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Breast cancer: देख नहीं सकतीं लेकिन जांचती हैं ब्रेस्ट कैंसर, जानिए MTE कौन होती हैं?

Breast Cancer: मेडिकल टैक्टाइल एग्जामिनर (MTE) ब्रेस्ट में 0.5 मिमी आकार की मामूली गांठ का भी पता लगा लेती हैं.

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Breast cancer Awareness Month 2023: ब्रेस्ट कैंसर महिलाओं को प्रभावित करने वाला सबसे आम कैंसर है. ब्रेस्ट कैंसर स्क्रीनिंग (पता लगाना), कैंसर से बचने या उसे जानलेवा बनने से रोकने का एक सरल उपाय है. स्क्रीनिंग के तरीकों में कुछ समय पहले एक बेहद आसान और सटीक तरीका जुड़ा है, मेडिकल टैक्टाइल एग्जामिन यानी एमटीई (MTE).

नेशनल एसोसिएशन ऑफ ब्लाइंड (एनएबी) इंडिया, साइंस की बुनियादी समझ और जानकारी रखने वाली नेत्रहीन महिलाओं को इस स्क्रीनिंग के लिए चुनती है और फिर उन्हें ब्रेस्ट कैंसर स्क्रीनिंग के लिए ट्रेन किया जाता है.

मेडिकल टैक्टाइल एग्जामिनर (MTE) ब्रेस्ट कैंसर का पता कैसे लगाती हैं? किस उम्र की महिलाओं को ये जांच करानी चाहिए? ब्रेस्ट कैंसर की पहचान करने में एमटीई कितना मददगार है? एमटीई से कितने लोगों को फायदा हुआ है? एमटीई की क्या सीमाएं हैं? इन सभी सवालों के जवाब को जानने के लिए फिट हिंदी ने एक्सपर्ट्स से बात की.

Breast cancer: देख नहीं सकतीं लेकिन जांचती हैं ब्रेस्ट कैंसर, जानिए MTE कौन होती हैं?

  1. 1. मेडिकल टैक्टाइल एग्जामिनर (MTE) कौन होती हैं?

    एमटीई आमतौर पर नेत्रहीन महिलाएं होती हैं, जिन्हें ब्रेस्ट कैंसर का शुरुआत में ही पता लगाने के लिए स्तनों की जांच के लिए प्रशिक्षित किया गया होता है. उन्हें ब्रेस्ट एनटमी, फिजियोलॉजी, कैंसर की अवस्थाओं और कैंसर का पता कैसे लगाया जाए, इन तमाम पहलुओं के बारे में काफी विस्तार से बताया जाता है.

    एमटीई के लिए जर्मन रिहैबिलिटेशन सेंटर द्वारा मान्य एक परीक्षा पास करना जरूरी होता है. इसके बाद, उन्हें कुछ चुनिंदा अस्पतालों जैसे सी के बिड़ला, मेदांता और टाटा मेमोरियल अस्पताल में इंटर्नशिप करनी होती है.

    इस दौरान, ये डॉक्टरों और दूसरे हेल्थ केयर कर्मियों के साथ काम करती हैं और उन्हें अपनी सैद्धांतिक (theoretical) जानकारी को व्यावहारिक स्थितियों से मिलान करने का मौका मिलता है. इन सभी चरणों से गुजरने के बाद ये ट्रेनी पूरी तरह से ट्रेन्ड एमटीई बनती हैं.

    डॉ. मनदीप सिंह मलहोत्रा कहते हैं, "अक्सर यह देखा गया है कि अगर कोई महिला नियमित रूप से अपने ब्रेस्ट की जांच करती रहे, तो वह करीब 2 सेमी आकार की गांठ को खुद पकड़ सकती है यानी यह स्टेज 2 कैंसर होता है. वहीं अगर रूटीन क्लीनिकल ब्रेस्ट जांच करवाती रहें तो हेल्थकेयर वर्कर द्वारा 1 सेमी के आकार की गांठ का भी पता लगाने की संभावना बढ़ जाती है".

    "लेकिन इस जांच को एमटीई तरीके से किए जाने पर 5 मिमि आकार की गुठली का भी पता लगाना मुमकिन होता है, जो कि इन नेत्रहीन एमटीई के अधिक संवेदी स्पर्श के चलते होता है."
    डॉ. मनदीप सिंह मलहोत्रा, डायरेक्टर- सर्जिकल ओंकोलॉजी, सी के बिड़ला हॉस्पिटल, दिल्ली
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  2. 2. मेडिकल टैक्टाइल एग्जामिनर(MTE) ब्रेस्ट कैंसर का पता कैसे लगाती हैं?

