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Good Luck Jerry Film Review: एक बार गुड लक तो मांगती ही है ये जैरी

Good Luck Jerry Film Review जान्हवी कपूर के किरदार बताया कि दबी सी दिखने वाली लड़की कमजोर नहीं होती

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आपको अपनी गली में चलती वो लड़की याद है, जो उस पर गीदड़ जैसी नजर गड़ाए लोगों से बचने का बहाना खोजते फोन पर बात करती जाती है या जमीन पर नजरें गड़ा कर कुछ ढूंढती रहती है. ऐसी लड़कियां अगर हिम्मत दिखा दे तो क्या कर सकती हैं, डिज्नी+ हॉटस्टार (Disney+ Hotstar) पर आई ये फिल्म 'गुड लक जैरी' में जान्हवी कपूर (Janhvi Kapoor) ने साबित कर दिया है ऐसी दबी सी दिखनी वाली लड़कियां हिम्मती बनकर कैसे बड़ा काम कर सकती है.

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निर्देशक सिद्धार्थ सेनगुप्ता ने इसका फिल्मांकन बखूबी करने में कामयाबी पाई है. सिद्धार्थ को एसिड फैक्ट्री और अग्निपथ जैसी फिल्मों में सहायक निर्देशक के रूप में काम करने का अनुभव है.

कैसी है कहानी

यह फिल्म साल 2018 में आई तमिल फिल्म 'कोलामावु कोकिला' पर आधारित है. इसमें पंजाब के अंदर चल रहे नशे के कारोबार को दिखाया गया है, फिल्म के शुरुआत में ही एक सन्देश दिखाया जाता है जिसे पढ़नाआवश्यक है 'नशा चाहे जैसा हो, होता ये बेकार, शरीर तोड़ता, बीमारी लाता, कर लेता लाचार'. फिल्म के इंट्रोडक्शन को बड़े रचनात्मक तरीके से कहानी का हिस्सा बनाया गया है. इसकी कहानी दर्शकों को थोड़ा सा उलझाती और थोड़ा सा गुदगुदाती भी है.

अभिनय के लिए वाहवाही बटोरेंगे जान्हवी और दीपक

फिल्म में दिखे लगभग सभी कलाकारों का अभिनय कमाल का है, बिना बोले अपना परिचय देने वाला दृश्य इसे साबित करता है. जान्हवी कपूर शुरू से अंत तक अपने किरदार में डूबी हुई लगती हैं, अगर आज श्रीदेवी जीवित होती तो एक आम लड़की की जिंदगी को पर्दे पर हूबहू उतरती अपनी बेटी पर उन्हें गर्व होता.

मीता वशिष्ट को फिल्म की शुरुआत में तो अपने अभिनय का जौहर दिखाने का मौका दिया गया है, जहां वह जान्हवी पर भारी पड़ती दिखी हैं पर बाद में उनके किरदार को सही तरीके से नही बुना गया.

सुशांत सिंह और जसवंत सिंह बड़े ही गम्भीर अभिनेता हैं पर फिल्म में जान्हवी के मुकाबले उन्हें कैमरे के सामने बहुत कम आने का मौका मिला है. दीपक डोबरियाल और साहिल मेहता को आप इस फिल्म के बाद हर फिल्म में देखना चाहेंगे.

ओंकारा और हिंदी मीडियम में काम कर चुके दीपक डोबरियाल के लिए यह फिल्म पुनर्जन्म के समान है, उन्होंने कई दृश्यों में दर्शकों का दिल जीता है.
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प्रयोग कर बनाई गई यह फिल्म

फिल्म की स्क्रिप्ट में संवादों का प्रयोग जम कर किया गया है. इसके हर दृश्य को देखते और सुनते आपको कुछ नयापन-सा हमेशा महसूस होगा. साहिल मेहता द्वारा बोला गया संवाद 'हमने पुलिस को चारों तरफ से घेर लिया है, अपने अपने हथियार डाल दो' एक पारंपरिक संवाद को तोड़ता नजर आता है. फिल्म की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसके दृश्य कुछ इस तरह से बनाए गए हैं कि वह दर्शकों को हंसाने के साथ उनकी रूढ़िवादी सोच को भी हिला देंगे.

'हां पढ़ी लिखी है, बिहार की नही है' संवाद, बिहार को लेकर कई लोगों की छोटी मानसिकता वाली सोच को सामने रखने में कामयाब हुई है. इसी तरह बिहार को केंद्र में रखकर फिल्म में एक दृश्य फिल्माया गया है, इस दृश्य में निर्देशक का कमाल दिखता है. बैकग्राउंड में मुर्गे की आवाज के साथ जान्हवी अपने सामने बैठे जसवंत सिंह से कहती हैं 'हम काम करना चाहते हैं'. चौंकाने वाले पार्श्व संगीत के साथ जसवंत सिंह बोलते हैं 'हम! कितने बंदे आए हो ?'

बीच में साहिल मेहता कहते हैं 'पाजी, दीदी बिहार की हैं, उधर मैं, हम होता है'. अब रोमांटिक हो चले पार्श्व संगीत को एक भोंपू खत्म करता है और फिर कानों में मुर्गे की आवाज आने लगती है.

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महिलाओं से जुड़ा एक गम्भीर विषय

बिहार को लेकर लोगों की सोच पर मार तो फिल्म के जरिए निर्देशक का एक छोटा सा कारनामा है, असली काम तो महिलाओं के सौंदर्य के प्रति हमारे समाज की रूढ़िवादी धारणा को लेकर किया गया है.

फिल्म में एक संवाद है 'दांत देखे हैं उसके, मिक्सर ग्राइंडर जैसी शक्ल है. हंसती है तो लगता है अभी चटनी कूटेगी, रिंकू को मना करेगी!' यह संवाद उन लोगों को आईना दिखाता है जो किसी महिला को उसके गुणों से न जानकर उसके रूपरंग के अनुसार उसे तोलते हैं.

जिस घर में पुरुष नही होते उस घर के प्रति लोगों की क्या मानसिकता रहती है, हल्की फुल्की कॉमेडी के साथ फिल्म में इस विषय को भी स्पष्टता के साथ दिखाया गया है.

छायांकन और बैकग्राउंड स्कोर पर अच्छा काम

फिल्म की पटकथा अच्छी बन पाई है तो उसका मुख्य कारण इसका छायांकन और बैकग्राउंड स्कोर ही है. छायांकन हमें घर बैठे पंजाब की गलियों के दर्शन करा देता है, पलंग सहित मीता वशिष्ठ को घर से बाहर निकालने वाला दृश्य कमाल दिखता है.

गुड लक जैरी के गाने सुनने में तो बड़े प्यारे लगते हैं पर यह लंबे समय के लिए जुबान पर नही चढ़ते. 'मोर-मोर' गाना डीजे पर बजता हुआ जरूर दिखेगा.

फिल्म में कपड़ों के चयन की बात की जाए तो यह हर किरदार पर उसके चरित्र के अनुसार सही लगते हैं. मेकअप भी सही लगता है, खासतौर दीपक डोबरियाल का रंग रूप बिल्कुल ही बदल दिया है. साहिल मेहता पर भी मेकअप ने अपना कमाल दिखाया है.

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शीर्षक कुछ जमा नहीं

फिल्म का 'गुड लक जैरी' नाम इसकी कहानी के साथ मेल नहीं खा रहा है , इसकी जगह फिल्म का नाम कुछ और होता तो शायद दर्शक फिल्म को देखने के लिए ज्यादा आकर्षित होते.

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