मंदी की मार आईपीओ मार्केट पर भी पड़ी है. साल खत्म होने में महज तीन महीने बाकी हैं. लेकिन अब तक सिर्फ 11 कंपनियां ही पूंजी जुटाने के लिए प्राइमरी मार्केट में उतरी हैं. इन कपनियों ने 10 हजार करोड़ रुपये की पूंजी जुटाई है. जबकि 2018 में 24 कंपनियां आईपीओ बाजार में उतरी थीं और उन्होंने 30,959 करोड़ रुपये जुटाए थे.
इस वजह से आईपीओ बाजार में उतरने से हिचक रही हैं कंपनियां
बाजार विशेषज्ञों का कहना है अगले तीन महीनों के दौरान आईपीओ मार्केट के लिए हालात मुश्किल ही रहेंगे. इसके घरेलू और अंतरराष्ट्रीय कारण दोनों हैं. दरअसल आर्थिक सुस्ती के कारण मिड और स्मॉल कैप शेयरों को जबरदस्त धक्का लगा है. इस वजह से कंपनियां आईपीओ बाजार में उतरने से हिचक रही हैं.
स्टॉक एक्सचेंज के आंकड़ों के मुताबिक 2017 में 36 कंपनियों ने आईपीओ मार्केट से 68,000 करोड़ रुपये जुटाए थे. 2018 में सिर्फ 30,959 करोड़ रुपये जुटाए गए थे. लेकिन 2019 में अब तक सिर्फ 10,300 करोड़ रुपये आए हैं.
बाजार में खराब सेंटिमेंट का असर
कंपनियों ने बिजनेस विस्तार, लोन री-पेमेंट और वर्किंग कैपिटल के लिए फंड जुटाए हैं. आईपीओ से जुटाई गई पूंजी का इस्तेमाल एक बड़ा हिस्सा प्रमोटरों, प्राइवेट इक्विटी फर्म और दूसरे शेयर होल्डरों के शेयरों को खरीदने में किया गया.
कई दिग्गज कंपनियां भी आईपीओ बाजार में उतरने से हिचक रही हैं. देश के सबसे बड़े बैंक एसबीआई ने अपने जनरल इंश्योरेंस कंपनी के लिए आईपीओ लाने का इरादा फिलहाल रोक दिया है. खराब बाजार की हालत देख कर यह कदम उठाया जा रहा है. हालांकि बैंक के चेयरमैन रजनीश कुमार ने कहा है कि अभी कंपनी को अतिरिक्त पूंजी की कोई जरूरत नहीं है.
मोतीलाल ओसवाल इनवेस्टमेंट बैंकिंग के ईडी मुकुंद रंगनाथन ने कहा कि आईपीओ बाजार के इस हालात के लिए अमेरिका-चीन के बीच ट्रेड वॉर, खराब मार्केट सेंटिमेंट और रुपये की कीमत में आई गिरावट जिम्मेदार है. उन्होंने बताया कि पिछले साल 90 कंपनियों ने ड्राफ्ट रेड हेरिंग प्रॉस्पेक्टस फाइल किया था. उनमें से बहुत कम कंपनियों ने अपने आईपीओ को सफलतापूर्वक अंजाम दिया. साफ है कि कंपनियां पूंजी जुटाने के लिए आईपीओ के बजाय दूसरे रूट का इस्तेमाल कर रही हैं.
सेबी डेटा के मुताबिक अब तक 23 कंपनियां आईपीओ के जरिये पैसा जुटाने के लिए उसके पास पहुंची हैं. जबकि पिछले साल 90 कंपनियां सेबी के पास पहुंची थीं.
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