    नेशनल एसोसिएशन ऑफ ब्लाइंड (एनएबी) इंडिया, साइंस की बुनियादी समझ और जानकारी रखने वाली नेत्रहीन महिलाओं का प्रारंभिक स्तर पर चयन करता है.

    इस नई और कारगर तकनीक में कुछ दृष्टिहीन महिलाओं को ब्रेस्ट एग्जामिनेशन के लिए ट्रेन्ड किया जाता है, जो अपने हाथों से छूकर (Tactile Sensation) ब्रेस्ट में मौजूद लंप यानी गांठ के बारे में पता लगाती हैं. ट्रेनिंग के बाद इन दृष्टिहीन महिलाओं को मेडिकल टैक्टाइल एग्जामिनर यानी कि एमटीई कहा जाता है.

    जर्मनी के डॉ फ्रैंक हॉफमैन ने मेडिकल टैक्टाइल एग्जामिनेशन (एमटीई) का आइडिया तैयार किया था जिसमें नेत्रहीन महिलाओं को शुरुआती स्तर में ब्रेस्ट कैंसर का पता लगाने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है.

    भारत में, ब्रेस्ट कैंसर की सबसे प्रमुख उम्र (पीक एज) 45 वर्ष है, इसलिए स्क्रीनिंग की शुरुआत कम से कम दस साल पहले यानी लगभग 30-35 साल की उम्र से हो जानी चाहिए.

    "लेकिन युवतियों के मामले में, आरंभिक चरण में ब्रेस्ट कैंसर को मैमोग्राम, जो कि ब्रेस्ट कैंसर का पता लगाने के लिए मानक जांच है, से पकड़ा नहीं जा सकता."
    डॉ. मनदीप सिंह मलहोत्रा, डायरेक्टर- सर्जिकल ओंकोलॉजी, सी के बिड़ला हॉस्पिटल, दिल्ली

    डॉ. मनदीप सिंह मलहोत्रा फिट हिंदी से इसका कारण बताते हुए कहते हैं, "इसका कारण यह होता है कि युवतियों के स्तन में मिल्क डक्टल टिश्यू काफी अधिक संख्या में मौजूद होते हैं. इनकी वजह से मैमोग्राम में कैंसर का पता लगाना आसान नहीं होता. मेनोपॉज के बाद, 45-50 साल की महिलाओं में, जब स्तन में ये टिश्यू घटने लगते हैं और इनकी जगह फैट यानी चर्बी ले लेती है, तब मैमोग्राम से ब्रेस्ट कैंसर का पता शुरू में ही लग जाता है.

    "एक और बात जो याद रखनी चाहिए वह यह कि वेस्टर्न देशों की महिलाओं के मुकाबले भारत में महिलाओं की ब्रेस्ट डेन्सिटी ज्यादा होती है, इस वजह से भी शुरुआती अवस्था में मैमोग्राम से ब्रेस्ट कैंसर का पता लगाना थोड़ा मुश्किल होता है."
    डॉ. मनदीप सिंह मलहोत्रा, डायरेक्टर- सर्जिकल ओंकोलॉजी, सी के बिड़ला हॉस्पिटल, दिल्ली

    ब्रेस्ट कैंसर का पता शुरुआत में ही लगाने के लिए डॉक्टर हमेशा सेल्फ-ब्रेस्ट एग्जामिनेशन (एसबीए) की सलाह देते हैं यानी अपने स्तनों को भली-भांति देखना और उन्हें हाथों और उंगलियों से महसूस करना.

    लेकिन अक्सर इस प्रकार की जांच के बावजूद जांच करने वाली महिला को भरोसा नहीं होता कि उसने ठीक से ब्रेस्ट एग्जामिनेशन किया है या नहीं यानी जांच का यह तरीका 100% भरोसा या सही नतीजा नहीं दिलाता.

    इस कारण युवतियों को किसी हेल्थकेयर वर्कर जैसे डॉक्टर, गायनेकोलॉजिस्ट या ट्रेन्ड नर्स से हर 6 महीने में या एक साल में अपनी जांच करवाने की सलाह दी जाती है. ऐसे में एमटीई बेहद मददगार साबित होती हैं.

    "एमटीई का एक महत्वपूर्ण सामाजिक पहलू भी है. नेत्रहीन महिलाओं को ट्रेनिंग देकर उनके लिए रोजगार के अवसरों को तैयार कर उन्हें आत्मनिर्भर बनाने में मदद मिलती है."
    डