उस के दुश्मन हैं बहुत आदमी अच्छा होगा... वो भी मेरी ही तरह शहर में तन्हा होगा
कहते हैं, कि सूरदास की एक कविता सुनकर निदा ने ये फैसला किया था कि वो भी शायर बनेंगे. लोग बताते हैं कि कॉलेज में निदा को अपने क्लास की एक लड़की से लगाव हो गया था. लेकिन एक दिन अचानक नोटिस बोर्ड पर उस लड़की की मौत की खबर से निदा विचलित हो गए. गम में डूबे निदा फाजली एक मंदिर के सामने से गुजर रहे थे. तभी उन्हें सूरदास की एक कविता सुनाई दी, कविता में राधा और कृष्ण के विरह का जिक्र था.
कविता सुन निदा इतने भावुक हुए कि उन्होंने ये फैसला कर लिया कि अब कविता और शायरी ही उनकी जिंदगी है. उर्दू का ये उम्दा फनकार अपनी कलम से समय-समय पर हिंदी सिनेमा में जान फूंकता रहा. बतौर, गीतकार निदा फाजली ने हिंदी सिनेमा को कुछ ऐसे सदाबहार गीत दिए हैं जो वक्त के साथ और गहराई से आपके जेहन में घुल जाते हैं.
दुश्मनी लाख सही खत्म न कीजे रिश्ता... दिल मिले या न मिले हाथ मिलाते रहिए
देश भर में कथित असहिष्णुता पर निजा फाजली ने कहा था कि ये महज 100 लोगों का खेल है.
अब खुशी है न कोई दर्द रुलाने वाला... हम ने अपना लिया हर रंग जमाने वाला
12 अक्टूबर 1938 को दिल्ली में जन्मे निदा फाजली को शायरी विरासत में मिली थी. उनके घर में उर्दू और फारसी के संग्रह भरे पड़े थे. पिता भी शेरो-शायरी में दिलचस्पी लिया करते थे और उनका अपना काव्य संग्रह भी था, जिसे निदा फाजली अक्सर पढ़ा करते थे.
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अपनी मर्जी से कहां अपने सफ़र के हम हैं... रुख हवाओं का जिधर का है उधर के हम हैं.
मुंबई की माया में निदा भी फंसे थे. मुंबई आए तो वही दर-दर की ठोकरें मिलीं. लेकिन उनके पास एक अलग स्टाइल था. गुरबत के दिनों में तो उन्होंने ‘धर्मयुग’ और ‘ब्लिटज’ जैसी पत्रिकाओं मे लिखना तक शुरू कर दिया था. अपने लेखन की अनूठी शैली से निदा फाजली कुछ ही समय में लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने में कामयाब हो गये.
कुछ भी बचा न कहने को हर बात हो गई... आओ कहीं शराब पिए रात हो गई
निदा फाजली, मीर और गालिब की रचनाओं से काफी प्रभावित थे. धीरे -धीरे उन्होंने उर्दू साहित्य की बंधी-बंधायी सीमाओं को तोड़ दिया और लेखनी का एक नया अंदाज लेकर आए. इस बीच निदा फाजली मुशायरों में भी हिस्सा लेते रहे जिससे उन्हें पूरे देश भर में शोहरत हासिल हुई.
दुनिया जिसे कहते हैं जादू का खिलौना है, मिल जाए तो मिट्टी है खो जाए तो सोना है
70 के दशक में मुंबई मे अपने बढ़ते खर्च को देखकर उन्होंने फिल्मों के लिये भी गीत लिखना शुरू कर दिया लेकिन फिल्मों की असफलता के बाद उन्हें अपना फिल्मी करियर डूबता नजर आया. फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और अपना संघर्ष जारी रखा. इंडस्ट्री ने उनके हुनर को पहचाना, उसकी कद्र की, लेकिन इन सब में 10 साल का वक्त बीत गया.
निदा फाजली को फिल्मों में पहली सफलता हाथ लगी साल 1981 में रिलीज हुई फिल्म ‘आहिस्ता-आहिस्ता’ के इस गाने से...
1980 में आई फिल्म ‘आप तो ऐसे न थे’ का ये गाना भी काफी मशहूर है...
और फिर सरफरोश का ये शानदार गीत निदा फाजली की कलम का ही कमाल था...
अब नीचे हमने जो पंक्तियां लगाई हैं उन्हें पढ़कर ही आपको ये अंदाजा हो जाएगा कि दुनिया उन्हें ‘महबूब शायर’ क्यों कहती थी.
वो शोख शोख नजर सांवली सी एक लड़की जो रोज मेरी गली से गुजर के जाती है
सुना है वो किसी लड़के से प्यार करती है, बहार हो के, तलाश-ए-बहार करती है
न कोई मेल न कोई लगाव है लेकिन न जाने क्यूं बस
उसी वक्त जब वो आती है कुछ इंतिजार की आदत सी हो गई है मुझे
साहित्यकार निदा की 24 किताबें प्रकाशित हैं, जिनमें कुछ उर्दू, कुछ हिंदी और कई गुजराती भाषा में हैं. उनकी कई रचनाएं महाराष्ट्र में स्कूली किताबों में शामिल हैं. उन्हें साल 1998 में साहित्य अकादमी पुरस्कार और 2013 में पद्मश्री पुरस्कार से नवाजा गया था.
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