेश्वर को 2003 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया. 2005 में उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया गया. 2007 में 75 साल की उम्र में कमलेश्वर का फरीदाबाद में निधन हो गया लेकिन वो अपनी रचनाओं से आज भी हिंदी साहित्य और साहित्य प्रेमियों की दुनिया में जिंदा हैं.
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