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लॉकडाउन का महिलाओं पर ज्यादा मार-जेब तंग, पेट खाली और दिमाग तनाव से भर गया-सर्वे

NBER के सर्वे केअनुसार लॉकडाउन की वजह से डिप्रेशन समेत मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी अन्य समस्या 40 % तक बढ़ गयी

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नेशनल ब्यूरो ऑफ इकनॉमिक रिसर्च (NBER) के एक सर्वे में इसका खुलासा हुआ कि कोरोना और उसकी रोकथाम के लिए लगाए गए लॉकडाउन की वजह से उत्तर भारत के गांवों में लोगों का जीवन कितना बदतर हुआ और उनको कितनी परेशानी हुई. नतीजों की एक खास बात ये है कि सबसे ज्यादा मार महिलाओं पर पड़ी. आर्थिक किल्लत उन्हें ज्यादा हुई, खाने तक के लाले पड़े और इस सबसे उन्हें तनाव, डिप्रेशन ने घेर लिया.

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NBER ने पांच राज्यों- उत्तर प्रदेश, राजस्थान,बिहार, झारखंड और मध्य प्रदेश के कुछ गांवों में यह फोन सर्वे किया. NBER ने सितंबर 2019 और अगस्त 2020 में दो बार ये सर्वे किया और इस दौरान करीब 20-30 मिनट घर के मुखिया और घर चलाने वाली महिला से फोन पर बात की गयी.

NBER के सर्वे में यह पाया गया कि गांवों में कोरोना काल में लोगों की हालत बहुत खराब हुई ,महामारी की वजह से घर में पैसे की कमी हुई और लोगों को जरूरी खाना तक नहीं मिल पाया. लंबे समय तक महामारी चलने की वजह से लोगों को तनाव हुआ और आय घटने से खाने-पीने की कमी होने की चिंता ने उनको परेशानियों में डाल दिया. 2020 के लॉकडाउन के बाद भी पूरी तरह लॉकडाउन ना खुलने की वजह से लोगों को बहुत दिक्कतें हुई.

कोराना और लॉकडाउन के कारण मेंटल हेल्थ पर प्रतिकूल प्रभाव 

कोरोना महामारी के मुश्किल वक्त में मेडिकल सुविधाओं के अभाव और ऊपर से लॉकडाउन की वजह से काम छूट जाने से लोगों में डिप्रेशन एंक्जाइटी, और अन्य मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी परेशानियां 40 फीसदी तक बढ़ गयीं. जिन इलाकों में लॉकडाउन ज्यादा रहा वहां 45 फीसदी लोगों की मेंटल हेल्थ पर बुरा असर पड़ा. दरअसल 2021 में कोरोना की दूसरी लहर के बाद उन इलाकों या जिलों में लॉकडाउन बना रहा जहां ज्यादा केस रहे. सर्वे में ये पाया गया कि जहां लॉकडाउन बना रहा वहां के लोगों की मेंटल हेल्थ पर ज्यादा प्रभाव पड़ा.

इस सर्वे के दौरान महिलाओं से डिप्रेशन और एंक्जाइटी के बारे में सवाल पूछे गये तो 37 फीसदी महिलाओं ने माना कि उनका डिप्रेशन और बढ़ा है. महामारी के दौरान कई बार उनके मन में नेगेटिव विचार आये, उन्होंने खुद को दुखी पाया, जीने की कोई उम्मीद नहीं दिखी और शरीर से कुछ काम न करने के बारे में सोचती रहीं.

महिलाओं ने कहा कि उनके अंदर कोई खुशी या उल्लास की भावना नहीं रही उल्टा हर वक्त चिंता और तनाव रहा. 2019 और 2020 के दौरान उनकी मानसिक हालात और खराब हुई और इसमें कोई सुधार नहीं हुआ. इस दौरान महिलाओं ने बताया कि कोरोना और इसकी वजह से होने वाली आर्थिक तंगी ने उनकी मानसिक परेशानियों को और बढ़ा दिया है. इस सर्वे में ये भी देखा गया कि कोरोना का वर्किंग मॉम्स पर ज्यादा बुरा असर पड़ा. खासतौर पर वो महिलाएं जिनके पास बेटियां हैं या वो महिलाएं जो खुद अपना पूरा परिवार चलाती हैं उनको इस महामारी ने और ज्यादा परेशान किया.

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मेंटल हेल्थ के अलावा महिलाओं के पोषण पर भी असर 

मेंटल हेल्थ के अलावा इस सर्वे में महिलाओं के लिये जरूरी पोषण से जुड़े सवाल भी पूछे गये इसमें उनकी डाइट में दूध, फल, सब्जी और दालों की मात्रा जानने की कोशिश की जिसके जवाब में पता चला कि ज्यादा महिलाएं कुपोषण की रेंज में हैं.

खाने-पीने की कमी ने उनके फिजिकल हेल्थ पर बुरा असर डाला. खाने –पीने की तंगी होने की वजह से उनको अच्छी तो दूर जरूरी डाइट भी नहीं मिली. महिलाओं ने सर्वे में बताया कि लॉकडाउन की वजह से अचानक उनके सामने पैसों की किल्लत आ गयी. लॉकडाउन की कोई निश्चित समय –सीमा ना होने की वजह से उनके लिये घर का खर्च चलाना मुश्किल हो गया.

लॉकडाउन की वजह से परिवार को पालने की परेशानी ने उनकी दिमागी हालत पर बुरा असर डाला. सर्वे में महिलाओं ने ये भी कहा कि लॉकडाउन से संबंधित निर्णय लेते वक्त सरकारी सहायता और इनका लोगों के मानसिक स्तर पर क्या प्रभाव पड़ेगा, ऐसी बातों का ध्यान रखा जाना चाहिए.

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महामारी में पड़े खाने के लाले

सर्वे के दौरान करीब 24 फीसदी लोगों ने ये भी कहा कि पैसे की तंगी होने की वजह से उन्होंने अपने खाने में भी कटौती की. लोगों ने बताया कि महामारी के दौरान उन्होंने अपने बच्चों के लिये थोड़ा और खाना बंदोबस्त करने की इच्छा जतायी. सर्वे के दौरान लोगों ने बताया कि उनकी हर महीने की इनकम में काफी कमी आयी है.

पहले जहां वो करीब 8 हजार रुपये हर महीने कमाते थे. कोरोना के दौरान ये कमाई घटकर बस 3 हजार रुपये के करीब रह गयी . राज्य सरकार से किसी तरह की आर्थिक सहायता या कोई इंश्योरेंस ना मिलने की वजह से लोगों को काफी दिक्कतें आयी और इससे उनके मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर पड़ा. सर्वे में करीब 76 फीसदी लोगों ने माना कि उनकी आय कम हुई है.

लोगों को महामारी ने गावों में सोशल और इकनॉमिक लेवल पर काफी गहरा प्रभाव डाला. अच्छी स्वास्थ्य सेवा ना होना और खाने-पीने के लिये कोई सरकारी सहायता ना होने की वजह से इन राज्यों के गांवों में लोगों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ा और इसका बुरा असर उनके दिमाग पर भी रहा.

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