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रोज का डोज : चुनावी पिच पर बीजेपी संभाल पाएगी ‘दूसरा’?  

लोकसभा चुनाव में दूसरे चरण के मतदान बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती

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क्रिकेट में एक तरह की बॉलिंग होती है जिसे दूसरा कहते हैं. सकलैन मुश्ताक, हरभजन सिंह और मुरलीधरन जैेसे स्पिनर कई बार ये गेंद फेंकते हैं. इसमें गेंद शुरू में तो एक लगती है लेकिन पिच पर गिरने के  बाद दूसरी साबित होती है. बल्लेबाज समझ नहीं पाता कि गेंद कौन सा टर्न लेगी और विकेट गंवा देता है. लोकसभा चुनाव 2019 के लिए दूसरे चरण का मतदान बीजेपी के लिए यही दूसरा साबित हो सकता है. इस फेज में करीब 12 करोड़ वोटर 1644 उम्मीदवारों की किस्मत तय करेंगे. कुल 95 सीटों पर वोट पड़ेंगे. पहले ये देख लीजिए कि किन राज्यों की  किन सीटों पर वोट पड़ने हैं-

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लोकसभा चुनाव में दूसरे चरण के मतदान बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती
लोकसभा चुनाव में दूसरे चरण के मतदान बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती
लोकसभा चुनाव में दूसरे चरण के मतदान बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती

NDA के सामने C-65 बचाने की चुनौती

बाहर से लग सकता है कि दूसरा चरण बीजेपी और एनडीए संभाल लेगी लेकिन जिन राज्यों में चुनाव हैं उनके अंदर घुसेंगे तो असली तस्वीर दिखेगी. जिन 95 सीटों पर सेकंड फेज में वोट पड़ने हैं उनमें से 26 फिलहाल बीजेपी के पास हैं और 35 AIADMK के पास, 4 सीटें शिवसेना के पास भी हैं....यानी एनडीए के पास 65 कॉन्सटिच्वेंसी (C-65) हैं. टैली बढ़ाने की बात तो दूर उसके सामने यही 65 बचाने की चुनौती है. क्या बीजेपी अपने ये ‘स्पेशल-26’ बचा पाएगी? क्या AIADMK 35 का पहाड़ा फिर दोहराएगी? आइए अंदाजा लगाते हैं

तमिलनाडु

तमिलनाडु में जयललिता के निधन के बाद AIADMK की हालत खराब हुई है. मजबूत लीडरशिप की कमी का खामियाजा पार्टी को उठाना पड़ सकता है. दूसरी तरफ DMK का चेहरा रहे करुणानिधि भी अब नहीं हैं लेकिन उनके बेटे स्टालिन ने काफी हद तक उनकी कमी पूरी की है. यहां एनडीए में सहयोगी AIADMK के खिलाफ एंटी इनकमबैंसी भी है. लिहाजा AIADMK फिर से 35 सीटें निकाल पाएगी, उम्मीद कम है.

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कर्नाटक

बाकी राज्यों में बीजेपी के पास जो 26 सीटें हैं, इस बार वो उन सब पर जीतेगी, इसकी उम्मीद कम दिखती है. सेकंड फेज में कर्नाटक में जिन 14 सीटों पर वोट पड़ने हैं उनमें 6 पर अभी बीजेपी के सांसद हैं. लेकिन विधानसभा चुनाव के नतीजों से साफ है कि वहां जनता का मूड बदला है. कांग्रेस-जेडीएस के पहली बार साथ आने का असर भी दिखेगा. कर्नाटक में आईटी के छापों को कुछ चुनावी पंडित बीजेपी की इसी बेचैनी से जोड़कर देखते हैं.

महाराष्ट्र में 18 अप्रैल को 10 सीटों पर वोट पड़ने हैं. इनमें से आठ पर अभी या तो बीजेपी या फिर शिवसेना काबिज है. लेकिन कांग्रेस और एनसीपी के तगड़े गठबंधन और राज ठाकरे के भी साथ आने से बीजेपी-शिवसेना अपना 8 का आंकड़ा बरकरार रख पाएंगी, इसमें भी शक है.

