वो जमाना याद है, जब चुनाव के दिनों में दूरदर्शन पर हर पार्टी को बराबर समय मिलता था? देश से लेकर टीवी के परदे तक 'साम्यवाद' था. फिर टीवी क्रांति आई. न्यूज चैनलों की भरमार हो गई. चुनावों में सबको बराबर स्क्रीन टाइम का साम्यवाद खत्म हो गया और 2014 आते-आते टीवी परदे पर साम्राज्यवाद हावी हो गया.
पिछले लोकसभा चुनाव के समय 2014 में CMS मीडिया लैब ने पड़ताल की कि न्यूज चैनलों के प्राइम टाइम में किसे कितना समय मिल रहा है. स्टडी मई के पहले हफ्ते में की गई. स्टडी के मुताबिक नरेंद्र मोदी नंबर 1 पर थे. उन्हेें टीवी न्यूज चैनलों के प्राइम टाइम में 2575 मिनट मिले. ये चुनावों पर हुई प्राइम टाइम कवरेज का एक तिहाई यानी 33% था. दूसरे नंबर पर केजरीवाल 10% और राहुल गांधी को सिर्फ 4% समय मिला. 2014 से 2019 आते-आते पिक्चर और डर्टी हो गई लगती है.
अब तो 24X7 नमो टीवी
लेकिन जैसे ये काफी नहीं था, 31 मार्च, 2019 को एक नया चैनल आया. नाम है - नमो टीवी. इसपर मोदी ही मोदी दिखते हैं - 100 प्रतिशत. लोगों ने जानना चाहा - किसका चैनल है? जवाब नहीं मिला. लोगों ने जानना चाहा - इजाजत कैसे मिली? अब तक जो पता चला है वो ये है कि इस चैनल के लिए सूचना और प्रसारण मंत्रालय से परमिशन नहीं मिली है. मंगलवार को टाटा स्काई के सीईओ ने एनडीटीवी को बताया कि ये न्यूज नहीं स्पेशल सर्विसेज चैनल है. और फीड (वीडियो) इंटरनेट के जरिए बीजेपी से आती है.
अब देश में डिजिटल कंटेंट के लिए किसी लाइसेंस की जरूरत नहीं है. लेकिन यहीं पेंच है. 2014 में जब एक न्यूज वेबसाइट ने अपनी हिस्सेदारी एक विदेशी कंपनी को बेचनी चाही तो सरकार ने कहा कि भले ही आप डिजिटल हों लेकिन चूंकि आप न्यूज दिखाते हो इसलिए आप ब्रॉडकास्ट के कानून से बंधे हो. फॉरेन इन्वेस्टमेंट प्रमोशन बोर्ड से मंजूरी लो. अब सवाल ये है कि जब उस न्यूज लेकिन नॉन ब्रॉडकास्टिंग प्लेटफॉर्म को कानूनी इजाजत की जरूरत थी तो 'नमो टीवी' को क्यों नहीं है? आम आदमी पार्टी समेत कुछ विपक्षी दलों ने चुनाव आयोग से पूछा है. देखिए लोकतंत्र के पहरेदार चुनाव आयोग से क्या जवाब मिलता है? एक बात और है. जवाब मिलने में देर हुई तो सब बंटाधार. लोकसभा चुनाव 2019 में जनमत को गोरिल्ला मार्केटिंग के पंजे से बचाना है तो चुनाव आयोग को फैसला जल्द लेना होगा.
अमेरिका के बिजनेस राइटर जे कॉनरैड लेविन्सन ने एक किताब लिखी थी- गोरिल्ला मार्केटिंग. उन्होंने ‘द रूल ऑफ 27 ‘ का सिद्धांत दिया था. उसके मुताबिक किसी व्यक्ति को उपभोक्ता बनाना है तो उसके दिमाग में 9 बार अपना संदेश डालना होगा. लेकिन हर तीन में से दो मैसेज उपभोक्ता मिस कर देता है यानी अगर संदेश 27 बार दिया जाए तब जाकर बात दिमाग में बैठती है.
केरल में वायनाड में राहुल का मेगा रोड शो
केरल के वायनाड से चुनाव लड़ने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने गुरुवार को पर्चा भरा. पर्चा भरने के बाद उन्होंने एक रोड शो किया. साथ में प्रियंका गांधी भी थीं. रोड शो के दौरान जबरदस्त भीड़ जुटी. हर कोई राहुल और प्रियंका गांधी से हाथ मिलाना चाहता था. वायनाड रोड शो से आई तस्वीरों से जो एक तस्वीर निकलकर आती है वो ये है कि राहुल का दक्षिण जाना वाकई पार्टी को वहां पांव फैलाने में मदद कर सकता है.
पिछले चुनावों में केरल में कांग्रेस के नेतृत्व में UDF ने 12 सीटें जीती थीं और लेफ्ट फ्रंट यानी LDF को 8 सीटें मिली थीं. NDA खाता नहीं खोल पाई थी.
