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विशेष राज्य का दर्जा क्या है, बिहार और आंध्र प्रदेश क्यों कर रहे इसकी मांग?

Special Category Status: वर्तमान में भारत में 11 राज्यों को इस तरह की विशेष श्रेणी का दर्जा दिया गया है.

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कुंजी
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लोकसभा चुनाव 2024 (Lok Sabha Election 2024) में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला है. भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने सबसे ज्यादा 240 सीटों पर जीत दर्ज की है. वहीं NDA को 293 सीटें मिली हैं. नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की जनता दल यूनाइटेड (JDU) और चंद्रबाबू नायडू की तेलुगू देशम पार्टी (TDP) की मदद से बीजेपी के नेतृत्व वाली NDA गठबंधन की सरकार बनने जा रही है. ये दोनों पार्टियां NDA का हिस्सा हैं.

सरकार गठन के बीच 'विशेष श्रेणी दर्जा' (Special Category Status) या 'विशेष राज्य का दर्जा' देने की चर्चा जोरों पर है. आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग एक दशक से भी अधिक समय से की जा रही है. वहीं बिहार के लिए भी ये मांग पुरानी है. माना जा रहा है कि नीतीश कुमार भी बीजेपी के सामने बिहार के लिए ये मांग रख सकते हैं.

ऐसे में सवाल है कि किसी राज्य को दिए जाने वाला स्पेशल स्टेटस आखिर क्या है और इसे पाने वाले राज्य को क्या फायदा होता?

विशेष राज्य का दर्जा क्या है, बिहार और आंध्र प्रदेश क्यों कर रहे इसकी मांग?

  1. 1. 'विशेष श्रेणी दर्जा' क्या है?

    भारतीय संविधान में किसी राज्य के लिए 'विशेष दर्जे' का कोई प्रवधान नहीं है. भारत में साल 1969 में गाडगिल कमेटी की सिफारिशों के तहत विशेष राज्य के दर्जे की बात सामने आई थी. उस साल असम, नगालैंड और जम्मू और कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा दिया गया था.

    गाडगिल फॉर्मूला को बाद में संशोधित कर गाडगिल मुखर्जी फार्मूला कर दिया गया. इसका इस्तेमाल केंद्र की ओर से राज्यों को धन आवंटन के लिए किया जाता है.

    केन्द्र सरकार राज्यों को तीन तरीकों से वित्तीय सहायता प्रदान करती है:

    • सामान्य केंद्रीय सहायता (NCA)

    • अतिरिक्त केंद्रीय सहायता (ACA)

    • विशेष केंद्रीय सहायता (SCA)

    इसके अलावा, केंद्र सरकार केंद्र प्रायोजित योजनाओं के माध्यम से भी धनराशि प्रदान करती है, जो कुछ राष्ट्रीय लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए राज्य सरकारों को दी जाने वाली धनराशि होती है.

    गाडगिल कमेटी के फॉर्मूले के तहत विशेष दर्जा पाने वाले राज्य के लिए संघीय सरकार की सहायता और टैक्स छूट में प्राथमिकता देने का सुझाव दिया गया था. एक्साइज ड्यूटी में भी महत्वपूर्ण छूट दिए जाने का प्रावधान किया गया था.

    गाडगिल मुखर्जी फॉर्मूला में जनसंख्या (60%), प्रति व्यक्ति आय (25%), राजकोषीय प्रदर्शन (7.5%) और विशेष समस्याओं (7.5%) को ध्यान में रखा जाता है.

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  2. 2. विशेष श्रेणी का दर्जा के लिए क्या मानदंड हैं?

    स्पेशल स्टेटस सामाजिक और आर्थिक, भौगोलिक कठिनाइयों वाले राज्यों को विकास में मदद के लिए दिया जाता है. इसके लिए अलग-अलग मापदंड निर्धारित किए गए हैं.

    • पहाड़ी और दुर्गम भौगोलिक परिस्थितियों वाले क्षेत्र

    • कम जनसंख्या घनत्व और/या पर्याप्त जनजातीय आबादी

    • अंतरराष्ट्रीय सीमाओं से लगने वाला एक रणनीतिक स्थान

    • आर्थिक एवं ढांचागत दृष्टिकोण से पिछड़ा हुआ

    • राज्य की वित्तीय स्थिति ठीक नहीं होना

    राष्ट्रीय विकास परिषद (NDC) किसी राज्य को विशेष राज्य का दर्जा देता है. NDC में प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्री, मुख्यमंत्री और योजना आयोग के सदस्य शामिल होते हैं.

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  3. 3. वर्तमान लाभार्थी कौन हैं?