छत्तीसगढ़

गुरुवार को यहां जिन तीन सीटों पर मतदान होना है इन तीनों पर बीजेपी के सांसद हैं. लेकिन 2018 के विधानसभा चुनावों में जो बीजेपी 49 सीटों से 15 पर सिमट गई, उससे चंद महीनों बाद ही हो रहे लोकसभा चुनावों में किसी जादू की उम्मीद नहीं की जा सकती.

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उत्तर प्रदेश

वेस्टर्न यूपी की आठ सीटों पर भी 18 अप्रैल को वोट पड़ने हैं. पहले चरण में इसी इलाके की आठ सीटों पर कम वोट पड़ने को विश्लेषक बीजेपी के खिलाफ जाता आंक रहे हैं. दूसरी बात ये है कि इस बार राज्य में बीएसपी और एसपी की तगड़ी दोस्ती हो गई है. इसलिए यहां भी बीजेपी पिछली बार की तरह कमाल करेगी, इसकी उम्मीद कम ही है.

कुल मिलाकर दूसरे चरण की 95 सीटों पर एनडीए की टैली 65 से काफी कम रह सकती है. और अगर ऐसा हुआ तो आगे के पांच चरणों के लिए टोन सेट हो जाएगा.

भोपाल से साध्वी प्रज्ञा क्यों?

जिस भोपाल लोकसभा सीट पर 1989 से लगातार बीजेपी जीत रही है, वहां से उसने साध्वी प्रज्ञा सिंह को टिकट दिया है. भोपाल से साध्वी को लड़ाने के फैसले से दो बातें साफ हैं. मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव हारने के बाद पार्टी की लाइन-लेंथ खराब हो गई है. जिस विकास और काम का दंभ पार्टी अपने चुनाव प्रचारों में कर रही है उसके बूते दाम मिलने की उम्मीद लगता है खुद उसे भी नहीं है. यही वजह है कि पार्टी ने भोपाल में पोलराइजेशन की अपनी पुरानी गेंद फेंकी है.

अपने तीखे बयानों के लिए मशहूर/कुख्यात साध्वी प्रज्ञा ठाकुर 2008 में महाराष्ट्र के मालेगांव में एक मस्जिद के पास बम ब्लास्ट केस की आरोपी हैं. इस बलास्ट में 7 लोगों की मौत हुई थी और 100 लोग जख्मी हुए थे. इस मामले में साध्वी नौ साल तक जेल में थीं और फिलहाल जमानत पर हैं. 

प्रज्ञा सिंह की छवि कट्टर हिंदुत्व की है, इसके बावजूद पार्टी ने उन्हें भोपाल से टिकट दिया है तो उसकी मजबूरियां समझी जा सकती हैं. मध्य प्रदेश में 15 साल से सत्ता में बैठी बीजेपी को पिछले साल जनता ने बाहर कर दिया. पार्टी विधानसभा की 165 सीटों से घटकर 114 पर आ गई. जितनी सीटों का बीजेपी को घाटा हुआ, वो सारी कांग्रेस के पास चली गईं. तो 2018 का दर्द अभी खत्म नहीं हुआ है.

भोपाल की करीब दो तिहाई आबादी हिंदू है, ऐसे में हिंदुत्व का एजेंडा बीजेपी के पास आखिरी दांव है. इसके साथ ही पार्टी अपनी विचारधारा में भरोसा रखने वाले देश के तमाम वोटरों को भी एक संदेश देना चाहती है.

प्रज्ञा का मुकाबला एमपी के पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह से है. दिग्विजय सिंह को ठाकुरों का भरोसा तो है ही, सीट की करीब 26 फीसदी मुस्लिम आबादी से भी बड़ी उम्मीद है.

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