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देवानंद: हर फिक्र को धुएं में उड़ाने वाला सिनेमा का सितारा

बॉलीवुड में हर सितारे का एक दौर होता है, लेकिन देवानंद ऐसे सदाबहार अभिनेता रहे, जिनका जलवा हमेशा कायम रहा. 

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बात 1943 की है. एक नौजवान अपनी जेब में 30 रुपये लेकर मुंबई पहुंचा. वो नौजवान बॉलीवुड के रुपहले पर्दे पर चमकना चाहता था. इस 30 रुपये से वो अपनी किस्मत चमकाना चाहता था. इस नौजवान का नाम था देवानंद.

देवानंद सिनेमा का वो सितारा, जो वक्त के हिसाब ने नहीं, बल्कि वक्त उसके हिसाब से चलता था.

6 दशक तक वो बॉलीवुड पर राज करते रहे. उनके सामने हर बड़ा सितारा फीका लगता था. कहानियां तो ऐसी भी हैं कि देवानंद को काले पैंट और सफेद शर्ट में देखकर लड़कियां गश खाकर गिर जाती थीं, जिसके बाद उनके इस पहनावे पर पाबंदी लगा दी गई थी.

बॉलीवुड में हर सितारे का एक दौर होता है, लेकिन देवानंद ऐसे सदाबहार अभिनेता रहे, जिनका जलवा हमेशा कायम रहा. 
देनानंद
(फिल्म स्टिल)
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देवानंद का जन्म 26 सितंबर 1923 को पंजाब के गुरदासपुर में हुआ था. उन्होंने 1942 में लाहौर के मशहूर गवर्नमेंट कॉलेज से पढ़ाई की. देवानंद इसके आगे भी पढ़ना चाहते थे, लेकिन पैसे की तंगी की वजह से उनके पिता आगे पढ़ाने को तैयार नहीं थे और उन्हें नौकरी करने की सलाह दी. नौकरी की तलाश में देवानंद मुंबई पहुंचे.  

मुंबई में देवानंद ने मिलिट्री सेंसर ऑफिस में नौकरी कर ली. एक साल तक मिलिट्री सेंसर में नौकरी करने के बाद वह अपने बड़े भाई चेतन आनंद के पास चले गए, जो उस समय भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) से जुड़े हुए थे. देवानंद ‘इप्टा’ में शामिल हो गए और यहीं से शुरू हुआ एक्टिंग का सफर.

हम एक हैं में मिला ब्रेक

देवानंद के हीरो बनने का सपना पूरा हुआ 1946 में फिल्म हम एक हैं से. इस फिल्म के बाद देवानंद को अशोक कुमार की फिल्म जिद्दी में ब्रेक मिला, उसके बाद तो धीरे-धीरे देवानंद रुपहले पर्दे पर छाने लगे. उस दौर में जब दिलीप कुमार और राजकपूर का बॉलीवुड में डंका बजता था, उस वक्त बतौर रोमांटिक हीरो देनानंद ने जो मुकाम हासिल किया, वो लोग आज भी नहीं भूल पाए हैं.

1948 में रिलीज हुई फिल्म जिद्दी देवानंद के फिल्मी करियर की पहली हिट फिल्म साबित हुई. इस फिल्म की कामयाबी के बाद उन्होंने फिल्म निर्माण के क्षेत्र में कदम रखा और नवकेतन बैनर की स्थापना की.

1958 में फिल्म काला पानी में देवानंद की जोड़ी बनी मधुबाला के साथ. फिल्म में दोनों सितारों की जबरजस्त केमिस्ट्री और फिल्म के गाने सुपरहिट हुए.

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दुनिया भर में सराही गई फिल्म 'गाइड'

1965 में देवानंद की पहली कलर फिल्म रिलीज हुई, जिसका नाम था गाइड. ये फिल्म मशहूर लेखक आरके नारायण के उपन्यास पर आधारित थी. फिल्म का निर्माण देव साहब के छोटे भाई विजय आनंद ने किया था.

