डेयरी किसानों के गुस्से और कम दाम की वजह से सड़क में दूध फेंकने के आंदोलन का असर हुआ है और सरकार ने दूध पाउडर एक्सपोर्ट पर सब्सिडी दोगुनी करने का फैसला किया है.
इससे देश के अंदर दूध उत्पादकों को दूध के ज्यादा दाम मिलने की उम्मीद है. हालांकि भारत के सस्ते मिल्क पाउडर एक्सपोर्ट से दुनिया में दामों में भारी गिरावट आ सकती है.
सरकार चाहती है कि दूध पाउडर के एक्सपोर्ट को नौ गुना बढ़ाया जाए और इसके लिए जरूरी है सब्सिडी दी जाए क्योंकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहले ही इसका भारी प्रोडक्शन हो रहा है.
रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक मिल्क इंडस्ट्री के अधिकारियों का कहना है कि वित्त वर्ष 2018-19 में भारत के स्किम्ड मिल्क पाउडर (एसएमपी) का एक्सपोर्ट 100,000 टन तक पहुंचने की उम्मीद है. सरकार को उम्मीद है कि इस फैसले से किसानों को सीधा फायदा मिलेगा.
दूध उत्पादक किसानों को दोहरा फायदा
दूध के दाम गिरने की वजह से भारत के प्रमुख दूध उत्पादक राज्यों गुजरात और महाराष्ट्र के राज्य सरकारों ने एसएमपी के एक्सपोर्ट के लिए एक टन पर 50,000 रुपये (727.86 डॉलर) के सब्सिडी देने का ऐलान किया है. जबकि केंद्र सरकार ने एक्सपोर्ट मूल्य पर 10 फीसदी की और सब्सिडी को मंजूरी दे दी है.
“पहले भारत स्किम्ड मिल्क पाउडर को बड़ी मात्रा में एक्सपोर्ट नहीं कर रहा था. अब सरकार की ओर से मदद मिलने पर आने वाले महीनों में एक्सपोर्ट में बढ़ोतरी होगी.”-आर एस सोढी, मैनेजिंग डायरेक्टर, गुजरात कोऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन लिमिटेड
सोढी का कहना है कि वित्त वर्ष 2018-19 में 100,000 टन शिपमेंट होने की उम्मीद है, जबकि एक साल पहले ये आंकड़ा 11,500 टन था.
अंतरराष्ट्रीय बाजार पर असर
मिल्क पाउडर मार्केट पर वैसे तो अमेरिका और न्यूजीलैंड का दबदबा है. पर अब सस्ते दाम की वजह से भारत से एक्सपोर्ट बढ़ोती की उम्मीद. अमेरिका कृषि विभाग ने हाल ही में देश में इस साल नॉन-फैट ड्राई मिल्क पाउडर के शिपमेंट का अनुमान केवल 15,000 टन किया है. जबकि न्यूजीलैंड से 4,10,000 टन और अमेरिका से 7,20,000 टन शिपमेंट का अनुमान है. लेकिन मौजूदा स्थितियों के मद्देनजर भारत का शिपमेंट कई गुना बढ़ने के आसार हैं.
“एसएमपी के वैश्विक स्टॉक में भारतीय एसएमपी की संभावित बढ़ोतरी के बदौलत अंतरराष्ट्रीय कीमतों में गिरावट आएगी.”शिव मुदगल, सीनियर डेयरी एनालिस्ट, राबोबैंक
भारतीय एसएमपी को न्यूजीलैंड के एसएमपी की तुलना में कम कीमत मिलती रही है, क्योंकि न्यूजीलैंड के एसएमपी को बेहतर क्वालिटी का माना जाता है. वैश्विक बाजार में, भारतीय एसएमपी को 1,900 डॉलर प्रति टन की स्थानीय कीमत और 2,900 डॉलर से ज्यादा की उत्पादन लागत की तुलना में प्रति टन 1,700 डॉलर प्रति टन मिल रहा था.
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