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‘इरफान की शख्सियत बयान करने वाला शब्द डिक्शनरी में भी नहीं’ 

जहां तक इरफान की अभिनय क्षमता का सवाल है, तो उसपर किसी को शक नहीं.

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इरफान को मैंने हमेशा ‘सर’ कहकर पुकारा है. निश्चित रूप से वो शख्स इस सम्मान का हकदार है. ना सिर्फ अपने उम्दा काम के कारण, बल्कि एक इंसान की हैसियत से और इस मुकाम तक पहुंचने के लिए तय किए गए कठिन सफर के लिहाज से भी.

लेकिन पाठकों की सहूलियत के लिए आज मैं ये बंदिश तोड़ता हूं और उन्हें सिर्फ इरफान कहकर पुकारता हूं. डर लगता है कि बार-बार ‘सर’ कहने पर कहीं व्याकरण की अशुद्धियां न हो जाएं.

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जब मुझे इरफान के बारे में लिखने को कहा गया, तो जेहन में पहला सवाल कौंधा कि ‘उस शख्स की व्याख्या के लिए कौन सा शब्द सबसे सटीक है?’

उस व्यक्ति के नाम के आगे सारे उत्कृष्ट शब्द लगाए जा चुके हैं, चाहे उसकी बेहतरीन अदाकारी हो, या हाल में दिखी उसकी नैतिक मजबूती. फिर भी मैं चाहता था कि उनके साथ बिताए दो साल से ज्यादा समय की आत्मीयता को अलग अंदाज में पेश किया जाए.

उनके साथ मेरा सम्पर्क बना, जब उन्हें कारवां की कहानी सुनाई गई, और हाल में उन्हें बताया गया कि ये फिल्म फ्लोरेंस के फिल्म फेस्टिवल के लिए चुनी गई है. उस लिहाज से उस शख्स की शख्सियत बताने के लिए मुझे जो शब्द सबसे सटीक जान पड़ता है, वो है ‘डिजार्मिंग’.

शब्दकोष में पर्याय के रूप में ‘विनिंग’, ‘चार्मिंग’, ‘इर्रेजिस्टिबल’ जैसे शब्द भी मिलेंगे. लेकिन कैम्ब्रिज डिक्शनरी को भी उस शख्सियत की पूरी व्याख्या के लिए नए शब्द खोजने की आवश्यता है. वो हैं ही ऐसे शख्स, जो न सिर्फ खुद शांत रहते हैं, बल्कि ‘एक असहज व्यक्ति को भी अप्रत्याशित रूप से सहज बना देते हैं.’

उनकी इस खासियत को विस्तार से बताने की आवश्यकता है, और इसके लिए मेरी कहानी से बेहतर कुछ भी नहीं. पहली बार फिल्म बनाने वाला एक फिल्म निर्माता अपनी स्क्रिप्ट के साथ देश के सबसे बेहतरीन अदाकारों में एक से मिलने जाता है. वो शख्स बिल्कुल सहमा हुआ है, क्योंकि वो इरफान से मिलने जा रहा है. इरफान, यानी एक ऐसा कलाकार, जिसकी अदाकारी के मुरीद वेस एंडरसन, अनुराग बसु, विशाल भारद्वाज, डैनी बॉयल, तिग्मांशु धूलिया, रॉन हॉवर्ड, ऐंग ली, मीरा नायर, शुजित सिरकार और माइकल विंटरबॉटम जैसे दिग्गज हैं.

‘उनसे पहली मुलाकात के वक्त मैं बहुत नर्वस था’

जहां तक इरफान की अभिनय क्षमता का सवाल है, तो उसपर किसी को शक नहीं.

उस कलाकार के लिए मेरे दिल में भी सम्मान है. क्योंकि उसने स्टीवन स्पिलबर्ग के जुरासिक वर्ल्ड में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, जिस स्टीवन स्पिलबर्ग को मैं बचपन से पूजता आया हूं. आप समझ गए होंगे कि मैं मुलाकात के वक्त कितना नर्वस था. मेरी हौसला अफजाही के लिए सिर्फ एक शख्स साथ में थे. वो थे मेरे दोस्त और मशहूर पटकथा लेखक हुसैन दलाल.

हम दोनों इरफान से मिलने दिल्ली में एक होटल के सूइट में पहुंचे. हुसैन और इरफान पहले भी साथ काम कर चुके थे, लिहाजा दोनों गर्मजोशी से मिले. मैं इतना घबराया हुआ था कि अचानक मुझे प्यास लग गई. मेरा परिचय कराया गया तो इरफान ने मेरे बारे में जानकर खुशी जताई. मैंने राहत की सांस ली.

हम दोनों कहानी सुनाने लगे और वो ध्यानपूर्वक सुनने लगे. बीच में मुझे लगा कि उन्हें कहानी में रुचि नहीं है. जैसे-तैसे हमने कहानी समाप्त की. खत्म होने के साथ उन्होंने स्क्रिप्ट की तारीफ की और कहा, अगर आप लोगों को ऐतराज न हो, तो क्या मैं शौकत की भूमिका अदा कर सकता हूं?
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अब तक ये स्क्रिप्ट लेकर मैं कई अभिनेताओं से मिल चुका था. उनकी व्यग्रता, उपेक्षा और उदासीनता झेल चुका था. सीधे ना-नुकुर करने के बजाय “मुझे सोचने दीजिए, मैं आपको बताता हूं” जैसे लफ्ज में इंकार सुन चुका था. लेकिन इरफान का रवैया इससे बिलकुल विपरीत था. बिलकुल शांत भाव से उन्होंने कहा “इसे जरूर करते हैं.”

