Chhattisgarh election 2023: छत्तीसगढ़ की जनता का फैसला VVPAT में दर्ज हो गया है. प्रदेश की 90 सीटों के लिए दो चरणों में मतदान हुए. पहले चरण में 7 नवंबर को 20 सीटों पर वोटिंग हुई थी, वहीं दूसरे चरण के तहत 17 नवंबर को 70 सीटों पर मतदान पूरा हो गया. छत्तीसगढ़ में जिन 70 सीटों पर दूसरे चरण का मतदान हुआ वहां 2018 में कुल 76.69% वोट पड़े थे. इस बार यहां 75.08 फीसदी वोट पड़ा है. यानी 1.61 फीसदी वोटिंग में कमी आई है.
अब सवाल है कि अखिर वोटिंग में आई कमी का मतलब क्या है? जनता ने वोटिंग से क्या संदेश दिया? छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार रहेगी या बीजेपी की होगी वापसी? आइए वोटिंग पैटर्न के जरिए समझने की कोशिश करते हैं.
वोटिंग कम होने के क्या मायने?
छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव 2018 में 76.45 फीसदी वोटिंग हुई थी. इस बार दो चरणों में मतदान हुए. पहले फेज में 78 फीसदी वोट पड़े थे, जबकि दूसरे चरण में 75.08 फीसदी वोटिंग हुई. दूसरे चरण में जिन 70 सीटों पर मतदान हुआ, वहां 2018 में कुल 76.69% वोट पड़े थे. वहीं, पहले चरण में जिन 20 सीटों पर मतदान हुआ था, वहां 2018 में कुल 77.23% वोटिंग हुई थी. यानी पिछले चुनाव के मुकाबले वोटिंग परसेंटेज में कमी आई है.
ऐसे में चुनावी पैटर्न के मुताबिक अगर किसी राज्य में पिछले चुनाव के मुकाबले कम वोटिंग होती है, तो ये माना जाता है कि वहां सरकार के प्रति एंटी इनकंबेंसी कम है. यानी सरकार जाने का रिस्क कम हो जाता है. हालांकि, ये पुख्ता दावा नहीं है, लेकिन जानकार इस वोटिंग पैटर्न से काफी सहमत नजर आते हैं. ऐसे में कांग्रेस और भूपेश बघेल के लिए एक खुशखबरी हो सकती है कि छत्तीसगढ़ में उनकी दोबारा सत्ता में वापसी होने की उम्मीद सत्ता से बाहर होने से ज्यादा है.
किस विधानसभा में सबसे ज्यादा और सबसे कम वोट?
इस बार के विधानसभा चुनाव में सबसे ज्यादा वोट बस्तर विधानसभा सीट पर पड़े हैं. आदिवासी बहुल ये सीट आरक्षित सीट है. पिछली बार इस सीट से कांग्रेस के लखेश्वर बघेल ने जीत दर्ज की थी. पिछली बार इस सीट पर 83.37 फीसदी वोट पड़े थे, इस बार बढ़कर 84.65 फीसदी हो गया है. यानी पिछले साल के मुकाबले 1.28 फीसदी वोट ज्यादा पड़े हैं.
अगर इस सीट पर वोटिंग पैटर्न की बात करें तो इस हिसाब से इस सीट पर कांग्रेस के लिए खतरा मंडरा रहा है. इस सीट पर बीजेपी ने इस बार उम्मीदवार बदला है. पिछली बार यहां से बीजेपी उम्मीदवार डॉ. सुभाऊ कश्यप थे, जबकि इस बार पार्टी के टिकट पर मनीराम कश्यप हैं.
वहीं, सबसे कम वोट की बात करें तो इस बार बिजापुर में सबसे कम 46 फीसदी वोटिंग हुई है. हालांकि, पिछली बार भी बीजापुर में वोटिंग पर्सेंट सबसे कम (48.90%) था. लेकिन, इस बार उससे भी कम 2.9 फीसदी कम है. इस हिसाब से यहां कांग्रेस की सीट सुरक्षित नजर आ रही है. यहां से कांग्रेस उम्मीदवार विक्रम मंडावी हैं, जबकि बीजेपी से महेश गागड़ा मैदान में हैं. 2018 के चुनाव में भी ये दोनों आमने सामने थे, जिसमें से कांग्रेस उम्मीदवार विक्रम मंडावी ने बीजेपी प्रत्याशी महेश गागड़ा को 21,584 वोटों के अंतर से हराया था.
