- लोकसभा सीट : वाराणसी - पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ 111 किसान चुनाव मैदान में उतरने को तैयार
- लोकसभा सीट : निजामाबाद - तेलंगाना के सीएम केसीआर की बेटी के. कविता के खिलाफ 250 किसान चुनाव मैदान में
पीएम से लेकर सीएम की बेटी तक को किसान आने वाले आम चुनावों में सीधी चुनौती दे रहे हैं. लेकिन इनका मकसद सांसद या मंत्री बनना नहीं बल्कि अपनी मांगें मनवाना है. एक के बाद एक सरकारों की अनदेखी से आजिज आकर किसानों ने अपनी बात कहने का ये लोकतांत्रिक तरीका चुना है.
नाबार्ड की एक स्टडी के मुताबिक, भारत में कुल 10 करोड़ से भी ज्यादा किसान हैं. इनमें से आधे से ज्यादा किसान कर्ज में डूबे हैं. साल 2017 में एक किसान की मासिक आय 8,931 रुपये बताई गई थी
तमिलनाडु के किसान वाराणसी में ठोंक रहे ताल
अपनी मांगों को लेकर पिछले कुछ सालों से लगातार अलग-अलग तरीके से प्रदर्शन करते आए तमिलनाडु के किसानों ने अब चुनाव लड़ने का फैसला किया है. कुल 111 किसान चुनावी मैदान में उतरने को तैयार हैं. लेकिन ये किसान तमिलनाडु से नहीं बल्कि पीएम मोदी की लोकसभा सीट वाराणसी से चुनाव लड़ने वाले हैं. हालांकि किसानों ने कहा है कि अगर बीजेपी अपने मैनिफेस्टो में हमारी मांगों को शामिल करती है और आश्वासन देती है तो वो चुनाव लड़ने का फैसला टाल सकते हैं.
तेलंगाना में भी किसान लड़ रहे चुनाव
वाराणसी की तरह ही तेलंगाना में भी किसान नाराज होकर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं. तेलंगाना के सीएम केसीआर की बेटी के. कविता के खिलाफ कुल 250 नाराज किसानों ने पर्चा दाखिल किया है. ये किसान हल्दी के न्यूनतम समर्थन मूल्य को बढ़ाने के लिए ऐसा कर रहे हैं. किसानों ने निजामाबाद लोकसभा सीट से पर्चा दाखिल कर दिया है.
आंदोलन कर-करके थक गए किसान
भारत ने पिछले कुछ सालों में कई बड़े किसान आंदोलनों को देखा है. हजारों-लाखों की संख्या में किसानों ने सड़कों पर उतरकर अपनी मांगों की गूंज सरकार के कानों तक पहुंचाने की कोशिश की है. लेकिन हर बार आश्वासन देकर उन्हें लौटा दिया जाता है. ये हैं पिछले साल के कुछ बड़े किसान आंदोलन
- नासिक से मुंबई तक 30 हजार किसानों का बड़ा मार्च
- ऑल इंडिया किसान महासभा का रामलीला मैदान से संसद तक मार्च
- राजस्थान के हजारों किसानों का जयपुर कूच
- गन्ना की कीमतों और कर्जमाफी को लेकर हरियाणा के किसानों का दिल्ली कूच और बॉर्डर पर पुलिस से झड़प
- ऑल इंडिया किसान संघर्ष कोऑर्डिनेशन कमेटी में देशभर के हजारों किसानों ने लिया हिस्सा (योगेंद्र यादव ने की अगुवाई में)
तमिलनाडु के किसानों ने दिल्ली में भी कई दिनों तक प्रदर्शन किया था. दिल्ली के जंतर-मंतर पर इन किसानों ने सड़क पर रखकर खाना खाया, अपना मूत्र पिया, नग्न होकर प्रदर्शन किया और अपने आधे बाल तक मुंडवा दिए थे
कांग्रेस का किसानों पर दांव
कांग्रेस किसानों के मुद्दे पर पहले से ही फ्रंट फुट पर है. राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में सरकार बनते ही कांग्रेस ने किसानों की कर्जमाफी की घोषणा कर दी थी. जिसके बाद राहुल गांधी किसानों के मुद्दे को लेकर केंद्र सरकार पर निशाना साधते आए हैं. राहुल गांधी अपनी कई रैलियों में पूरे देश के किसानों का कर्जमाफ करने की बात भी कह चुके हैं. अब कर्जमाफी का यह दांव लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के कितने काम आता है यह देखना दिलचस्प होगा. किसान कर्जमाफी को लेकर राहुल के वादों पर कितना यकीन करते हैं, ये रिजल्ट के बाद ही पता लग पाएगा.
देशभर के किसान लगातार कई सालों से बेहतर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की मांग कर रहे हैं. किसानों के हितों के लिए आई स्वामीनाथन रिपोर्ट की सिफारिशों को लागू करने के लिए भी किसान आंदोलन हुए हैं
चुनाव आते ही सरकार ने भी बनाया किसान को ‘भगवान’
किसानों को लेकर बीजेपी ने भी योजनाएं शुरू की हैं. भले ही कुछ देरी से और चुनाव नजदीक आते ही ये योजनाएं जमीन पर उतरी हैं, लेकिन इससे कहीं न कहीं कुछ किसानों को राहत मिल सकती है. हालांकि कुछ किसान नेता इसे चुनावी लॉलीपॉप भी बता रहे हैं. अंतरिम बजट में किसानों के लिए सरकार ने अपना लक्ष्य बताया और कहा कि हम चाहते हैं 2022 तक किसानों की आय दोगुनी हो जाए. बजट 2019 में किसानों के लिए कुछ घोषणाएं हुईं.
- आलू-प्याज और टमाटर की फसलों के लिए ऑपरेशन ग्रीन
- छोटे और सीमांत किसानों के लिए प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना (6 हजार रुपये प्रतिवर्ष)
- किसानों के लिए बजट में एमएसपी लागत से कम से कम 50 प्रतिशत अधिक
अब कांग्रेस और बीजेपी के घोषणा पत्रों में किसानों के कौन से मुद्दे सबसे पहले जगह लेते हैं, इस पर सबकी नजरें हैं. किसानों को भी राजनीतिक पार्टियों से उम्मीदे हैं. कई किसान संगठन अपनी मांगों को घोषणा पत्र में शामिल करने की मांग कर रहे हैं.
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