पटौदी खानदान के सबसे छोटे नवाब तैमूर अली खान आजकल सुर्खियों में खूब छाए रहते हैं. ठीक उसी तरह, एक जमाना उनके दादा जनाब मंसूर अली खान पटौदी के नाम का हुआ करता था. भारतीय क्रिकेट टीम के सबसे कामयाब कप्तानों में से एक रहे पटौदी ने बेहद कम उम्र में एक आंख की रोशनी गंवा दी थी. लेकिन इस कमी को उन्होंने कभी अपने खेल पर हावी नहीं होने दिया. दुनिया जानती है कि वे कितने शानदार बल्लेबाज थे.
आइए उनकी जिंदगी से जुड़े कुछ खास किस्सों को ताजा करते हुए जानते हैं मंसूर अली खान पटौदी के ‘टाइगर पटौदी’ बनने का किस्सा और क्रिकेट की पिच से बॉलीवुड में मुहब्बत पनपने की कहानी.
क्रिकेट का कामयाब कप्तान 'टाइगर पटौदी'
5 जनवरी 1941 को भोपाल में जन्मे मंसूर अली खान पटौदी का नाम भारतीय क्रिकेट के सुनहरे पन्नों में दर्ज है. नवाब पटौदी को भारत के सफलतम कप्तानों में से एक माना जाता है. सौरव गांगुली और विराट कोहली को टीम इंडिया का सबसे आक्रामक कप्तान माना जाता है. लेकिन टीम इंडिया में आक्रामकता के साथ शुरुआत करने का श्रेय मंसूर अली खान पटौदी को जाता है.
महज 21 साल की उम्र में भारतीय टीम की कप्तानी संभालने वाले पटौदी ने टीम का मनोबल बदल कर रख दिया था. उन्होंने ही पहली बार टीम इंडिया को यह समझाया कि सिर्फ डिफेंस ही नहीं, ऑफेंस भी क्रिकेट का नियम है. टाइगर की अगुवाई में ही टीम इंडिया ने पहली बार साल 1967 में न्यूजीलैंड को टेस्ट सीरीज में उसकी ही धरती पर हराया था.
अपनी आत्मकथा ‘टाइगर्स टेल’ में मंसूर अली खान ने बताया- ‘क्रिकेट खेलना शुरू करने से पहले ही मुझे टाइगर का नाम मिल गया था. मैं नहीं जानता क्यों? शायद इसलिए कि मैं जब छोटा था तो फर्श पर टाइगर की तरह यहां-वहां घूमता रहता था.’
हादसा भी नहीं रोक पाया टाइगर की राह
टाइगर पटौदी ने इंटरनेशनल क्रिकेट करियर शुरू होने से पहले ही एक कार हादसे में अपनी दाईं आंख की रोशनी गंवा दी. हादसे के वक्त टाइगर पटौदी महज 20 साल के थे. उस दौरान वह ब्रिटेन में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ते थे और क्रिकेट खेलते थे. आंख की रोशनी गंवाने की वजह से उन्हें अपनी बल्लेबाजी का अंदाज भी बदलना पड़ा.
इंटरनेशनल क्रिकेट में डेब्यू से ठीक छह महीने पहले 1 जुलाई 1961 को पटौदी ब्रिटेन के होव में क्रिकेट खेल रहे थे. खेल के बाद टीम डिनर के लिए गई. डिनर के बाद महज 300 मीटर की दूरी पर उन्हें होटल आना था. लेकिन उन्होंने पैदल जाने के बजाय कार से जाने का फैसला किया. इसी दौरान एक हादसा हो गया. कार की टूटी विंडशील्ड का एक टुकड़ा उनकी आंख में जाकर लगा, जिसके बाद उनकी दाईं आंख की रोशनी चली गई. हालांकि, ऑपरेशन की मदद से उनकी दूसरी आंख बच गई.
इस एक्सीडेंट के बाद पटौदी को हर चीज की डबल इमेज दिखने लगी, जिसके बाद लोगों को लगा कि उनका क्रिकेट करियर शुरू होने से पहले ही खत्म हो गया. लेकिन एक्सीडेंट के छह महीने बाद दिसंबर 1961 में उन्होंने इंग्लैंड के खिलाफ अपना टेस्ट डेब्यू किया.
हादसे में आंख चली गई, लेकिन हौसला नहीं टूटा
पटौदी ने एक टीवी इंटरव्यू में कहा था कि इसी कार हादसे ने उन्हें मजबूत बनाया. और इसके पीछे सबसे बड़ी वजह थी उनकी लगन और बेजोड़ जुझारूपन. पटौदी ने अपनी बायोग्राफी में भी लिखा कि क्रिकेट खेलना तो दूर की बात थी, आंख गंवाने के बाद उन्हें गिलास में पानी डालने जैसी छोटी छोटी चीजों के लिए भी खासी मशक्कत करनी पड़ती थी.
लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी. अपनी मेहनत और लगन के बदौलत हादसे के छह महीने बाद ही उन्होंने टेस्ट क्रिकेट में डेब्यू किया. पटौदी ने अपने खेल में बदलाव किया, जिसकी बदौलत वह धीमी या तेज किसी भी गति के गेंदबाद का मुकाबला कर सकते थे. पटौदी सिर्फ एक आंख से वेस्ट इंडीज और इंग्लैंड के खतरनाक गेंदबाजों का आसानी से सामना करते थे.
8 फरवरी 1964 में दिल्ली में इंग्लैंड के खिलाफ खेली गई टेस्ट सीरीज में नवाब पटौदी ने दोहरा शतक जड़ा. इस मैच में उन्होंने 203 रन बनाए.
टाइगर ने अपने करियर में कुल 46 टेस्ट मैच खेले, जिनमें से 40 मैच उनकी कप्तानी में खेले गए. टाइगर ने अपने करियर में छह शतकों की मदद से कुल 2,793 रन बनाए.
मंसूर अली खान और शर्मिला टैगोर की मुहब्बत
मंसूर अली खान पटौदी के क्रिकेट करियर की कहानी जितनी रोचक है, उतना ही मजेदार है बॉलीवुड एक्ट्रेस शर्मिला टैगोर के साथ उनकी मुहब्बत का किस्सा. रिपोर्ट्स के मुताबिक, शर्मिला और मंसूर अली की पहली मुलाकात दिल्ली में हुई थी. पहली ही मुलाकात में पटौदी उस दौर की बोल्ड एक्ट्रेस शर्मिला टैगोर को दिल दे बैठे. लेकिन मुहब्बत की राह यहां भी कठिन थी, क्योंकि टाइगर पटौदी नवाब खानदान से थे और शर्मिला बॉलीवुड एक्ट्रेस. दोनों के धर्म अलग थे, लेकिन मुहब्बत धीरे-धीरे पनप रही थी.
टाइगर पटौदी और शर्मिला टैगोर की मुहब्बत से जुड़ा एक मजेदार किस्सा है. दरअसल, रिश्ते के शुरुआती दिनों में टाइगर पटौदी ने शर्मिला टैगोर को गिफ्ट में रेफ्रिजरेटर दिया था. इसके अलावा एक किस्सा ये भी मशहूर है कि क्रिकेट के मैदान में मंसूर अली खान शर्मिला टैगोर का स्वागत छक्के से किया करते थे. कहा जाता है कि शर्मिला टैगोर जहां भी बैठती थीं, मंसूर अली खान उसी दिशा में छक्का मारा करते थे.
लेकिन ये लव मैरिज आसान नहीं थी. शर्मिला को मंसूर अली का साथ पाने के लिए मुस्लिम धर्म अपनाना पड़ा. इतिहासकारों की मानें तो शर्मिला टैगोर को निकाह के लिए भोपाल की आखिरी नवाब और टाइगर पटौदी की मां साजिदा सुल्तान की शर्त माननी पड़ी. शर्मिला टैगोर इस्लाम अपनाकर आयशा सुल्तान हो गईं और साल 1969 में दोनों का निकाह हो गया.
कांग्रेस की टिकट पर भोपाल से लड़े थे चुनाव
टाइगर पटौदी ने साल 1961 से 1975 के बीच टीम इंडिया के लिए 46 टेस्ट मैच खेले. इसके बाद उन्होंने राजनीति का रुख किया. साल 1991 में मंसूर अली खान पटौदी ने कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ा.
चुनाव में खुद पूर्व प्रधानमंत्री और कांग्रेस अध्यक्ष राजीव गांधी ने उनके लिए चुनाव प्रचार किया था और राजीव ने ही उन्हें भोपाल से चुनाव लड़ाने का फैसला किया था.
जाते-जाते आंख कर गए दान
नवाब पटौदी को शायद एक आंख की रोशनी जाने का दर्द मालूम रहा होगा, इसीलिए जाते जाते अपनी सही आंख भी किसी और के लिए छोड़ गए. पटौदी ने मौत से पहले ही अपनी दूसरी आंख डोनेट करने का फैसला कर लिया था.
टाइगर पटौदी का फेफड़ों के संक्रमण की वजह से 22 सितंबर 2011 को दिल्ली के गंगाराम अस्पताल में निधन हो गया था. उनके निधन के बाद उनकी एक आंख को डोनेट कर दिया गया.
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