इस फिल्म में देवानंद और वहीदा रहमान की बेमिसाल जोड़ी बनी. ये फिल्म उनकी बेहतरीन फिल्मों में से एक है. इस फिल्म ने देवानंद को बुलंदी पर पहुंचा दिया. फिल्म ऑस्कर के लिए भी नॉमिनेट हुई. इस फिल्म के लिए बेस्ट एक्टर का फिल्म फेयर अवॉर्ड भी मिला.

गाइड की सफलता के बाद देवानंद ने खुद निर्देशक बनने का फैसला किया. उन्होंने कई फिल्मों का निर्देशन किया, भले ही उनकी फिल्म कोई खास न चली हों, लेकिन फिल्मों में उनकी जिंदादिली और जोश देखने को मिला.

फिल्म प्रेम पुजारी के जरिए देवानंद ने पहली बार निर्देशन में हाथ आजमाया. हालांकि ये फिल्म कुछ खास नहीं चली, लेकिन उसके बाद आई फिल्म हरे रामा हरे कृष्ण फिल्म न सिर्फ हिट हुई, बल्कि इस फिल्म ने भारतीय नारी की अलग ही इमेज पेश की. जीनत अमान का किरदार उस दौर के हिसाब से काफी बोल्ड था और इस किरदार को गढ़ने का श्रेय जाता है देवानंद को. देवानंद ने अपनी फिल्मों में हमेशा नए-नए कलाकारों को मौका दिया.

बॉलीवुड में हर सितारे का एक दौर होता है, लेकिन देवानंद ऐसे सदाबहार अभिनेता रहे, जिनका जलवा हमेशा कायम रहा. उनकी फिल्मों की कहानी, उनकी अदाकारी और संगीत ऐसा, जिसे सदियों तक गुनगुनाया जाए. माना जाता है कि जब बॉलीवुड में संगीत अपनी पहचान बना रहा था, तब सबसे दिलकश तस्वीर उभरी देवानंद की.

रोमांटिक अंदाज हुआ हिट

50 और 60 का दशक हिंदी सिनेमा के लिए बेहतरीन साल रहा. इस दौर में कई खूबसूरत रोमांटिक कहानियां पर्दे पर आईं. मासूम प्रेम कहानियों में देव साहब की अदाकारी जान डाल देती थी. एक ऐसा स्टाइल, जहां अदाकार की इमेज को आगे रखकर किरदार गढ़े जाते थे. देव साहेब की अदाएं, उनके चलने-बोलने का अंदाज उनकी पहचान बन गई.

देवानंद-सुरैया की लव स्टोरी

देवानंद का नाम उस दौर की खूबसरत हिरोइन सुरैया के साथ जुड़ा, जिसे बॉलीवुड की पहली ग्लैमर गर्ल भी कहा जाता है, लेकिन किस्मत ने देवानंद और सुरैया को एक नहीं होने दिया. दोनों के लव स्टोरी की सबसे बड़ी पेच ये थी कि दोनों अलग-अलग धर्मों के थे.

सुरैया की नानी को ये कतई मंजूर नहीं था कि उनकी नातिन किसी और महजब के लड़के के साथ शादी करे. सुरैया की नानी ने ये ठान लिया था कि भले ही उनकी जान चली जाए, लेकिन वो सुरैया और देवानंद की शादी नहीं होने देंगी. आखिरकार सुरैया अपनी नानी के सामने मजबूर हो गईं और उन्होंने शादी के लिए इनकार कर दिया.

देवानंद ने तो बाद में शादी कर ली, लेकिन सुरैया ने कभी शादी नहीं की.

दुनिया को जिंदादिली का सबक सिखाने वाले देवानंद ऐसे कलाकार थे, जो जब तक सांस चली, तब तक काम करते रहे. 3 दिसंबर 2011 को लंदन में जब उन्होंने आखिरी सांस ली, उस वक्त भी उनके पास तीन फिल्मों की स्क्रिप्ट थी, लेकिन ऊपर वाले ने उनकी जिंदगी का आखिरी पन्ना लिख दिया था.

मौत दबे पांव आई और देव साहब इस दुनिया को छोड़कर चले गए. आज देवानंद भले ही इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन लाखों लोगों के दिलों में वो आज भी जिंदा हैं.

यह भी पढ़ें: सुरैया-देवानंद की मोहब्बत, जिसे मजहबी दीवारों ने एक नहीं होने दिया

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