हाल ही में हवाई सफर के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी एक विमान में आई 'गड़बड़ी' से परेशान हो गए, तो उन्हें सबसे पहले कैलाश मानसरोवर यात्रा की याद आई. राहुल ने कांग्रेस की 'जन आक्रोश' रैली में इस घटना का जिक्र भी किया था.
राहुल ने कहा:
मैं आप लोगों से इजाजत लेना चाहता हूं. पहले मैं ये बात बताना नहीं चाहता था, लेकिन अब बता रहा हूं. कुछ दिन पहले हम हवाई जहाज से कर्नाटक जा रहे थे. इसी दौरान हवाई जहाज तेजी से नीचे आने लगा. मैंने सोचा, चलो, गाड़ी गई. फिर मेरे दिमाग में आया कि कैलाश मानसरोवर जाना है.
राहुल गांधी ने इस घटना का जिक्र करते हुए ये बताने की कोशिश की कि उन्होंने हवाई जहाज में तकनीकी गड़बड़ी आने पर भगवान शिव को याद किया. राहुल ने कहा, ''मेरे दिल में जो था, आपको बता दिया. मुझे कर्नाटक चुनाव के बाद 10-15 दिनों की छुट्टी दीजिएगा, ताकि मानसरोवर यात्रा पर जा सकूं.''
राहुल गांधी की बात से ये तो साफ है कि कैलाश मानसरोवर यात्रा के प्रति उनकी गहरी आस्था है.
लेकिन क्या आप जानते हैं कि कैलाश मानसरोवर यात्रा का इतिहास कितना प्राचीन है? इस यात्रा में कितना वक्त लगता है? ये यात्रा कैसे पूरी होती है और इसमें खर्च कितना आता है. आइए जानते हैं कैलाश मानसरोवर यात्रा से जुड़े इन सभी सवालों के जवाब.
कौन आयोजित कराता है कैलाश मानसरोवर यात्रा?
विदेश मंत्रालय हर साल जून से सितंबर महीने के दौरान दो अलग-अलग रास्तों से कैलाश मानसरोवर यात्रा का आयोजन करता है. पहला रास्ता उत्तराखंड के लिपूलेख दर्रा से होकर गुजरता है, जबकि दूसरा रास्ता सिक्किम के नाथू-ला दर्रा से होकर गुजरता है.
यह यात्रा उन पात्र भारतीय नागरिकों के लिए है, जो वैध भारतीय पासपोर्टधारक हों और धार्मिक प्रयोजन से कैलाश मानसरोवर जाना चाहते हैं. विदेश मंत्रालय यात्रियों को किसी भी प्रकार की आर्थिक इमदाद या वित्तीय सहायता मुहैया नहीं कराता है.
क्या है कैलाश मानसरोवर यात्रा का महत्व?
कैलाश मानसरोवर यात्रा अपने धार्मिक मूल्यों और सांस्कृतिक महत्व के लिए जानी जाती है. हर साल सैकड़ों यात्री इस तीर्थ यात्रा पर जाते हैं. भगवान शिव के निवास के रूप में यह हिंदुओं के लिए महत्वपूर्ण होने के साथ-साथ यह जैन और बौद्ध धर्म के लोगों के लिए भी धार्मिक महत्व रखता है.
कैलाश मानसरोवर को भगवान शिव और पार्वती का घर माना जाता है. पौराणिक कथाओं में मानसरोवर के पास स्थित कैलाश पर्वत को शिव का धाम बताया गया है. कहा जाता है कि भगवान शिव यहीं वास करते हैं.
पुराणों के अनुसार, शिव का स्थायी निवास होने की वजह से इस स्थान को 12 ज्योतिर्लिंगों में सर्वश्रेष्ठ माना गया है. बर्फ से ढके हुए करीब 22,028 फुट ऊंचे कैलाश पर्वत के पास के मानसरोवर को ही कैलाश मानसरोवर तीर्थ कहते हैं.
कैसे कर सकते हैं कैलाश मानसरोवर की यात्रा?
कैलाश मानसरोवर यात्रा का आयोजन भारत और चीन के विदेश मंत्रालय मिलकर करते हैं. अंतरराष्ट्रीय नेपाल-तिब्बत-चीन से लगे उत्तराखंड के सीमावर्ती पिथौरागढ़ के धारचूला से कैलाश मानसरोवर की तरफ जाने वाले खतरनाक रास्ते की वजह से ये यात्रा बहुत कठिन होती है.
सड़क मार्गः भारत सरकार सड़क के रास्ते मानसरोवर यात्रा आयोजित करती है. यहां तक पहुंचने में करीब 28 से 30 दिनों का वक्त लगता है. यहां के लिए एडवांस बुकिंग होती है. चुने गए लोगों को ही यात्रा पर ले जाया जाता है.
हवाई मार्गः हवाई मार्ग से काठमांडू तक पहुंचकर वहां से सड़क के रास्ते मानसरोवर झील तक जाया जा सकता है. कैलाश तक जाने के लिए हेलिकॉप्टर की सुविधा भी ली जा सकती है.
काठमांडू से नेपालगंज और नेपालगंज से सिमिकोट तक पहुंचकर, वहां से हिलसा तक हेलिकॉप्टर से पहुंचा जा सकता है. काठमांडू से लहासा के लिए 'चाइना एयर' हवाई सेवा भी उपलब्ध है.
