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मारियुपोल पर कब्जा करने के लिए क्यों बेकरार हैं पुतिन, जानिए इसके 5 बड़े कारण

कभी चमक-दमक से सजा रहने वाला यह शहर रूसी हमलों (Russian attack) के बाद अब खंडहर बनकर रह गया है.

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यूक्रेन पर रूसी हमले (Russian attack on Ukraine) ने यूक्रेन के कई शहर तबाह कर दिए हैं. इन्ही में मारियुपोल (Mariupol) शहर भी शामिल है. कभी चमक-दमक से सजा रहने वाला यह शहर रूसी हमलों (Russian attack) के बाद अब खंडहर बनकर रह गया है. मारियुपोल को घेरकर रूस ने ऐसा आतंक बरपाया है जो सदियों तक न भुलाया जा सकेगा. शहर की 80 प्रतिशत इमारतें बर्बाद हो गई हैं. हर तरफ रूसी टैंक नजर आ रहे हैं.

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यूक्रेन (Ukraine) के इस बंदरगाह शहर मारियुपोल (Mariupol) को लेकर रूस इस कदर आक्रामक है कि उसने यहां मौजूद सेना को सरेंडर करने के लिए डेडलाइन भी तय कर दी थी और चेतावनी देते हुए कहा था कि यदि हथियार नहीं डाले तो यहां बड़े पैमाने पर तबाही होगी.

रूस की इस धमकी के बावजूद यूक्रेन झुकने को तैयार नहीं है और उसने मारियुपोल में हथियार डालने से साफ इनकार कर दिया है. अब सवाल उठता है कि इस शहर मारियुपोल पर कब्जे को लेकर रूस और उसके राष्ट्रपति पुतिन इतना बेकरार क्यों है. इसका जवाब नीचे दिए इन पांच कारणों में ढ़ूंढ़ने की कोशिश करेंगे.

इसलिए मारियुपोल पर कब्जा चाहता है रूस

मारियुपोल यूक्रेन के लिए रणनीतिक रूप से काफी अहम है. मारियुपोल (Mariupol) आज़ोव सागर पर स्थित प्रमुख बंदरगाह शहर है. 2014 में कीव सरकार के खिलाफ विद्रोह की शुरुआत में डोनेत्सक के रूस समर्थित अलगाववादियों ने कुछ समय के लिए मारियुपोल पर कब्जा कर लिया था. यह विद्रोहियों के कब्जे वाली प्रांतीय राजधानी डोनेट्स्क से लगभग 100 किलोमीटर दूर है. इसकी आबादी 441,000 है और यह दक्षिणपूर्वी शहर अलगाववादियों के कब्जे वाले क्षेत्र और उस क्राइमिया प्रायद्वीप के बीच स्थित है, जिसे 2014 में मास्को ने कब्जा लिया था.

इसे शुरू से ही रूस से क्राइमिया प्रायद्वीप तक संभावित भूमि गलियारे के रूप में देखा जाता है. पूर्वी यूक्रेन के इस शहर पर कब्जा करते ही रूस को क्राइमिया पेनिनसुला तक पहुंचने के लिए जमीनी रास्ता मिल जाएगा. क्रीमिया को मॉस्को ने 2014 में यूक्रेन से छीना था, लेकिन वह अब तक सड़क मार्ग से रूस से नहीं जुड़ा हुआ है.

वर्तमान में क्राइमिया प्रायद्वीप रूस से एक पुल के माध्यम से जुड़ा हुआ है, जिसे रूसी विलय के बाद भारी भरकम लागत से बनाया गया है. मारियुपोल (Mariupol) हासिल होने से रूस को क्राइमिया और रूस समर्थित क्षेत्र लुहांस्क और डोनेत्सक तक जाने के लिए जमीनी रास्ता मिल जाएगा. क्राइमिया को अलगाववादी तत्वों के कब्जे वाले क्षेत्र से मिलाकर वह रूस की सीमा के अत्यंत नजदीक आ जाएगा और ऐसे में रूसी सेना के लिए सामान और लोगों की आवाजाही बहुत आसान हो जाएगी.

यहां कब्जे से यूक्रेन की कमर तोड़ देगा रूस

यूक्रेन सरकार के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, मारियुपोल सी पोर्ट पर पिछले साल 13 मिलियन मीट्रिक टन कार्गो (स्टील सहित) संभालकर रखा गया. 2014 में माल ढुलाई के मामले में यह यूक्रेन का पांचवां सबसे बड़ा बंदरगाह बना और आज़ोव सागर पर अब तक का सबसे व्यस्त वाणिज्यिक समुद्री केंद्र साबित हुआ.