    वर्तमान में भारत में 11 राज्यों को इस तरह की विशेष श्रेणी का दर्जा दिया गया है. इनमें असम, नागालैंड, मणिपुर, मेघालय, सिक्किम, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और तेलंगाना शामिल हैं.

    तेलंगाना राज्य के गठन के बाद राज्य को आर्थिक रूप से मदद करने के लिए उसे यह दर्जा दिया गया था.

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  4. 4. विशेष दर्जा मिलने से राज्य को क्या फायदा होता है?

    विशेष दर्जा प्राप्त राज्यों को अन्य राज्यों के मुकाबले केंद्र सरकार से कई तरह की सहायता मिलती है. गाडगिल मुखर्जी फॉर्मूले के तहत, पहले विशेष राज्यों को कुल केंद्रीय सहायता का 30% दिया जाता था, जबकि शेष 70% राशि बचे हुए राज्यों के बीच बांटी जाती थी.

    बाद में 14वें और 15वें वित्त आयोग की सिफारिशों और योजना आयोग के विघटन के बाद विशेष श्रेणी के राज्यों को दी जाने वाली वित्तीय सहायता सभी राज्यों के लिए वितरण पूल फंड के बढ़े हुए हस्तांतरण में शामिल कर दी गई. 15वें वित्त आयोग में इसे 32% से बढ़कर 41% कर दिया.

    केंद्र प्रायोजित योजनाओं के मामले में विशेष दर्जा रखने वाले राज्यों को 90 फीसदी धनराशि मिलती है जबकि अन्य राज्यों का अनुपात 60 से 75 फीसदी है.

    विशेष श्रेणी का दर्जा प्राप्त राज्यों को सीमा शुल्क और उत्पाद शुल्क, आयकर और कॉर्पोरेट टैक्स में भी छूट मिलती है. इन राज्यों को देश के सकल बजट का 30% हिस्सा मिलता है.

    इसमें एक जरूरी बात यह है कि अगर विशेष दर्जा प्राप्त राज्यों को मिलने वाली धनराशि बच जाती है, तो उसका इस्तेमाल अगले वित्तीय वर्ष में किया जा सकता है, जिससे राज्य की अर्थव्यवस्था को लाभ होगा.

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  5. 5. बिहार को विशेष राज्य का दर्जा क्यों चाहिए?

    2021-22 के लिए बिहार का प्रति व्यक्ति शुद्ध राज्य घरेलू उत्पाद ₹49,470 रहा, जो देश में सबसे कम था.

    राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 5 के अनुसार बिहार भारत का सबसे गरीब राज्य है, जहां राज्य की 33.76% आबादी बहुआयामी गरीब है.

    नीतीश कुमार कई वर्षों से बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग करते रहे हैं. नीतीश कुमार ने मांग की है कि राज्य को विशेष दर्जा दिया जाना चाहिए क्योंकि इस राज्य की बड़ी आबादी की स्वास्थ्य, शिक्षा और बुनियादी ढांचे तक पहुंच नहीं है.

    2023 में बिहार कैबिनेट के प्रस्ताव पारित होने के बाद मुख्यमंत्री कुमार ने एक पत्र में कहा, "कैबिनेट की बैठक में केंद्र सरकार से बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने का अनुरोध करने का प्रस्ताव पारित किया गया है. मेरा अनुरोध है कि बिहार की जनता के हित को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार बिहार को तत्काल विशेष राज्य का दर्जा दे."

    इसके साथ ही नीतीश कुमार ने अपने पत्र में कहा था कि राज्य सरकार द्वारा जनता के हित में तैयार की गई योजनाओं को लागू करने के लिए लगभग 2.50 लाख करोड़ रुपये की आवश्यकता होगी.

    बिहार विशेष राज्य का दर्जा पाने के लिए अधिकांश मानदंडों को पूरा करता है, लेकिन पहाड़ी इलाकों और भौगोलिक रूप से कठिन क्षेत्रों के मामले में पिछड़ जाता है, जिसे बुनियादी ढांचे के विकास में कठिनाई का प्राथमिक कारण माना गया है.

    2013 में केंद्र सरकार की ओर से गठित रघुराम राजन समिति ने बिहार को “सबसे कम विकसित श्रेणी” में रखा और विशेष राज्य का दर्जा देने के बजाय विकास के लिए फंड मुहैया कराने के लिए ‘बहु-आयामी सूचकांक’ पर आधारित एक नई पद्धति का सुझाव दिया था.

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  6. 6. आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा क्यों चाहिए?

    आंध्र प्रदेश 2014 में राज्य के विभाजन के बाद हुए राजस्व नुकसान के आधार पर विशेष राज्य के दर्जे की मांग कर रहा है. बता दें कि 20 फरवरी, 2014 को आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम के तहत तेलंगाना का गठन हुआ था और आंध्र प्रदेश को दो हिस्सों में बांट दिया गया था.

