आरबीआई ने जब लक्ष्मी विलास बैंक पर मोरेटोरियम लगाया तो इस बात से बहुत लोगों को कोई झटका नहीं लगा क्योंकि लोग शायद इंतजार कर रहे थे यह खबर बाजार में थी कि ये बैंक तकलीफ में है और कोरोना के पहले से ही तकलीफ में थे. इसमें आरबीआई ने डिपॉजिटर्स का खासतौर पर ध्यान रखा. यस बैंक और पीएमसी बैंक के समय में डिपॉजिटर्स के बीच में बहुत कंफ्यूजन था, उनको बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ा. सरकार ने साफ तौर पर कहा है कि ₹25000 तक की रकम अभी निकाल सकते हैं.
लेकिन दूसरी जो सबसे अच्छी खबर आई है वह यह है कि आरबीआई ने सिंगापुर के बैंक डीबीएस की जो भारत में शाखा डीबीएस इंडिया है. उसको चुना कि वो इसका मर्जर करे. लक्ष्मी विलास बैंक का पूरी तरह से डीबीएस में मर्जर RBI का पहला ऐसा नया प्रयोग है. ये एक विदेशी बैंक और विदेशी पूंजी है. इसे होलली ओन्ड सब्सिडियरी कहते हैं. डीबीएस ने शुरू में टेबल पर 2500 करोड रुपए रख दिए.
शेयरधारकों की कैपिटल हुई जीरो
इसका अर्थ यह हुआ कि डीबीएस बैंक पैसा लेकर आएगा, लक्ष्मी विलास बैंक को जितनी जरूरत है उसे उतना कैपिटलाइज्ड किया जाएगा. लेकिन इसमें शेयर होल्डर्स को काफी नुकसान हुआ है. शेयर होल्डर की कैपिटल अब जीरो हो गई क्योंकि पहले से ही नेगेटिव पूंजी के तौर पर यह बैंक चल रहा था. बैंक में करीब -4.45 पर्सेंट इक्विटी पूंजी थी. यानी कि पूरी पूंजी उड़ गयी और माइनस 5 परसेंट पहुंच गई. बैंक का एनपीए बैंक का करीबन 25 परसेंट के आस पास है, जो कि बहुत ज्यादा है.
प्रमोटरों के आपस में चल रहे थे झगड़े
बैंक के प्रमोटरों के आपस में झगड़े चल रहे थे, जिसके कारण वह लोग निवेशकों को बुला नहीं पा रहे थे. आश्वासन देने के बावजूद आरबीआई को यह भरोसा नहीं दिला पाए कि इन्वेस्टर तैयार हैं. अभी एक एनबीएफसी तैयार हुआ था क्लिस कैपिटल लेकिन उसके पास सिर्फ 1700 करोड़ रुपये ही पूंजी थी, इसलिए आरबीआई ने डीबीएस इंडिया के पक्ष में फैसला लिया. ये विदेशी बैंकों के लिए अच्छा सिग्नल है कि अगर आपको भारत में एक्सपेंशन करना है तो आप अधिग्रहण और मर्जर के जरिए भी यह काम कर सकते हैं.
ये खबर झटका कम और एक राहत ज्यादा है, इसका मतलब ये है कि शायद यस बैंक, पीएमसी बैंक, डीएचएफएल और आईएलएफएस के डूबने के बाद, इनकी मरम्मत करने के बाद ऐसा लगता है कि शायद और कोई बड़े बैंक ऐसे ना हो जो कि इस तरह से डूबने की कगार पर हो और उनको बचाने के लिए आरबीआई को आगे आना पड़े. कुछ छोटे-मोटे बैंक हो सकते हैं, कुछ कोऑपरेटिव बैंक हो सकते हैं. लेकिन जाहिर तौर पर आरबीआई ने एक अच्छी खासी सीख ले ली और उसके बाद इस काम को बहुत अच्छे ढंग से किया है. अब हमको लगता नहीं है कि किसी की कोई आपत्ति आएगी.
पुराने ढर्रे पर चलते हैं साउथ इंडिया के बैंक
यह ध्यान रखने की बात है कि साउथ इंडिया के बैंक थोड़ा पुराने ढर्रे पर चलते हैं, वहां की यूनियन काफी मजबूत हैं. धनलक्ष्मी बैंक नाम का एक दूसरा बैंक भी सुर्खियों में रहता है, ये केरल का बैंक है. लक्ष्मी विलास बैंक तमिलनाडु का है और यहां पर भी यूनियन मजबूत हैं. तो अभी थोड़ा बहुत इसमें प्रतिरोध करेंगे लेकिन उससे कोई ज्यादा फर्क पड़ने वाला नहीं है. तो बैंकिंग सेक्टर की कहानियों में उम्मीद करना चाहिए कि बर्बादियों के किस्से खत्म हुए, स्ट्रेस खत्म हुआ और यहां से प्राइवेट सेक्टर बैंक वेल कैपिटलाइज्ड होंगे तो अपना काम कर लेंगे. सरकारी बैंकों को अब खतरा और चुनौती होगी.
तो कोरोना काल का सबक क्या है
कोरोना की वजह से एनपीए शायद ज्यादा नहीं बढ़ेगा, लेकिन थोड़ा बहुत बढ़ेगा तो उसको प्राइवेट सेक्टर के लोग तो मैनेज कर लेंगे. जो अच्छे एनबीएफसी है वह भी इसे मैनेज कर लेंगे. लेकिन पीएसयू लेवल के बैंकों पर अभी भी खतरा बना रहेगा क्योंकि जब तक सरकार का तौर तरीका नहीं बदलेगा तब तक इन बैंकों का उद्धार अभी भी होना मुश्किल है और यह ढुल-मुल तरीके से चलते रहेंगे.
लेकिन बैंकिंग सेक्टर और एनबीएफसी सेक्टर के लिए आरबीआई ने जो कदम उठाए, इससे लोगों को लगता है कि यह एक अच्छी शुरुआत है. आशा करनी चाहिए कि बुरी खबरों का बैंकिंग सेक्टर से सिलसिला अब बंद हो जाए और मरम्मत का काम शुरू हो जाए.
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