कौन कर सकता है कैलाश मानसरोवर की यात्रा?
कोई भी भारतीय नागरिक जिसके पास वैध भारतीय पासपोर्ट है और जिसकी उम्र 01 जनवरी को कम से कम 18 साल और अधिकतम 70 साल है, वह यात्रा के लिए आवेदन कर सकता है. शर्त यह है कि लोगों को सेहत की जांच से गुजरना पड़ता है.
जिन लोगों के पास विदेशी नागरिकता है, वे इस यात्रा के लिए पात्र नहीं है.
कैलाश मानसरोवर यात्रा में कितना वक्त लगता है?
कैलाश मानसरोवर यात्रा सिर्फ सरकार आयोजित करती है. इस यात्रा के रास्ते में सुंदर और सम्मोहित करने वाले सौन्दर्य है. रास्ते में कई धार्मिक स्थल पड़ते हैं. सुंदर पर्वत चोटियां और मनमोहक दृश्य दिखते हैं. लिहाजा, शानदार अनुभव का आनंद लेते हुए यात्रा पूरी होती है.
यह यात्रा अपने लोगों को पर्याप्त समय देती है, ताकि वे रास्ते में आने वाली विपरीत परिस्तिथियों के अनुकूल अपने-आपको धीरे-धीरे ढाल लें, क्योंकि तेजी से आगे बढ़ने से ऊंचाई पर होने वाली गंभीर बीमारियां हो सकती है, जो कि जानलेवा भी साबित हो सकती है.
इसके अलावा यात्रियों को तमाम औपचारिकताओं को पूरा करने के लिए दिल्ली में तीन-चार दिन बिताने पड़ते है. चयनित रास्ते के जरिए सम्पूर्ण यात्रा में कम से कम 23-25 दिन का वक्त लगता है.
कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए फिट होना क्यों है जरूरी?
इस यात्रा के लिए फिट होना बहुत जरूरी है. जो लोग मेडिकल टेस्ट में फिट पाए जाते हैं, उन्हें ही यात्रा के लिए मंजूरी मिलती है.
यात्रियों को 19,500 फुट तक की ऊंचाई वाले क्षेत्र से ट्रैकिंग करनी पड़ती है. ऐसी जगहों पर ऑक्सीजन कम होती है और वातावरण में हवा का दबाव कम रहता है. इस वजह से लोग हाइपोक्सिया (हवा में ऑक्सीजन की कमी) से प्रभावित हो सकते हैं.
बहुत ही कम लोगों को पल्मोनरी एडमोनरी एडेमा/सेरेब्रल एडेमा या माउंटेन सिकनेस जैसी बीमारी हो जाती है. जिन्हें पहले से ही कोरोनरी आर्टरी या फेपड़ों की बीमारी (जैसे कि ब्रोन्कियल अस्थमा, हाई ब्लड प्रेशर और डायबिटीज की बीमारी) है, वे बेहोश हो सकते हैं.
इसलिए ज्यादा ऊंचाई वाली जगहों की यात्रा करने से पहले यात्रियों का मेडिकल टेस्ट किया जाता है.
कैलाश मानसरोवर यात्रा पर कितना खर्च आता है?
लिपूलेख (उत्तराखंड) से जाने पर आने वाला खर्चः
- लिपूलेख के जरिए रास्ता पूरा करने के लिए 5,000 रुपये देने होंगे
- कुमाऊं मंडल विकास निगम (KMVN) को 30,000 रुपये देने होंगे
- मेडिकल टेस्ट- दिल्ली हार्ट एंड लंग इंस्टीट्यूट (DHLI) को 3,100 रुपये देने होंगे
- स्ट्रेस इको टेस्ट (अगर DHLI ने परामर्श दिया गया हो) के लिए 2,500 रुपये देने होंगे
- चीन का वीजा शुल्क 2,400 रुपये
- भारतीय सीमा के भीतर आने-जाने के लिए कुली प्रभार- 11,940 रुपये
- भारतीय सीमा के भीतर आने-जाने के लिए टट्टू और टट्टू चालक को 15,380 रुपये
- सामूहिक कार्यकलापों के लिए पुल धन हेतु अंशदान- 4,000 रुपये
- ठहरने, परिवहन, प्रवेश टिकटों आदि के लिए. इसमें आप्रवासन के लिए एक अमरीकी डॉलर का शुल्क शामिल है.- US$ 901 (58,905 रुपये)
- चीन की सीमा के भीतर आने-जाने के लिए कुली (टीएआर प्राधिकारियों द्वारा संशोधन के अध्यधीन)- RMB 630 (5,978 रुपये)
- चीन सीमा के भीतर टट्टू और टट्टू चालक को देय राशि (टीएआर प्राधिकारियों द्वारा संशोधन के अधीन)-RMB 1710 (16,228 रुपये)
कुल खर्च: 1.6 लाख रुपए
इसी प्रकार नाथू-ला (सिक्किम) के रास्ते जाने पर आने वाला खर्च अलग है. नाथू-ला के जरिए यात्रा पूरी करने पर एक व्यक्त पर करीब दो लाख रुपये का खर्च आता है.
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