    आंध्र प्रदेश के वित्तीय केंद्र राजधानी हैदराबाद को तेलंगाना के हिस्से में देने के बदले में पांच वर्षों के लिए विशेष राज्य का दर्जा देने का वादा किया गया था, लेकिन इसे पूरा नहीं किया गया.

    इसके विरोध में चंद्रबाबू नायडू ने 2018 में एनडीए छोड़ दिया था.

    हालांकि, 2024 लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव के लिए नायडू ने एक बार फिर बीजेपी से हाथ मिलाया. लोकसभा में उनकी पार्टी ने 25 में से 16 सीटों पर जीत दर्ज की है. वहीं विधानसभा चुनावों में 135 सीटों पर कब्जा जमाया है.

    (क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

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'विशेष श्रेणी दर्जा' क्या है?

भारतीय संविधान में किसी राज्य के लिए 'विशेष दर्जे' का कोई प्रवधान नहीं है. भारत में साल 1969 में गाडगिल कमेटी की सिफारिशों के तहत विशेष राज्य के दर्जे की बात सामने आई थी. उस साल असम, नगालैंड और जम्मू और कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा दिया गया था.

गाडगिल फॉर्मूला को बाद में संशोधित कर गाडगिल मुखर्जी फार्मूला कर दिया गया. इसका इस्तेमाल केंद्र की ओर से राज्यों को धन आवंटन के लिए किया जाता है.

केन्द्र सरकार राज्यों को तीन तरीकों से वित्तीय सहायता प्रदान करती है:

  • सामान्य केंद्रीय सहायता (NCA)

  • अतिरिक्त केंद्रीय सहायता (ACA)

  • विशेष केंद्रीय सहायता (SCA)

इसके अलावा, केंद्र सरकार केंद्र प्रायोजित योजनाओं के माध्यम से भी धनराशि प्रदान करती है, जो कुछ राष्ट्रीय लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए राज्य सरकारों को दी जाने वाली धनराशि होती है.

गाडगिल कमेटी के फॉर्मूले के तहत विशेष दर्जा पाने वाले राज्य के लिए संघीय सरकार की सहायता और टैक्स छूट में प्राथमिकता देने का सुझाव दिया गया था. एक्साइज ड्यूटी में भी महत्वपूर्ण छूट दिए जाने का प्रावधान किया गया था.

गाडगिल मुखर्जी फॉर्मूला में जनसंख्या (60%), प्रति व्यक्ति आय (25%), राजकोषीय प्रदर्शन (7.5%) और विशेष समस्याओं (7.5%) को ध्यान में रखा जाता है.

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विशेष श्रेणी का दर्जा के लिए क्या मानदंड हैं?

स्पेशल स्टेटस सामाजिक और आर्थिक, भौगोलिक कठिनाइयों वाले राज्यों को विकास में मदद के लिए दिया जाता है. इसके लिए अलग-अलग मापदंड निर्धारित किए गए हैं.

  • पहाड़ी और दुर्गम भौगोलिक परिस्थितियों वाले क्षेत्र

  • कम जनसंख्या घनत्व और/या पर्याप्त जनजातीय आबादी

  • अंतरराष्ट्रीय सीमाओं से लगने वाला एक रणनीतिक स्थान

  • आर्थिक एवं ढांचागत दृष्टिकोण से पिछड़ा हुआ

  • राज्य की वित्तीय स्थिति ठीक नहीं होना

राष्ट्रीय विकास परिषद (NDC) किसी राज्य को विशेष राज्य का दर्जा देता है. NDC में प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्री, मुख्यमंत्री और योजना आयोग के सदस्य शामिल होते हैं.

वर्तमान लाभार्थी कौन हैं?

वर्तमान में भारत में 11 राज्यों को इस तरह की विशेष श्रेणी का दर्जा दिया गया है. इनमें असम, नागालैंड, मणिपुर, मेघालय, सिक्किम, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और तेलंगाना शामिल हैं.

तेलंगाना राज्य के गठन के बाद राज्य को आर्थिक रूप से मदद करने के लिए उसे यह दर्जा दिया गया था.

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विशेष दर्जा मिलने से राज्य को क्या फायदा होता है?

विशेष दर्जा प्राप्त राज्यों को अन्य राज्यों के मुकाबले केंद्र सरकार से कई तरह की सहायता मिलती है. गाडगिल मुखर्जी फॉर्मूले के तहत, पहले विशेष राज्यों को कुल केंद्रीय सहायता का 30% दिया जाता था, जबकि शेष 70% राशि बचे हुए राज्यों के बीच बांटी जाती थी.

