केंद्र सरकार ने वित्तीय संकट से गुजर रहे निजी क्षेत्र के लक्ष्मी विलास बैंक पर एक महीने तक के लिए पाबंदियां लगा दी हैं. इसके तहत बैंक के खाताधारक ज्यादा से ज्यादा 25,000 रुपये तक की निकासी कर सकेंगे. इसके अलावा सरकार ने डीबीएस इंडिया के साथ लक्ष्मी विलास बैंक के विलय की योजना का भी ऐलान किया है.
बैंक की खस्ता वित्तीय हालत देखते हुए आरबीआई की सलाह के बाद सरकार ने यह कदम उठाया है. सरकार ने बैकिंग नियमन एक्ट 1949 की धारा 45 के तहत निजी क्षेत्र के बैंक पर पाबंदी लगाई है.
आरबीआई ने लक्ष्मी विलास बैंक के निदेशक मंडल को भी हटा दिया है और केनरा बैंक के पूर्व गैर-कार्यकारी चेयरमैन टीएन मनोहरन को 30 दिनों के लिए उसका प्रशासक नियुक्त किया है.
खाताधारकों पर क्या असर होगा?
लक्ष्मी विलास बैंक आरबीआई की अनुमति के बिना बचत, चालू या किसी तरह के जमा खाते से किसी जमाकर्ता को कुल मिलाकर 25,000 रुपये से ज्यादा का भुगतान नहीं करेगा. रिजर्व बैंक लक्ष्मी विलास बैंक के डीबीएस बैंक के साथ विलय की योजना को भी सामने रख चुका है.
आरबीआई ने भरोसा दिलाया है कि जमाकर्ताओं का पैसा डूबेगा नहीं और यह मोरेटोरियम के बाद निकासी के लिए उपलब्ध रहेगा. फिक्स्ड डिपॉजिट भी सुरक्षित रहेंगे, हालांकि, नए बैंक के साथ विलय के बाद इनकी ब्याज दरें बदल सकती हैं.
विलय योजना पर क्या बोला आरबीआई?
आरबीआई ने कहा, ‘‘विलय योजना को मंजूरी मिलने पर इसकी प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए डीबीएस बैंक इंडिया लिमिटेड (डीबीआईएल) में सिंगापुर का डीबीएस बैंक 2500 करोड़ रुपये (46.3 करोड़ सिंगापुर डॉलर) लगाएगा. इसकी फंडिंग पूरी तरह से डीबीएस के मौजूदा संसाधनों से की जाएगी.’’
देश के शीर्ष बैंक ने कहा कि डीबीआईएल के पास एक मजबूत बैलेंस शीट है, जिसमें मजबूत पूंजी समर्थन है. 31 मार्च को 7023 करोड़ रुपये की पूंजी के मुकाबले 30 जून को इसकी कुल विनियामक पूंजी 7109 करोड़ रुपये थी.
बता दें कि लक्ष्मी विलास बैंक लिमिटेड को 17 नवंबर को मोरेटोरियम के तहत रखा गया है, जो 16 दिसंबर तक प्रभावी रहेगा.
यस बैंक के बाद इस साल मुश्किलों में फंसने वाला लक्ष्मी विलास बैंक निजी क्षेत्र का दूसरा बैंक बन गया है. यस बैंक के ऊपर मार्च में पाबंदियां लगाई गई थीं. सरकार ने तब एसबीआई की मदद से यस बैंक को उबारा था.
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