उत्तराखंड (Uttarakhand) में कड़ाके की ठंड के बीच चुनावी बिगुल भी फूंका जा चुका है. प्रदेश के राजनीतिक इतिहास को देखें तो यहां सत्ता में देश की दो बड़ी राजनीतिक पार्टियों का ही वर्चस्व रहा है. ऐसे में समझना जरूरी है कि इस चुनाव में राज्य के लिए बड़े मुद्दे क्या हैं? वादे तो फिर हर ओर से हो रहे हैं लेकिन बदलाव के नाम पर प्रदेश को मिले हैं सिर्फ 21 साल में 11 मुख्यमंत्री!
पार्टियों की नजर में क्या है उत्तराखंड के चुनावी मुद्दे
इस बार प्रदेश में विधानसभा चुनावों के लिए बड़ी पार्टियों में कांग्रेस और बीजेपी के साथ आम आदमी पार्टी भी अपनी ताल ठोक रही है.
हाल ही में चुनाव प्रचार के लिए हल्द्वानी आए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने टनकपुर-बागेश्वर रेल लाइन, ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाइन, ऑलवेदर रोड को लेकर हो रहे काम को ऐतिहासिक बताया.
वहीं देहरादून में हुई रैली के दौरान राहुल गांधी ने अपने संबोधन को उत्तराखंड से सेना में गए जवानों पर केंद्रित रखा.
आप पार्टी के अरविंद केजरीवाल ने कहा कि रिटायरमेंट के बाद जवानों को भटकना नहीं पड़ेगा. अगर उत्तराखंड में ‘आप’ की सरकार बनती है तो भूतपूर्व सैनिकों को सीधे सरकारी नौकरी दी जाएगी. उन्होंने ये भी कहा कि आप की सरकार आने के बाद अगर राज्य का रहने वाला सैनिक कहीं भी शहीद होगा, उनके परिवार को आम आदमी पार्टी के मुख्यमंत्री कर्नल (सेवानिवृत्त) अजय कोठियाल उनके घर जाकर एक करोड़ रुपए का चेक सौंपेंगे.
प्रदेश के असल मुद्दों का डीएनए
नेताओं की नजर से देखा जाए तो लगता है कि उन्होंने उत्तराखंड में सेना की तैयारी कर रहे युवाओं और सेना में सेवा दे रहे जवानों पर ही अपना ध्यान केंद्रित रखा है. पर वास्तव में उत्तराखंड के मुद्दे इससे कहीं वृहद हैं, उत्तराखंड का युवा सेना के सिवाय अन्य जगह भी अपने लिए रोजगार की राह तलाशता है.
उत्तराखंड वासियों को कोरोना काल के बाद से उपजे हालातों की वजह से अपने प्रदेश वापस लौटना पड़ा है और अब वह अपने प्रदेश का विकास चाहते हैं.
सबसे महत्वपूर्ण है रोजगार
प्रदेश के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की विधानसभा सीट खटीमा के ही एक युवा गोविंद से हमारी बात हुई अन्य युवाओं की तरह उनका भी कहना था कि रोजगार के नाम पर इस सरकार ने कुछ नही किया. जरूरत इस बात की है कि प्रदेश में कुछ वर्षों पहले जैसी शिक्षा व्यवस्था बनाई जाए.
पहले सरकारी स्कूलों में ही पढ़ा जाता था, अब छात्रों को प्राइवेट स्कूलों की तरफ धकेला जा रहा है. कम वेतन प्राप्त कर रहे अभिवावकों के लिए अपने बच्चों को इन महंगे स्कूलों में पढ़ाना मुश्किल होता जा रहा है और इन स्कूलों में पढ़ाने के बाद भी बच्चों के सफल भविष्य की कोई गारंटी नहीं है.
