रिलायंस कैपिटल लिमिटेड ने पिछले वित्त वर्ष की आखिरी तिमाही और इस वित्त वर्ष की पहली तिमाही की वित्तीय कमाई के आंकड़े अब प्रकाशित किए हैं. लेकिन वित्तीय कमाई के मोर्चे को छोड़ भी दें तो कंपनी के लिए चिंता पैदा करने वाली कई और बातें हैं. इंटर कॉरपोरेट फंडिंग से लेकर सब्सिडियरी कंपनियों के हालात और हाउसिंग फाइनेंस कंपनी रिलायंस होम फाइनेंस को होने वाले घाटे तक, तमाम ऐसे मुद्दे हैं जो कंपनी के लिए खतरे की तरह मौजूद हैं.
लगातार कई ऑडिटरों ने दिया था इस्तीफा
मार्च में खत्म होने वाली तिमाही का रिजल्ट दाखिल में होने वाली देरी के लिए इसके दो ऑडिटरों में एक प्राइस वाटरहाउस एंड कंपनी के इस्तीफे को जिम्मेदार माना जा रहा है. पिछले तीन महीने के दौरान रिलायंस ग्रुप की कंपनियों के चार ऑडिटर इस्तीफा दे चुके हैं. इसी जून में प्राइस वाटरहाउस एंड कंपनी ने इस्तीफा दिया था. प्राइस वाटरहाउस एंड कंपनी रिलायंस कैपिटल और रिलायंस होम फाइनेंस की ऑडिटर थी.
इंटर कॉरपोरेट डिपोजिट को लेकर बढ़ी चिंता
रिलायंस कैपिटल के इंटर कॉरपोरेट डिपोजिट से लेकर रिलायंस हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड को लेकर चिंता बरकरार है. रिलायंस हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड की ओर से जनरल परपज कैटेगरी' के तहत दिए गए लोन को लेकर चिंता जताई जा रही है. इसमें अनिल अंबानी ग्रुप की कंपनियां भी शामिल हैं.
रिलायंस हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड ने ग्रुप की कुछ कंपनियों को लोन दिया. इससे लोन हासिल करने वाली कंपनियों ने आगे भी कुछ कंपनियों को लोन दिया. इसके ऑडिटर धीरज एंड धीरज चार्टर्ड अकाउंटेंट्स का ऑब्जर्वेशन यह था कि इन लोन्स में कुछ डेविएशन हुआ है. इस कैटेगरी का लोन मार्च के आखिर में 7850 करोड़ रुपये से बढ़ कर 8,087 करोड़ रुपये हो गया था.
रिलायंस हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड ने कहा था कि ये लोन सिक्योर्ड हैं. जबकि इसके ऑडिटर ने कहा था उन्हें इस बात के सबूत नहीं मिल रहे हैं कि इन लोन्स के मूल धन और ब्याज की वापसी हुई है. इन चीजों ने कंपनी को लेकर नई चिंता पैदा की है.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)