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वित्त वर्ष की शुरुआत में ही करें टैक्स और इन्वेस्टमेंट की प्लानिंग

वित्त वर्ष की शुरुआत से ही आप फायदेमंद कदम उठाएं जिस पर आपको टैक्स छूट का बेनेफिट भी मिलेगा

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नया वित्त वर्ष शुरू हो गया है और नौकरीपेशा लोगों के लिए ये समय उनके ऑफिस में प्रोमोशन, इंक्रीमेंट और अप्रेजल का होता है. कई लोगों के ऑफिस में ये प्रक्रिया पूरी हो गई होगी, तो कुछ के ऑफिसों में चल रही होगी. जो भी हो, अभी से लेकर जून के महीने तक अधिकतर नौकरीपेशा लोगों को इस बात का पता चल जाएगा कि उनकी सैलरी में कितनी बढ़ोतरी हो रही है और उन्हें कितना बोनस मिल सकता है.

सैलरी बढ़ने की खुशी मनाने के लिए हो सकता है कि आप कहीं घूमने-फिरने चले जाएं, या अपना मनपसंद गैजेट खरीद लें. लेकिन इन सबके पहले एक चीज तो जरूर करें, अपनी टैक्स और इन्वेस्टमेंट प्लानिंग.

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वित्त वर्ष की शुरुआत में ही टैक्स और इन्वेस्टमेंट प्लानिंग करने का सबसे बड़ा फायदा तो ये होगा कि आप टैक्स के नए नियमों के मुताबिक अपना टैक्स बचाने की योजना बना सकेंगे. साथ ही बढ़ी हुई सैलरी का कुछ हिस्सा इन्वेस्टमेंट के लिए अलग रखने के बारे में सोच भी सकेंगे.

ये तो आप जान ही चुके हैं कि वित्त वर्ष 2018-19 के लिए इनकम टैक्स के नियमों में बदलाव किए गए हैं, तो अब हम आपको बताते हैं कि आप इन बदलावों के मद्देनजर कैसे अपनी टैक्स प्लानिंग करें.

रीइंबर्समेंट और ट्रांसपोर्ट अलाउंस नहीं मिलेगा

सबसे पहले ये याद रखें कि अब आपको मेडिकल रीइंबर्समेंट और ट्रांसपोर्ट अलाउंस नहीं मिलेंगे, बल्कि 40,000 रुपए का सालाना स्टैंडर्ड डिडक्शन मिलेगा. आपकी कंपनी इस स्टैंडर्ड डिडक्शन का फायदा देने के बाद आपका टैक्स कैलकुलेट करेगी और उसे काटने के बाद आपके बैंक अकाउंट में सैलरी क्रेडिट करेगी. लेकिन अगर आप अभी से कंपनी को ये बता देते हैं कि सालभर के दौरान आप कहां-कहां निवेश करने वाले हैं, तो आपका टैक्स कम काटा जाएगा.

इसके अलावा अगर आपने होम लोन ले रखा है या हाउस रेंट अलाउंस का क्लेम करने वाले हैं, तो ये दोनों चीजें भी अपनी कंपनी को वित्त वर्ष की शुरुआत में ही बता दें, आपके हाथ में मंथली सैलरी बढ़कर आएगी, और आप अपनी इन्वेस्टमेंट प्लानिंग बेहतर तरीके से कर पाएंगे. इसलिए ये काम सबसे पहले कर लीजिए.

सेक्शन 80C के तहत मिलती है 1.5 लाख की छूट

सेक्शन 80सी के तहत मिलने वाली 1.5 लाख रुपए की छूट के लिए प्लानिंग बेहद आसान है. इसके दायरे में आपका ईपीएफ कंट्रीब्यूशन भी आता है, इसलिए पहले ये पता लगाइए कि पीएफ का आपका सालाना कंट्रीब्यूशन कितना है और उसे डेढ़ लाख में से घटाकर बाकी रकम का इन्वेस्टमेंट करने की योजना बना लीजिए.

मान लीजिए कि आपका सालाना ईपीएफ कंट्रीब्यूशन है 60,000 रुपए, तो आपको अब 90,000 रुपए का निवेश सेक्शन 80सी के तहत करना होगा. आप इसके लिए ईएलएसएस, इंश्योरेंस पॉलिसी, पीपीएफ, टैक्स सेविंग फिक्स्ड डिपॉजिट, यूलिप या सुकन्या समृद्धि स्कीम जैसे प्लान चुन सकते हैं.