कोरोना काल में वर्तमान सरकार
कोरोना काल में राशन बांटने को लेकर नैनीताल में फड़ लगाने वाले कुछ लोगों ने बातचीत के दौरान सरकार के कार्यों की तारीफ की. कपड़ों की फड़ लगाने वाले अंगत लाल मौर्य की पत्नी कहती हैं कि जब कुछ नहीं था तब सरकार की इन योजनाओं से बहुत मदद मिली. उनके साथ ही कपड़े का ही फड़ लगाने वाले रोहित जाटव भी कहते हैं कि यह योजनाएं हम गरीबों के लिए वरदान है.
टनकपुर-बागेश्वर रेल लाइन
टनकपुर-बागेश्वर रेल लाइन सर्वे पर टनकपुर के युवा मयंक पन्त कहते हैं कि यह अब कोई बड़ा चुनावी मुद्दा नही रहा क्योंकि सर्वे की बात सुन-सुन कर हम थक चुके हैं. हर सरकार आती है और इस रेलवे लाइन के फाइनल सर्वे की बात कह जाती है.
स्वास्थ्य सेवा
प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था पर देहरादून के वरिष्ठ पत्रकार त्रिलोचन भट्ट कहते हैं कि प्रदेश की स्वास्थ्य सेवा दयनीय हैं. पहाड़ी क्षेत्रों में गर्भवती महिलाओं के हाल बेहाल हैं, प्रसव कराने उन्हें गांव वाले कंधे पर उठा कई किलोमीटर दूर स्थित अस्पताल पहुंचाते हैं. प्रदेश की दोनों बड़ी पार्टियों ने इस मामले में अब तक निराश ही किया है.
भू कानुन का मुद्दा
पिछले एक-दो साल से उत्तराखंड में भूकानून लागू कराने की मांग ने सोशल मीडिया पर जोर पकड़ी है और यह एक बड़ा चुनावी मुद्दा भी है. भू कानून पर वरिष्ठ पत्रकार पलाश विश्वास कहते हैं कि
इस कानून को पास कराने का नाटक आम जनता, खासकर किसानों को यह भरोसा दिलाने के लिए अनिवार्य है कि वे इस गलत फहमी में रहें कि कानून के मुताबिक ही उनको हलाल या झटके से मार दिया जायेगा. गैर कानूनी कुछ भी नहीं होगा.
ऑल वेदर रोड
नैनीताल से टूरिज्म एडमिनिस्ट्रेशन एंड मैनेजमेंट के शोध छात्र कमलेश जोशी ऑल वेदर रोड पर कहते हैं कि पहाड़ों में विकास के खिलाफ शायद ही कोई हो लेकिन विनाश की इस शर्त पर विकास शायद ही किसी उत्तराखंडी को मंजूर हो ,जिसमें पल-पल जानमाल का खतरा बना हुआ है. उत्तराखंड को सतत विकास की नितांत आवश्यकता है जो न सिर्फ वर्तमान पीढ़ी के लिए उपयोगी हो बल्कि आने वाली पीढ़ी के लिए भी बचा रहे. संसाधनों का सीमित दोहन व उपयोग सतत विकास की मूल अवधारणा है.
उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों की हकीकत देखी जाए तो लोगों को ऑल वेदर रोड से ज्यादा ऑल वेदर हैल्थ सर्विसेज, ऑल वेदर एजुकेशन, ऑल वेदर जॉब सैक्योरिटी तथा ऑल वेदर लिविंग कंडीशन की जरूरत है. जिस दिन ये बेसिक सुविधाएं हर मौसम में सुदूर पहाड़ी गांवों तक पहुंच जाएंगी ,उस दिन शायद ऑल वेदर रोड जैसी अवधारणाएं लोगों की समझ में आ पाएंगी.
जल जीवन मिशन
वर्ष 2019 की एक खबर थी कि उत्तराखंड राज्य जल नीति-2019 के मसौदे को मंजूरी दी गई है. राज्य में शुरू होने वाली यह जल नीति प्रदेश में उपलब्ध सतही और भूमिगत जल के अलावा हर वर्ष बारिश के रूप में राज्य में गिरने वाले 79,957 मिलियन किलो लीटर पानी को संरक्षित करने की कवायद है.
