साल 2012 में आई मिस लवली के बाद डायरेक्टर असीम अहलूवालिया एक बार फिर फिल्म डैडी के साथ वापस आ गए हैं.
फिल्म रियल लाइफ गैंगस्टर अरुण गवली पर आधारित है, जो एक गैंगस्टर से विधायक बनता है. डैडी में गवली की जिंदगी के कई पहलुओं का दिखाया गया है.
फिल्म में जब गवली अपनी बेटी से पूछता है कि लोग उसे रॉबिनहुड कहते हैं और इसका क्या मतलब होता है. इस पर गवली की बेटी कहती है, ''आप चोर हैं, पर विलेन नहीं''.
डैडी की कहानी अहलूवालिया और अर्जुन रामपाल ने लिखी है. गवली को एक पारिवारिक इंसान दिखाया गया है, जो कि हालात की वजह से एक पीड़ित बन जाता है.
अरुण गवली जैसे किरदार पर दर्शकों को फिल्म में बांधे रखना मुश्किल होता है, लेकिन इसे यहां ठीक-ठाक दर्शाया गया है.
गवली और उसका दोस्त बाबू (आनंद इंग्ले) और रामा (राजेश श्रीगांरपुरे) दागदी चॉल पर अपना हक जमाते हैं. 'भाई' बनके ये तीनों दादागिरी करना शुरू कर देते हैं और दूसरे डॉन मकसूद को चैलेंज देते हैं. मकसूद के करेक्टर को दाऊद जैसा दिखाया गया है.
गोलियों की आवाज पूरे शहर में गूंजने लगती है. खतरनाक गैंगवॉर शुरू हो जाती है और इन सबके बीच पुलिस और कानून कुछ नहीं कर पाते. जब तक कि इनवेस्टिगेंटिंग ऑफिसर विजयकर (निशिकांत) की एंट्री नहीं होती.
फिल्म का पहला हॉफ दर्शकों को बांधे रखता है.अर्जुन रामपाल पूरी फिल्म में अपने करेक्टर से कहीं नहीं भटके हैं और उनका मराठी अंदाज भी बराबर है. ऐश्वर्य राजेश जो कि गवली की पत्नी का किरदार निभा रही हैं, वो भी अपने रोल में परफेक्ट हैं. निशिकांत कामत भी पावरफुल दिख रहे हैं, जो कि अरुण गवली को जेल को जेल भिजवाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ते हैं.
फिल्म में दिल को छू जाने वाला पहलू है मुंबई को दोबारा 70 और 80 के दशक जैसा दर्शाना.
इंटरवल के बाद फिल्म फीकी पड़ जाती है. गवली की पत्नी और पुलिस ऑफिसर विजयकर के बीच की मुलाकात को भी ठीक से दर्शाया नहीं गया है.
गवली जो कर रहा है, उसने ये रास्ता क्यों चुना? कैसे आखिरकार उसका दिल बदल गया? ऐसे सवालों के जवाब सिर्फ ऊपर-ऊपर से मिलेंगे.
डैडी गैंगस्टर का बाप साबित नहीं हो पाई. हालांकि अर्जुन रामपाल और निशिकांत कामत के लिए आप ये फिल्म एक बार देख सकते हैं
मैं इसे दे रही हूं 5 में से 2.5 क्विंट.
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