जहां तक इरफान की अभिनय क्षमता का सवाल है, तो उसपर किसी को शक नहीं.
केरल में इरफान खान और आकर्ष खुराना फिल्म ‘कारवां’ की टीम के साथ
(फोटो: Facebook)

‘मेरा उन पर भारी क्रश था’

फिल्म की तैयारियों के दौरान अक्सर हमारी मुलाकात होती. ऐसी ही एक मुलाकात के दौरान उन्होंने कहा कि उन्होंने मेरा कुछ पुराना काम देखा है, लेकिन मजा नहीं आया. मैंने फौरन हाथ खड़ा कर दिया.

इसके बाद स्क्रिप्ट और उसके किरदार के बारे में उन्होंने एक के बाद एक कई सवाल किए. मैं किसी तरह उनके सवालों का जवाब देने की कोशिश करता रहा. मेरा दिल संशय से भर गया था और मैं भयभीत हो रहा था. सवाल-जवाब पूरा होने के बाद मैंने जानना चाहा कि हमारी अगली मुलाकात के बारे में उनकी क्या योजना है?

उन्होंने कहा कि वो एक फिल्म पूरी करने में जुटे हैं, जिसमें गोल्शिफ्तेह फरहानी भी हैं. मैंने उन्हें बताया कि मेरा उन पर भारी क्रश था. इस पर मुस्कुराते हुए उन्होंने कहा कि वो मेरी भावनाएं उन तक पहुंचा देंगे, और साथ में ये भी कहेंगे कि किसी दिन मैं उन्हें कहानी सुनाने आउंगा, क्योंकि हमारा साथ लम्बा खिंच सकता है.

मेरी सांस में सांस आई और सुकून भरी मुस्कान के साथ मैं चला गया. मैंने महसूस किया कि इरफान समय-समय पर आपकी जांच करते हैं. उनकी ये कोशिश आपको गहराई तक पहुंचाने की होती है. लेकिन वो ऐसा उसी के साथ करते हैं, जिसे वो पसंद करते हैं. फिल्म की शूटिंग के दौरान भी मैंने उन्हें कुछ लोगों के साथ यही करते हुए पाया, क्योंकि वो उन लोगों को पसंद करते थे.

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जहां तक इरफान की अभिनय क्षमता का सवाल है, तो उसपर किसी को शक नहीं.

हमारी शूटिंग हंसी-खुशी सम्पन्न हो गई. इरफान को केरल काफी पसंद आया. वैसे लोकेशन की खूबसूरती किसी भी नौसिखिये को राहत पहुंचाने वाली थी. वो फिल्म यूनिट के सभी सदस्यों के साथ मिलनसार थे, चाहे उसका पद और ओहदा कुछ भी हो. उनकी एक खासियत है कि वो किसी भी विषय पर विस्तार से बातें कर सकते हैं. खासकर क्षेत्रीय और वैश्विक सिनेमा उनके पसंदीदा विषय हैं.

‘गहराई के साथ अपने किरदार में समा जाते हैं’

जहां तक उनकी अभिनय क्षमता का सवाल है, तो उस पर किसी को शक नहीं. जैसे ही कैमरा रोल होता है वो गहराई के साथ अपने किरदार में समा जाते हैं. उनकी बारीकी स्क्रिप्ट की उम्मीदों से परे होती है. और खासकर हमारे सेट पर तो उन्हें मजाकिया ही रहना था.

डलकर अक्सर कहता कि अपना चेहरा सपाट बनाए रखना उनके लिए कठिन है. मिथिला स्वीकार करती हैं कि वो ऐसा नहीं कर सकतीं. कई लोग तो ये भी कहते पाए गए कि इरफान ने फिल्म में हंसोड़ किरदार का निर्माण स्वयं किया है. मुझे लगता है कि हुसैन की तारीफ में इससे बड़ा सम्मान और कुछ भी नहीं, क्योंकि अधिकांश डायलॉग स्क्रिप्ट में लिखे हुए थे और इरफान स्क्रिप्ट की पंक्तियों को आत्मसात करने में उस्ताद हैं. ऐसा कभी-कभार ही होता है, जब वो उसमें सुधार करते हैं.

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कुछेक बार हमारे बीच मतभेद भी उभरे. लेकिन मुझे लगता है कि इससे उन्हें अहसास हो गया कि मैं एक सोच को लेकर दृढ़ हूं. जबकि मुझे महसूस हुआ कि उनकी सलाह फिल्म को बेहतरीन बनाने के लिए हुआ करती थी. इससे हमारी आपसी संबंध और बेहतर हुए. यहां तक कि जब उन्होंने फर्स्ट कट देखा तो उनके फीडबैक काफी मददगार और निस्वार्थ साबित हुए.

इसके फौरन बाद उनकी बीमारी के बारे में पता चला, जिसपर किसी को विश्वास नहीं हुआ. मैंने कई बार लिखा, मिटाया और फिर उन्हें अपनी चिन्ता का संदेश भेजा. फौरन उनका जवाब आया. उन्होंने स्थिति के बारे में पूरी जानकारी दी, लेकिन परिपक्वता और दार्शनिकता के साथ. फिर उन्होंने ठिठोली भी की और नम आंखों से मुझे मुस्कुराने पर मजबूत कर दिया.

उस पल वो प्रतिक्रिया, वो गहराई तक पैठने वाला ज्ञान, और बुद्धिमत्ता का बेहतरीन मर्म... यहीं हैं इरफान.

(आकर्ष खुराना इरफान खान की फिल्म 'कारवां' के डायरेक्टर हैं. आकर्ष साल 2003 से फिल्में और 2014 से वेब सीरीज लिख रहे हैं. 2018 में फीचर फिल्म के डायरेक्टर के तौर पर 'हाईजैक' और 'कारवां' फिल्म से डेब्यू किया.)

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