एक फिल्म कितनी बुरी हो सकती है? बोरिंग ! उसका उदाहरण है फिल्म ‘जय मम्मी दी’. ये एक ऐसी फिल्म है, जिसमें एंटरटेनमेंट और कहानी के नाम पर सब कुछ गायब है. लाजपत नगर का सेट, और बॉलीवुड का हर स्टीरियोटाइप का एंगल का मिक्चर फिल्ममेकर्स ने डालने की कोशिश की है.
तो मिलिए खन्ना और भल्ला फैमिली से जो एक दूसरे के पड़ोसी जरूर हैं, लेकिन एकदम जानी दुश्मन. फिल्म में सुप्रिया पाठक और पूनम ढिल्लन के बीच कॉलेज के समय से दुश्मनी है. लेकिन यहां कहानी में ट्विस्ट है. क्योंकि दोनों के बच्चे पुनीत (सनी सिंह) और सांझ ( सोनाली सैगल) बचपन से एक दूसरे से प्यार करते हैं. फिल्म के शुरुआत में ये बात समझ आ जाती है कि इस दुश्मनी को खत्म करने का एक मात्र रास्ता ये है कि दोनों शादी कर लें. भले कोई भी ये कहे कि "तुम शादी नहीं हो सकती!"
हमें ये भी जल्द समझ आ जाता है कि दर्शकों का ध्यान खींचने के फिल्म में कोशिशों की काफी कमी है
राइटर, डायरेक्टर नवजोत गुलाटी ने एक बेजान मरी हुई फिल्म का प्लॉट हमारे लिए तैयार किया है. इस रोमांटिक स्टोरी के लिए ट्विस्ट है और न ही कोई कहानी. कृपया मेरे इस कमेंट के लिए मुझे माफ करें, लेकिन मैंने एक सभ्य से मजाक के लिए 105 मिनट इंतजार किया, लेकिन कुछ हासिल नहीं हुआ. मम्मियों के बीच की लड़ाई और फिल्म का क्लाइमेक्स ये साबित करता है कि फिल्म कितनी डल है.
फिल्म में एक्टरों की भरमार के बावजूद लव रंजन के प्रोड्क्शन की ये फिल्म फीकी नजर आती है. फिल्म ‘प्यार का पंचनामा 2’ में काम कर चुके सनी सिंह थोड़े ठीक ठाक माने जा सकते हैं. वहीं सोनाली सहगल का जादू भी दर्शकों पर कोई असर नहीं छोड़ता.
लव रंजन के प्रोड्क्शन में बनी इस लव स्टोरी में आप कोई इंटरेस्ट नहीं ढूंढ नहीं पाएंगे. पूनम ढिल्लन और सुप्रिया पाठक जैसे शानदार कलाकार भी फिल्म की स्क्रिप्ट के आगे फेल होते नजर आए.
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