अगर आप अपने निवेश पर थोड़ा जोखिम ले सकते हैं और दूसरी स्कीमों से बेहतर रिटर्न चाहते हैं, तो फिर आपके लिए सबसे अच्छा विकल्प है ईएलएसएस यानी इक्विटी लिंक्ड सेविंग्स स्कीम.

ईएलएसएस में आपका हर निवेश 3 साल के लिए लॉक इन रहता है और इसके तहत म्यूचुअल फंड की इक्विटी स्कीमों में आपका पैसा लगाया जाता है. इस वक्त पिछले 3 साल के परफॉर्मेंस के आधार पर टॉप 5 ईएलएसएस इस तरह हैं.

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वित्त वर्ष की शुरुआत से ही आप  फायदेमंद कदम उठाएं जिस पर आपको टैक्स छूट का बेनेफिट भी मिलेगा
3 साल के परफॉर्मेंस के आधार पर टॉप 5 ईएलएसएस
(फोटो: क्विंट हिंदी/तरुण अग्रवाल)

इनमें से आप किसी भी फंड में निवेश करने का फैसला कर सकते हैं. सेक्शन 80सी की डेढ़ लाख की छूट के अलावा आप एनपीएस में निवेश करके 50,000 रुपए की सालाना टैक्स छूट अतिरिक्त हासिल कर सकते हैं. फाइनेंशियल एक्सपर्ट सभी को एनपीएस में निवेश करने की सलाह देते हैं, क्योंकि टैक्स छूट के फायदे के साथ ये रिटायरमेंट के बाद रेगुलर मंथली इनकम का बढ़िया विकल्प देता है.

वैसे, आप एनपीएस में जितना चाहें, उतना निवेश कर सकते हैं, लेकिन टैक्स छूट की सीमा नहीं बढ़ेगी. हां, रिटायरमेंट पर आपको मिलने वाली पेंशन की रकम जरूर बढ़ेगी.

केवल टैक्स बचाने के लिए इन्वेस्टमेंट न करें

वित्त वर्ष की शुरुआत से ही आप एक और फायदेमंद कदम उठाएं, जिस पर आपको टैक्स छूट का बेनेफिट भी मिलेगा- हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी लेकर. इससे जहां आप एक तरफ अपने और अपने परिवार की सेहत को सिक्योर करेंगे, वहीं सालाना 25,000 रुपए तक का टैक्स बेनेफिट भी पा सकेंगे. और अगर आप अपने माता-पिता के लिए अलग से हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी लेते हैं, तो अधिकतम 50,000 रुपए का अतिरिक्त टैक्स बेनेफिट भी पा सकते हैं.

एक चीज यहां जरूर याद रखें, केवल टैक्स बचाने के लिए इन्वेस्टमेंट न करें या इंश्योरेंस पॉलिसी न लें. इन्वेस्टमेंट का मकसद होना चाहिए बढ़िया रिटर्न और इंश्योरेंस का मकसद होना चाहिए फाइनेंशियल प्रोटेक्शन. हो सकता है कि आपको सेक्शन 80सी के तहत टैक्स बेनेफिट के लिए अलग से निवेश करने की जरूरत न पड़े, क्योंकि बच्चों की स्कूल फीस, पुरानी इंश्योरेंस पॉलिसीज और ईपीएफ कंट्रीब्यूशन से आप डेढ़ लाख की लिमिट तक पहुंच जाएं.

ऐसे में आप अपना इन्वेस्टमेंट करें, वेल्थ क्रिएशन के लिए और अपनी उम्र, वित्तीय लक्ष्य, पारिवारिक जरूरतों और जोखिम उठाने की क्षमता के आधार पर निवेश का फैसला करें. वित्त वर्ष की शुरुआत में ही ऐसा करने पर आप न सिर्फ पूरे अनुशासन के साथ निवेश कर सकेंगे, बल्कि कभी भी आपको वित्तीय बोझ का अनुभव भी नहीं होगा.

(धीरज कुमार जाने-माने जर्नलिस्‍ट हैं. इस आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्‍व‍िंट की सहमति होना जरूरी नहीं है)

ये भी पढ़ें- TAX प्लानिंग के लिए इक्विटी लिंक्ड सेविंग्स स्कीम क्यों है बेहतर?

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