बजट 2022 (Budget 2022) भाषण के बाद तुरंत बाद एक मीम पर नजर पड़ी-''ये स्कीम तेरे लिए नहीं है.'' ये बात मिडिल क्लास के लिए कही गई थी कि बजट में उसके लिए कुछ नहीं है. तो फिर सवाल उठता है कि बजट में किसके लिए क्या है?
गरीब के लिए कुछ नहीं
अमीर के लिए कुछ नहीं
महिलाओं के लिए कुछ नहीं
किसान के लिए कुछ नहीं
बाजार के लिए कुछ नहीं
हेल्थ के लिए कुछ नहीं
शिक्षा के लिए कुछ नहीं
बहुत अच्छा बजट नहीं
बहुत बुरा बजट भी नहीं
चुनावी बजट भी नहीं
और तो और बजट भाषण में बढ़िया जुमले भी नहीं!
कोई कहे कि, ऐसा नहीं है दोस्त. इन चीजों पर कुछ-कुछ है. तो कोई 'मिस्टर नटवरलाल' के अंदाज में पूछ सकता है-ये होना भी कोई होना है लल्लू?
तारीफ करने वाले रह रहे हैं कि पांच राज्यों में चुनावों के बावजूद लोकलुभावन बजट पेश नहीं किया गया है. वित्तीय अनुशासन का ख्याल रखना गया है. कुछ लोग सरकार की इस बहादुरी को दाद दे रहे हैं लेकिन इतने सारे लोगों के लिए कुछ है नहीं तो इसे साहसी बजट कहा जाए या सुस्त बजट?
मुख्य आर्थिक सलाहकार डॉ. वी अनंत नागेश्वरन को उम्मीद है कि वित्त वर्ष 26-27 तक हमारी इकनॉमी पांच ट्रिलियन डॉलर की हो जाएगी. पीएम कह रहे हैं कि ये सौ साल के विजन वाला बजट है. लेकिन साहिर के शब्दों में-'ये दुनिया अगर (रिपीट-अगर) मिल भी जाए तो क्या है?' कोरोना ने गरीब, मजदूर तो छोड़िए असंगठित क्षेत्र के छोटे-मझोले कारोबारी तक की कमर तोड़ दी है. राहत अभी चाहिए, सालों बाद नहीं.
'साढ़े सात लाख करोड़' पर शाबास, काश करते कुछ आज
पूंजीगत व्यय में 35 फीसदी से ज्यादा के इजाफे से इंफ्रा पर जोर होगा, रोजगार होगा, लेकिन कब होगा? FY22 के 5.4 लाख करोड़ रुपये से इसे FY23 में बढ़ाकर 7.5 लाख करोड़ रुपये करने पर तालियां लेकिन तकलीफ ये है कि प्रस्ताव आज पेश किया है, कल ग्राउंड पर निर्माण नहीं होने लगेगा. वक्त लगेगा. गरीब आदमी को अभी राहत चाहिए. कोविड, लॉकडाउन, बंदी के घाव पर मरहम अभी चाहिए.
उस मजदूर के बच्चे को ऑनलाइन पढ़ाई जारी रखने के लिए मोबाइल फोन आज चाहिए. स्कूल फीस आज चाहिए. उसे कोरोना से लड़ने के लिए मेडिकल खर्च की जरूरत आज है. दिल्ली में बैठे ढेर सारे नीति नियंताओं को इस बात का अंदाजा नहीं है कि ओमिक्रॉन के 'नॉर्मल फ्लू' होने पर भी जो दो चार सौ रुपए का खर्च आता है, वो बेरोजगार कामगार के लिए एवरेस्ट चढ़ने जैसा है.
मनरेगा का पैसा तक घटा दिया, जो कोविड काल में बड़ा सहारा बना. सरकार का भी और कमजोर कामगार का भी. इंटरनेट कनेक्टिविटी पर जोर है लेकिन उसके बच्चे के पास पढ़ने के लिए मोबाइल नहीं है, जो कमजोर है.
7.5 लाख करोड़ खर्चने के लिए पैसा कहां से आएगा? एक नहीं, कई रिपोर्ट बताती है कि अमीर और अमीर हो रहे हैं. उन्हीं से थोड़ा लेकर गरीबों को कुछ देते. गरीब का नहीं तो तिजोरी का भला होता. 15 लाख करोड़ उधार लेने की जरूरत नहीं पड़ती.
