पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव 2021 में 'खेला होबे' नारे का जमकर इस्तेमाल करने वाली तृणमूल कांग्रेस ने आखिरकार बीजेपी का खेल खराब कर दिया है. चुनाव आयोग की वेबसाइट पर दी गई जानकारी के मुताबिक, टीएमसी 210 सीट जीत चुकी है, जबकि वो 3 सीटों पर आगे चल रही है. वहीं बीजेपी 76 सीटों पर जीत चुकी है और एक सीट पर उसने बढ़त बनाई हुई है. टीएमसी के वोट शेयर की बात करें तो उसे 47.93 फीसदी वोट मिले हैं. वहीं बीजेपी के खाते में 38.13 फीसदी वोट गए हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के नेतृत्व में बीजेपी से मिली एक मुश्किल चुनौती का सामना करते हुए ममता ने दिखा दिया है कि अभी भी बंगाल में उनका असर बाकी है.
कोरोना वायरस महामारी के भारी कहर के बीच, बंगाल में 27 मार्च से 29 अप्रैल के बीच 8 चरणों में लंबी मतदान प्रक्रिया चली थी. इस दौरान राज्य की कुल 294 सीटों में से 292 पर वोटिंग हुई थी. ऐसे में बाकी दो सीटों पर चुनाव से पहले अभी बहुमत का आंकड़ा 147 का होगा.
टीएमसी ने पश्चिम बंगाल के पिछले दो विधानसभा चुनावों (2011 और 2016) में क्रमशः 184 और 211 सीटें जीतकर पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाई थी. बात बीजेपी की करें तो साल 2011 के चुनाव में जहां उसका खाता भी नहीं खुला था, वहीं 2016 के चुनाव में उसे महज 3 सीटें ही मिली थीं. मगर बीजेपी ने अब राज्य की राजनीति में अपना मजबूत कद बना लिया है.
चुनावी दंगल में बीजेपी और टीएमसी के बड़े दांव-पेंच क्या रहे?
चुनावी अभियान के दौरान बीजेपी पश्चिम बंगाल में खुलकर हिंदुत्व का कार्ड खेलती दिखी. उसने अपनी कैंपेनिंग में लगातार दुर्गा पूजा, सरस्वती पूजा और जय श्रीराम के नारे जैसे धार्मिक मुद्दों का जिक्र किया.
वैसे तो पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों की तरह जातीय या धार्मिक धुव्रीकरण के लिए नहीं जाना जाता, मगर साल 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने जब मुस्लिम तुष्टीकरण के आरोप लगाकर टीएमसी को घेरना शुरू किया तो यहां की राजनीति में धार्मिक धुव्रीकरण ने कुछ हद तक दस्तक दी. बीजेपी ने उस वक्त यहां हिंदुत्व की राजनीति को 'राष्ट्रवाद' के तड़के साथ भुनाया था और राज्य की 42 लोकसभा सीटों में से 18 सीटों पर जीत हासिल करके चौंकाने वाला प्रदर्शन किया था.
उधर, बीजेपी को रोकने के लिए ममता बनर्जी ने अपनी रैलियों में खुद के ब्राह्मण होने पर भी जोर दिया और चंडी पाठ भी किया. इतना ही नहीं मुस्लिम वोटों को साधते हुए बनर्जी ने हुगली की एक रैली में मुसलमानों से अपने वोटों का बंटवारा न होने देने की अपील भी की.
बंगाल की चुनावी जंग में बीजेपी ने ममता बनर्जी के भतीजे और सांसद अभिषेक बनर्जी को लेकर भाई-भतीजावाद का आरोप लगाया. बीजेपी टीएमसी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाकर भी उसे घेरने में जुटी रही. बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा था कि पश्चिम बंगाल की जनता को ‘कटमनी’ और ‘टोलाबाजी’ (वसूली) से मुकाबले के लिए टीके की जरूरत है. उन्होंने आरोप लगाया था कि टीएमसी सरकार भ्रष्टाचार और अराजकता का प्रतिनिधित्व करती है.
दूसरी तरफ, अभिषेक बनर्जी ने पलटवार करते हुए बीजेपी पर ऐसा सिंडिकेट चलाने का आरोप लगाया जोकि ''मृतक प्रमाणपत्र जारी करने तक के लिए घूस वसूलता है.''
बीजेपी ने टीएमसी के अंदर की कलह को भुनाने की भी पूरी कोशिश की. चुनाव से पहले शुभेंदु अधिकारी और राजीव बनर्जी जैसे बड़े नामों समेत बड़ी संख्या में नेता टीएमसी छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए.
बीजेपी ने बंगाल के विकास के लिए ‘लोक्खो सोनार बांग्ला’ (स्वर्ण बंगाल बनाने का लक्ष्य) मुहिम पर भी जोर दिया. हालांकि, बीजेपी के पास पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी जैसा कद रखने वाला कोई स्थानीय नेता नहीं था. ऐसे में उसके चुनावी प्रचार में राज्य से बाहर के नेताओं का दबदबा दिखा. टीएमसी ने इसे ‘स्थानीय बनाम बाहरी’ का मुद्दा बनाकर भुनाने की पूरी कोशिश की. उसने इस लड़ाई को ममता Vs मोदी बनाते हुए कहा कि बंगाल पर गुजरात का शासन नहीं चलेगा.
10 मार्च को ममता बनर्जी के नामांकन दाखिल करने के बाद पूर्वी मिदनापुर जिले के नंदीग्राम स्थित बिरुलिया बाजार में एक घटना हुई, जिसमें उनके बाएं पैर, सिर और छाती में चोट लग गई. चोटिल होने के करीब चार दिन बाद ही बनर्जी ने सड़क पर उतर कर संघर्ष करने की अपनी छवि के अनुरूप व्हीलचेयर पर बैठकर टीएमसी के एक रोड शो का नेतृत्व किया.
उन्होंने प्रतिद्वंद्वी दलों को आगाह करते हुए ऐलान किया कि एक घायल बाघ कहीं अधिक खतरनाक होता है. इसके बाद ममता व्हीलचेयर पर बैठकर ही चुनाव प्रचार करती आईं.
तृणमूल कांग्रेस ने दावा किया था कि यह ‘‘उनकी जान लेने का बीजेपी का षड्यंत्र था.’’ हालांकि, चुनाव आयोग ने इससे इनकार किया कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री पर कोई हमला हुआ था. चुनाव आयोग ने यह बात आयोग के दो विशेष चुनाव पर्यवेक्षकों और राज्य सरकार की ओर से भेजी गई रिपोर्टों की समीक्षा के बाद कही.
ममता सरकार पर बीजेपी ने केंद्र की योजनाओं को सही से लागू न करने के आरोप भी लगाए. हालांकि इस बीच, टीएमसी ममता सरकार की प्रमुख योजनाओं के दम पर वोटरों को अपनी तरफ खींचने की कोशिश करती रही, जिसमें 'स्वास्थ्य साथी' योजना, महिला केंद्रित कई योजनाएं (कन्याश्री, रूपोश्री आदि), सस्ता खाना मुहैया कराने वाली मां कैंटीन योजना प्रमुख हैं. कुल मिलाकर टीएमसी ने बीजेपी को एक कड़ी लड़ाई में मात देकर देश की राजनीति में क्षेत्रीय दलों के लिए उम्मीदों की एक राह को खुला रखा है.
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