मारियुपोल एक महत्वपूर्ण औद्योगिक केंद्र भी है, जहां प्रमुख धातुकर्म उद्योग स्थित हैं. यहां स्टील और लोहे का उत्पादन करने वाले इलिच आयरन एंड स्टील वर्क्स और अज़ोवस्टल यूक्रेन के सैन्य उपकरणों को बनाने में रणनीतिक रूप से काफी महत्वपूर्ण हैं. जिन्हें तबाह करके रूस यूक्रेन की आगे के कई सालों तक कमर तोड़ देना चाहता है.

रूस का मानना है कि यहां कब्जा करके एक बड़ा व मुख्य बंदरगाह तो उसे मिलेगा ही, साथ-साथ महत्वपूर्ण उद्योगों को नियंत्रित कर लेने से यूक्रेन की सरकार पर भारी आर्थिक दबाव पड़ जाएगा. मारियुपोल के उत्तर-पश्चिम में रूस ने जेपोरज़िया परमाणु संयंत्र पर कब्जा कर लिया है. यह परमाणु संयंत्र यूक्रेन की जरूरत की लगभग 20 फीसद बिजली अकेले ही उत्पादित करता है. ऐसे में इस परमाणु संयंत्र पर कब्ज़ा करके रूस ने यूक्रेन की ऊर्जा आपूर्ति का एक बड़ा हिस्सा अपने कंट्रोल में ले लिया है.

पूरी सेना को यहीं से झटका देगा रूस

मारियुपोल यूक्रेनी सैन्य अभियानों के लिए महत्वपूर्ण है. रूस के आक्रमण से पहले यूक्रेनी सेना यहां अलगाववादी इलाकों से लोहा लेने अग्रिम पंक्ति के तौर पर तैनात थी और यहीं से होकर बड़े सैन्य मोर्चों पर सेना को आवश्यक सामग्री पहुंचाई जा रही थी. यदि इस शहर पर रूस पूरी तरह से कब्जा जमा लेता है तो अन्य इलाकों के यूक्रेनी बलों को रसद की कमी और घेराव जैसी स्थिति का सामना करना पड़ेगा.

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ताकत दोगुनी करने का मिशन

रूस के लिए यहां कब्जे का एक बड़ा मतलब यह भी है कि वह पूर्वी यूक्रेन में रूसी समर्थित विद्रोहियों को क्राइमिया में अपने सैनिकों के साथ एकजुट कर सकता है. इससे उसकी ताकत दोगुनी हो जाएगी. मई 2014 में भी ऐसा ही हुआ था जब डोनबास में युद्ध के दौरान, अलगाववादी और रूसी समर्थित डोनेट्स्क पीपुल्स रिपब्लिक (डीपीआर) की सेना ने इस शहर पर हमला किया और मारियुपोल की लड़ाई के दौरान यूक्रेनी सेना को पीछे हटने के लिए मजबूर कर दिया था. हालांकि अगले ही महीने यूक्रेनी सेना ने प्रत्याक्रमण करते हुए शहर पर वापस कब्जा कर लिया था.

यहां हारते तो पूरी बाजी पलट जाती

अमेरिका स्थित थिंक-टैंक द इंस्टीट्यूट फॉर द स्टडी ऑफ वॉर की एक रिपोर्ट कहती है कि रूसी बलों ने 8 वीं संयुक्त शस्त्र सेना से लेकर पूर्व की ओर और क्राइमिया में रूसी सेना के समूह से लेकर मारियुपोल के आसपास काफी युद्ध शक्ति केंद्रित की है. मारियुपोल की लंबी घेराबंदी रूसी सेना को गंभीर रूप से कमजोर करने के साथ थका रही थी. इसी माेर्चे पर रूस की 150 वीं मोटराइज्ड राइफल डिवीजन के कमांडर की मौत से यह साफ संकेत मिलते हैं कि यूक्रेनी सैनिक रूस को यहां कितना नुकसान पहुंचा रहे थे. अगर मारियुपोल के मोर्चे पर यूक्रेन रूसी सेना को घेर लेता है, तो वह पश्चिम पर हमला करके रूस के इस युद्ध अभियान को नाटकीय तौर पर पलट देता. इसलिए रशियन आर्मी ने यहां पूरी ताकत लगाकर हमला किया है और वह इस मोर्चे पर यूक्रेन से कोई रियायत बरतने के मूड में कतई नहीं है.

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