''ठगे रह गए किसान''
2022 तक किसानों की आय दोगनी करने का वादा था. 2022 के बजट में इसका जिक्र करने तक की हिम्मत नहीं हुई. किसान नेता योगेंद्र यादव कह रहे हैं कि किसानों से बदला लिया सरकार ने. राकेश टिकैत ने टिकाया कि गेहूं, धान खरीद का बजट कम कर दिया.
छोटे किसानों की बात करते हैं लेकिन ड्रोन किसके लिए उड़ा रहे हैं. इतना कन्फ्यूजन? फूड प्रोसेसिंग, स्टोरेज क्षमता हम सुनते आ रहे हैं. संयुक्त किसान मोर्चा ने कह दिया है कि MSP पर सरकार की मंशा जाहिर हो गई. अब तेज आंदोलन करेंगे.
आत्मनिर्भरता और आत्मरक्षा में एक नहीं चुन सकते
एक बात हुई कि अब रक्षा बजट का 68% देश से ही खरीदारी पर खर्च करेंगे. अच्छी बात है लेकिन आगे काम आ सकती है. अभी क्षमता पर शक है. अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने के लिए सुरक्षा को पीछे नहीं कर सकते. पाकिस्तान परेशान करता है. चीन है कि मानता नहीं. निजी क्षेत्र और स्टार्टअप के लिए डिफेंस रिसर्च के दरवाजे खोल रहे हैं, अच्छा है. बस नई बात नहीं है और दूर की कौड़ी है.
हेल्थ अब इकनॉमी का इश्यू नहीं-फिर विजन क्यों नहीं?
महामारी ने हमें समझा दिया कि लोगों को अच्छी मेडिकल सुविधा मिले, ये जनता के साथ ही अर्थव्यवस्था की अच्छी सेहत के लिए भी जरूरी है. नहीं तो लॉकडाउन लग जाएगा. मजदूर चले जाएंगे, फैक्ट्री पर ताला लग जाएगा. बंदी होगी, मंदी होगी. उम्मीद थी कि इस बजट में हेल्थ पर कुछ विजन दिखेगा. कुछ नहीं. कहां है सौ साल वाला प्लान? नेशनल हेल्थ डिजिटल प्लेटफॉर्म बनाएंगे. यूनिवर्सल हेल्थ कार्ड की बात तो हो रही थी. नया क्या है?
डिजिटल हेल्थ प्लेटफॉर्म का वो ग्रामीण क्या करेगा, जिसे प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में एक डॉक्टर नहीं मिलता. एक आईसीयू बेड नहीं मिलता. दवा नहीं मिलती. ऑक्सीजन नहीं मिलता.
अनुशासन है या आलस?
80 लाख घर, नल से जल, गैस, शौचालय-सब चालू योजनाएं हैं. इनपर तारीफ लूट चुके. छोटे कारोबारियों के लिए फिर वही लोन वाला स्कीम जो कोरोना काल में फेल हो चुका. बजट पर शेयर बाजार के एक्सपर्ट कह रहे हैं -ये हमारे लिए नॉन इवेंट है.
मतलब कोई फर्क नहीं. बाजार कल कहां जाएगा वो आज के बजट से नहीं बल्कि कल बाहर से कैश फ्लो, RBI की नीति, ग्लोबल ट्रेंड और राज्यों के चुनाव परिणाम पर निर्भर करेगा. पूंजीगत व्यय बढ़ाने से कुछ शेयरों का मूड जरूर ठीक हुआ है लेकिन तत्काल बहुत दिनों तक उसका असर रहे, ऐसा पक्का नहीं. कैपिटल गेन्स टैक्स पर कुछ न किया, अच्छा किया.
यूपी चुनाव जहां बीजेपी को चुनौती झेलनी पड़ रही है, उस यूपी को भी गंगा किनारे जैविक खेती और केन-बेतवा प्रोजेक्ट पर कुछ पैसा देकर टरका दिया गया है. फिसकल प्रूडेंस की दाद दे रहे लोगों से यही सवाल है कि इस पार्टी और सरकार का इतिहास देखकर तो नहीं लगता कि चुनाव इनके लिए अचानक से गैर जरूरी हो गए.
येन केन प्रकारेण चुनाव जीतने को ही मोक्ष मान चुकी पार्टी बजट में चुनाव का ख्याल नहीं रख पाती तो पूछना तो बनता ही है कि ये अनुशासन है या आलस? क्या ये केवल संयोग है कि ये निर्मला जी का सबसे छोटा बजट भाषण था?
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