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बर्थडे स्‍पेशल: एक गायिका कैसे बनी बॉलीवुड की टुनटुन

टुनटुन वो नाम है, जिसे सुनते ही लोगों के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है. 

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टुनटुन वो नाम है, जिसे सुनते ही लोगों के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है. आज की जनरेशन के लोगों ने भले ही उनकी फिल्में ज्‍यादा न देखी हों, लेकिन टुनटुन नाम से वो वाकिफ जरूर होंगे. 11 जुलाई को टुनटुन का जन्मदिन है. इस मौके पर हम आपको बताते हैं उनकी जिंदगी की कहानी.

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टुनटुन का असली नाम उमा देवी खत्री था, उनका जन्म यूपी के एक छोटे से गांव में 11 जुलाई, 1923 को हुआ था. जब वे छोटी थी, तभी उनके माता-पिता का देहांत हो गया था, उनके चाचा ने उन्हें पाला था. बचपन से ही टुनटुन को गाने का काफी शौक था. वो अक्सर रेडियो पर गाना सुना करती थीं और गाने का रियाज करती थीं. 
टुनटुन वो नाम है, जिसे सुनते ही लोगों के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है. 
बचपन से ही टुनटुन को गाने का शौक था
(फिल्म स्टिल)

सहेली की मदद से मुंबई पहुंचीं टुनटुन

बचपन से ही टुनटुन की तमन्ना थी कि मुंबई जाकर गायकी में अपना करियर बनाएं, लेकिन उस दौर में जब लड़कियों की पढ़ाई तक करनी मुश्किल होती थी, गायिका बनना तो दूर की बात थी. लेकिन उनकी किस्मत में तो बॉलीवुड के रुपहले पर्दे पर चमकना लिखा था. संयोग से उनकी एक सहेली उनके गांव गई थी, जो मुंबई में कई फिल्मवालों को जानती थी. वो टुनटुन को अपने साथ मुंबई लेकर गई.

जब टुनटुन ने दी समुद्र में कूदने की धमकी

मुंबई आने के बाद टुनटुन की मुलाकात महान संगीतकार नौशाद साहब से हुई और उन्होंने उनसे अनुरोध किया कि उन्हें फिल्म में गाने का मौका दिया जाए. यही नहीं नौशाद के सामने वो जिद पर अड़ गईं कि अगर उन्हें गाने का मौका नहीं मिला, तो वो उनके बंगले से समुद्र में कूद जाएंगीं.

नौशाद साहब ने टुनटुन का छोटा सा ऑडिशन लिया और उनकी आवाज से प्रभावित होकर उन्हें तुरंत काम दे दिया.

'अफसाना लिख रही हूं दिल-ए बेकरार का आंखों में रंग भरके तेरे इंतजार का' ये गाना आज भी लोगों की जुबां पर अक्सर सुनने को मिल जाता है, लेकिन बहुत कम लोगों को ही पता होगा कि इस खूबसूरत गाने को आवाज देने वाली गायिका का नाम है टुनटुन.

1947 में आई फिल्म दर्द में सुरैया पर फिल्माया गया गाना बेताब है दिल दर्दे मोहब्बत से को भी टुनटुन ने ही गाया था, जो काफी हिट रहा था.

टुनटुन का करियर बतौर गायिका ठीक चल रहा था, लेकिन उस दौर में कई नई गायिकाएं फिल्मी दुनिया में आने लगी थीं. टुनटुन को गाने मिलने कम हो गए, तो नौशाद साहब ने उनसे कहा कि तुम फिल्मों में अपना एक्टिंग क्यों नहीं करती.

फिल्मों में आने के लिए टुनटुन तैयार तो हो गईं, लेकिन साथ ही उन्होंने ये शर्त रखी कि अगर दिलीप कुमार के साथ फिल्म होगी तभी एक्टिंग करूंगी. नौशाद उनकी बात सुनकर हंस पड़े. लेकिन 1950 में टुनटुन की ये तमन्ना पूरी हुई और फिल्म बाबुल में दिलीप कुमार के साथ काम करने का मौका मिला.

दिलीप कुमार ने दिया था टुनटुन नाम

फिल्म बाबुल में रोल ऐसा था कि दिलीप कुमार भागते-भागते टुनटुन के ऊपर गिर जाते हैं. इस सीन को करने के बाद दिलीप कुमार ने ही उनका नाम टुनटुन रख दिया था और तभी से उमा देवी खत्री बन गईं टुनटुन.

टुनटुन बनकर उन्होंने ऐसा कमाल किया कि वो भारत की पहली महिला कॉमेडियन बन गईं. उस दौर की फिल्मों में खासतौर पर उनके लिए रोल लिखे जाते थे. उन्‍होंने उस दौर के सभी बड़े स्टार्स के साथ काम किया.

अपने पांच दशक के करियर में टुनटुन ने करीब 200 फिल्मों में काम किया. 90 का दशक आते-आते उन्होंने फिल्मों से खुद को अलग कर लिया.

24 नवंबर, 2003 को टुनटुन इस दुनिया को अलविदा कह गईं, लेकिन आज भी वे लोगों के दिलों में जिंदा हैं.

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