जल नीति में राज्य के 3,550 वर्ग किमी क्षेत्र में फैले 917 हिमनदों के साथ ही नदियों और प्रवाह तंत्र को प्रदूषण मुक्त करने और लोगों को शुद्ध पेयजल और सीवरेज निकासी सुविधा उपलब्ध कराने का भी प्रावधान किया गया है.
शायद इस नीति से एक साल में थोड़ा बहुत प्रभाव पड़ना शुरू हुआ होगा जिससे प्रभावित हो वर्ष 2020 में पीआईबी द्वारा दी गई एक सूचना के अनुसार केन्द्रीय जल शक्ति मंत्री श्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री श्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत को लिखे पत्र में आश्वस्त किया कि केंद्र सरकार उत्तराखंड को 2023 तक ‘हर घर जल राज्य’ बनाने में पूरा सहयोग देगी.
जल शक्ति मंत्री ने पत्र में बताया था कि उत्तराखंड को हर घर में नल से जल पहुंचाने की इस योजना को आगे बढ़ाने के लिए इस वित्त वर्ष में केंद्र की ओर से 362॰57 करोड़ रुपये की मंजूरी दी गई है. यह राशि वर्ष 2019-20 में इस कार्य के लिए दी गई 170॰53 करोड़ के दोगुने से भी अधिक है. पत्र में बताया गया कि इस अभियान के लिए राज्य सरकार के पास इस समय इस अभियान के लिए 480.44 करोड़ की बड़ी राशि उपलब्ध है जिसमें राज्य सरकार का अंशदान और पिछले वर्ष उपयोग न लाई जा सकी राशि शामिल है.
इंडिया वाटर पोर्टल के अनुसार इसी मुहिम को आगे बढ़ाते हुए उत्तराखंड सरकार ने बजट 2020-21 में 1165 करोड़ रुपये का प्रावधान किया है. 1165 करोड़ रुपये की लागत से प्रदेश के लोगों को पीने का साफ पानी मिल सकेगा.
जल जीवन मिशन की महत्ता पर प्रदेश के नौलों को पुनर्जीवित करने में लगे नौला फाउंडेशन बगवालीपोखर रानीखेत के संस्थापक अध्यक्ष बिशन सिंह कहते हैं कि पानी के लिये तरसते पहाड़ के लिये जल जीवन मिशन एक वरदान साबित होगा पर उत्तराखंड में ये जल्दबाज़ी में स्थानीय समुदायों की सहभागिता के बग़ैर लिया गया फैसला है. जिसमें योजना के सही ढंग से कार्यान्वित होने में संदेह है.
जल जीवन मिशन की सार्थकता सीमित रुप से उपलब्ध भूजल के बजाय पहाड़ के परम्परागत जल स्रोतो नौलों-धारों पर आधारित होनी चाहिये, जिससे दीर्घकालीन योजना चलेगी अन्यथा हैंडपम्पों की तरह ही यह योजना भी बेकार हो जाएगी. स्थानीय भागीदारी ही जल संरक्षण को सही दिशा दे सकती है.
प्रदेश में बदलते रहते सीएम भी रहेगा एक मुद्दा
शायद भारत में उत्तराखंड एकमात्र ऐसा प्रदेश है, जहां कपड़ों की तरह मुख्यमंत्रियों को बदला जा रहा है. बीजेपी हो या कांग्रेस प्रदेश की सियासत के फरमान दिल्ली से ही जारी किए जाते हैं, जो इस छोटे से पहाड़ी राज्य से खिलवाड़ ही ज्यादा नजर आता है. ऐसा लगता है कि जनता को राजनीतिक दलों ने बहुत पहले ही हाशिए पर छोड़ दिया और इस सूबे को अपने सियासी प्रयोगों की जमीन में तब्दील कर दिया है. उत्तराखंड की जनता मुख्यमंत्री पद का ऐसा उम्मीदवार चाहती है जो पांच साल तक टिकने में सक्षम हो.
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