आम चुनावों से पहले तेल की कीमतें मोदी सरकार को एक बार फिर परेशानी में डाल सकती हैं. तेल की कम होती कीमतों को देखते हुए तेल निर्यातक देशों के संगठन ओपेक ने फिर उत्पादन में कटौती का फैसला किया है. और इससे कच्चे तेल के दाम में और बढ़ोतरी का खतरा है.
हर दिन 12 लाख बैरल की कटौती
वियना में दो दिनों की बैठक में हालांकि ओपेक देश बंटे दिखे लेकिन आखिरकर संगठन हर दिन तेल सप्लाई में हर दिन 12 लाख बैरल की कटौती करने के लिए राजी हो गया. यह कटौती कुल प्रोडक्शन के एक फीसदी से ज्यादा है. इससे तेल कीमतों में थो़ड़ी बढ़ोतरी हो सकती है. पिछले कुछ दिनों में लंदन में कच्चे तेल में कीमतों में 6 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की कई और यह 56 डॉलर से बढ़ तकर 63 डॉलर प्रति बैरल कर पर पहुंच गई है. इससे भारत और चीन दोनों जगह कीमतों में इजाफा तय है.
पिछले कुछ दिनों से मोदी सरकार बढ़ती तेल कीमतों की वजह से विपक्ष और मतदाताओं के निशाने पर रही है. हालांकि अमेरिका के एक्सपोर्ट और रूस की ओर से तय सप्लाई को जारी रखने से इसका असर कम हो सकता है. लेकिन तेल कीमतों में बढ़ोतरी की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता. तेल कीमतें बढ़ीं तो महंगाई पर इसका असर पड़ना लाजिमी है.
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चुनावी सीजन में बढ़ जाएगी सरकार की मुश्किल
ओपेक की ओर उत्पादन कटौती की खबरों के बाद अंतरराष्ट्रीय बाजारों में तेल की कीमतें 4 फीसदी बढ़ चुकी हैं. अगर 2019 में पहली तिमाही के बाद तेल की कीमतें बढ़ती हैं तो मोदी सरकार के लिए मुश्किलें बढ़ेंगी. क्योंकि सरकार के रिजर्व का पैसा तेल आयात पर ज्यादा खर्च होगा और सामाजिक योजनाओं के लिए ज्यादा पैसा नहीं बचेगा. ठीक इसी वक्त बीजेपी को चुनाव की तैयारियों पर भी जोर देना होगा. वोटरों को लुभाने के लिए सामाजिक योजाओं में खर्च बढ़ाने की जरूरत होगी. इसलिए तेल की कीमतें सरकार की फिसलन और बढ़ा सकती है.
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