VIP सीटों का क्या है हाल?
छत्तीसगढ़ की सबसे हाई प्रोफाइल सीट पाटन है जहां 84.12% वोटिंग हुई. यहां से मुख्यमंत्री भूपेश बघेल कांग्रेस की तरफ से मैदान में हैं. वहीं सीएम के खिलाफ बीजेपी ने भूपेश के भतीजे विजय बघेल को टिकट दिया है. विजय बघेल दूर्ग से बीजेपी से सांसद हैं, साल 2008 में चाचा भूपेश बघेल को इस सीट से विधानसभा चुनाव हरा चुके हैं. ऐसे में चाचा-भतीजे की सियासी जंग ने इस सीट को सबसे चर्चित सीट बना दिया है. इस सीट पर पिछली बार 83.19 फीसदी वोट पड़े थे. उस वक्त भूपेश बघेल ने अपने प्रतिद्वंद्वी बीजेपी उम्मीदवार मोतीलाल साहू को 27,477 वोटों से हराया था.
यहां सबसे दिलचस्प आंकड़ा साल 2013, 2018 और 2023 को जोड़कर देखेंगे तो पता चलेगा कि पाटन सीट पर साल 2013 में 81.76% वोट पड़े थे, तब भूपेश बघेल का जीत का अंतर 9,343 था. साल 2018 में 83.19% वोट पड़े तो भूपेश बघेल का जीत का अंतर भी बढ़कर 27, 477 हो गया. यानी करीब 2% वोट से जीत के अंतर में करीब 18 हजार वोटों का अंतर आ गया. इस बार 84.12 फीसदी ही वोटिंग हुई. चुनावी पैटर्न के हिसाब से बघेल की सीट पर बंपर वोटिंग बता रही है कि जनता का रुझान कुछ और ही है. ऐसे में देखना होगा कि वोटिंग परसेंट बढ़ने से बघेल का वोट बढ़ता है या एंटी इनकंबेंसी का संकेत है.
वहीं, रमन सिंह राजनंदगांव से चुनावी मैदान में हैं, इस बार इस सीट पर 79.13 फीसदी वोट पड़ा है, जबकि पिछली बार यहां 78.87 फीसदी वोट पड़ा है. ऐसे में अगर वोटिंग पैटर्न को देखेंगे तो रमन सिंह की सीट पर खतरा मंडरा रहा है. ऐसे ही अन्य VIP विधानसभा सीटों के बारे में ग्राफिक्स के जरिए समझा जा सकता है.
आदिवासी इलाकों का क्या हाल?
छत्तीसगढ़ में पहले चरण की जिन 20 सीटों पर मतदान हुआ था, वो आदिवासी इलाका माना जाता है. यहां, इस साल करीब 78 फीसदी वोटिंग हुई हैं, जबकि साल 2018 में इन्हीं 20 सीटों पर 77.23% वोटिंग हुई थी. यानी इन सीटों पर पिछले साल के मुकाबले इस साल ज्यादा वोटिंग हुई. इसका मतलब है कि यहां लोग सरकार से नाराज हैं, इसलिए बढ़ चढ़कर वोट दिया है. यहां माना भी जा रहा था कि आदिवासी कांग्रेस से नाराज चल रहे हैं, जिसका असर देखने को भी मिला.
20 सीटों में सबसे महत्वपूर्ण सीटें बस्तर संभाग की है, जहां से कुल 90 सीटों में से 12 सीटें आती हैं और यहां की सभी 12 सीटों पर कांग्रेस का कब्जा है. आदिवासी बाहुल्य बस्तर संभाग में कुल सात जिले आते हैं. सात जिलों के संभाग में यहां छत्तीसगढ़ की 12 विधानसभा और एक लोकसभा सीट है. बस्तर संभाग की 12 विधानसभा सीटों में 11 विधानसभा सीटें अनुसूचित जनजाति (एसटी) और एक सीट सामान्य है. लेकिन, इस बार वोटिंग पैटर्न के मुताबिक यहां से कांग्रेस की जमीन थोड़ी खिसकती नजर आ रही है.
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