बाद में 14वें और 15वें वित्त आयोग की सिफारिशों और योजना आयोग के विघटन के बाद विशेष श्रेणी के राज्यों को दी जाने वाली वित्तीय सहायता सभी राज्यों के लिए वितरण पूल फंड के बढ़े हुए हस्तांतरण में शामिल कर दी गई. 15वें वित्त आयोग में इसे 32% से बढ़कर 41% कर दिया.

केंद्र प्रायोजित योजनाओं के मामले में विशेष दर्जा रखने वाले राज्यों को 90 फीसदी धनराशि मिलती है जबकि अन्य राज्यों का अनुपात 60 से 75 फीसदी है.

विशेष श्रेणी का दर्जा प्राप्त राज्यों को सीमा शुल्क और उत्पाद शुल्क, आयकर और कॉर्पोरेट टैक्स में भी छूट मिलती है. इन राज्यों को देश के सकल बजट का 30% हिस्सा मिलता है.

इसमें एक जरूरी बात यह है कि अगर विशेष दर्जा प्राप्त राज्यों को मिलने वाली धनराशि बच जाती है, तो उसका इस्तेमाल अगले वित्तीय वर्ष में किया जा सकता है, जिससे राज्य की अर्थव्यवस्था को लाभ होगा.

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बिहार को विशेष राज्य का दर्जा क्यों चाहिए?

2021-22 के लिए बिहार का प्रति व्यक्ति शुद्ध राज्य घरेलू उत्पाद ₹49,470 रहा, जो देश में सबसे कम था.

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 5 के अनुसार बिहार भारत का सबसे गरीब राज्य है, जहां राज्य की 33.76% आबादी बहुआयामी गरीब है.

नीतीश कुमार कई वर्षों से बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग करते रहे हैं. नीतीश कुमार ने मांग की है कि राज्य को विशेष दर्जा दिया जाना चाहिए क्योंकि इस राज्य की बड़ी आबादी की स्वास्थ्य, शिक्षा और बुनियादी ढांचे तक पहुंच नहीं है.

2023 में बिहार कैबिनेट के प्रस्ताव पारित होने के बाद मुख्यमंत्री कुमार ने एक पत्र में कहा, "कैबिनेट की बैठक में केंद्र सरकार से बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने का अनुरोध करने का प्रस्ताव पारित किया गया है. मेरा अनुरोध है कि बिहार की जनता के हित को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार बिहार को तत्काल विशेष राज्य का दर्जा दे."

इसके साथ ही नीतीश कुमार ने अपने पत्र में कहा था कि राज्य सरकार द्वारा जनता के हित में तैयार की गई योजनाओं को लागू करने के लिए लगभग 2.50 लाख करोड़ रुपये की आवश्यकता होगी.

बिहार विशेष राज्य का दर्जा पाने के लिए अधिकांश मानदंडों को पूरा करता है, लेकिन पहाड़ी इलाकों और भौगोलिक रूप से कठिन क्षेत्रों के मामले में पिछड़ जाता है, जिसे बुनियादी ढांचे के विकास में कठिनाई का प्राथमिक कारण माना गया है.

2013 में केंद्र सरकार की ओर से गठित रघुराम राजन समिति ने बिहार को “सबसे कम विकसित श्रेणी” में रखा और विशेष राज्य का दर्जा देने के बजाय विकास के लिए फंड मुहैया कराने के लिए ‘बहु-आयामी सूचकांक’ पर आधारित एक नई पद्धति का सुझाव दिया था.

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आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा क्यों चाहिए?

आंध्र प्रदेश 2014 में राज्य के विभाजन के बाद हुए राजस्व नुकसान के आधार पर विशेष राज्य के दर्जे की मांग कर रहा है. बता दें कि 20 फरवरी, 2014 को आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम के तहत तेलंगाना का गठन हुआ था और आंध्र प्रदेश को दो हिस्सों में बांट दिया गया था.

आंध्र प्रदेश के वित्तीय केंद्र राजधानी हैदराबाद को तेलंगाना के हिस्से में देने के बदले में पांच वर्षों के लिए विशेष राज्य का दर्जा देने का वादा किया गया था, लेकिन इसे पूरा नहीं किया गया.

इसके विरोध में चंद्रबाबू नायडू ने 2018 में एनडीए छोड़ दिया था.

हालांकि, 2024 लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव के लिए नायडू ने एक बार फिर बीजेपी से हाथ मिलाया. लोकसभा में उनकी पार्टी ने 25 में से 16 सीटों पर जीत दर्ज की है. वहीं विधानसभा चुनावों में 135 सीटों पर कब्जा जमाया है.

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