इस बार बीजेपी केरल में घुसने की पूरी कोशिश कर रही है. राज्य में हिंदू आबादी 50 % है. मुस्लिम 28 और क्रिश्चियन 21% हैं. बावजूद हिंदू बहुल इस राज्य में बीजेपी को कभी कामयाबी नहीं मिली. लेफ्ट ने हमेशा यहां की राजनीति को डॉमिनेट किया. कोई ताज्जुब नहीं कि जब सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सबरीमला मंदिर में महिलाओं को एंट्री मिलनी चाहिए तो बीजेपी के कार्यकर्ताओं ने वहां लंबा प्रदर्शन किया. निशाना सीधे पर हिंदू वोटर थे. इस बैकग्राउंड में केरल का चुनाव इस बार बड़ा रोचक है. राहुल के केरल आने से बीजेपी का ये हमला हल्का पड़ सकता है.
जिस तरह से बीजेपी और संघ कल्चरल अटैक देश में कर रहे हैं, उसके खिलाफ यहां मैसेज देने के लिए चुनाव लड़ रहा हूं. पूर्व से लेकर पश्चिम तक और उत्तर से लेकर दक्षिण तक भारत एक देश है. जिस तरह सरकार काम कर रही है, नरेंद्र मोदी और आरएसएस काम कर रहे हैं, लोगों को लग रहा है कि उनकी संस्कृति पर, उनकी भाषा पर हमला हो रहा है. मैं उत्तर भारत के भी साथ हूं तो दक्षिण के भी साथ हूं.राहुल गांधी, कांग्रेस अध्यक्ष
केरल से दांव आजमाने के पीछे राहुल की एक रणनीति ये भी हो सकती है कि जिस दक्षिण भारत में बीजेपी की भगवा राजनीति का असर कम है, वहां के लोगों का समर्थन हासिल कर लिया जाए तो दिल्ली का रास्ता साफ हो सकता है. दक्षिण भारत (तमिलनाडु, आंध्र, कर्नाटक, केरल, तेलंगाना, पॉन्डिचेरी) की कुल 130 लोकसभा सीटों में इस वक्त कांग्रेस के पास महज 16 हैं. अगर इस टैली में बड़ा बदलाव होता है तो साफ तौर पर पार्टी को बड़ी मदद मिलेगी. इतिहास भी गवाह है कि जब-जब नॉर्थ में कांग्रेस की स्थिति कमजोर हुई, साउथ में सहारा मिला.
1977 में जब उत्तर भारत में कांग्रेस की करारी हार हुई थी तो दक्षिण के राज्यों में इसे पनाह मिली थी. रायबरेली में राजनारायण से चुनाव हारने के बाद इंदिरा ने कर्नाटक की चिकमंगलूर सीट से चुनाव जीत कर वापसी की थी. 1999 के चुनाव में सोनिया गांधी अमेठी के साथ कर्नाटक की बेल्लारी सीट से भी उतरीं. यहां उन्होंने बीजेपी की सुषमा स्वराज को 56 हजार वोटों से हराया था. सोनिया को कर्नाटक से उतारने का कांग्रेस को जबरदस्त फायदा हुआ. राज्य की 28 लोकसभा सीटों में से कांग्रेस को 18 सीटें मिली थीं. , बीजेपी को 7 और जनता दल को 3 सीटें हासिल हुई थीं. जबकि इससे पहले कांग्रेस के पास यहां सिर्फ पांच सीटें थीं.
मेरे भाई का खयाल रखना- प्रियंका
भाई जब वायनाड से पर्चा भर रहा था, रोड शो कर रहा था तो साथ में प्रियंका गांधी भी थीं. प्रियंका गांधी को लेकर भी कार्यकर्ताओं और आम जनता में काफी जोश दिखा. कांग्रेस पार्टी में नेतृत्व के सवाल को कई बार राहुल बनाम प्रियंका के आईने से देखा गया. प्रियंका के लुक की इंदिरा गांधी से तुलना की गई. लेकिन वायनाड से प्रियंका ने एक ट्वीट किया. प्रियंका गांधी ने राहुल के नामांकन के बाद वायनाड के लोगों से अपील करते हुए कहा कि वो आपको निराश नहीं करेंगे.
मेरा भाई, मेरा सबसे सच्चा दोस्त और सबसे निडर व्यक्ति जिसे मैं जानती हूं. वायनाड उनका खयाल रखना, वो आपको निराश नहीं होने देंगे.प्रियंका गांधी, महासचिव, कांग्रेस
पूर्वी यूपी में जब से प्रियंका ने चुनाव प्रचार में उतरी हैं, कांग्रेस कार्यकर्ताओं में अलग ही जोश दिखता है. उन्हें पार्टी का महासचिव बनाया गया है लेकिन चुनाव लड़ेंगी या नहीं, लड़ेंगी तो किस सीट से, इस बारे में कुछ सामने नहीं आया है. कुल मिलाकर प्रियंका फिलहाल पार्टी से बिना कुछ मांगे काम कर रही हैं. गुरुवार को राहुल के लिए इमोशनल मैसेज लिखकर उन्होंने भाई-बहन के बीच प्रतिद्वंदिता की अटकलों पर अपनी ओर से तो विराम लगा दिया है और यही संदेश दिया है कि वो राहुल के साथ खड़ी हैं.
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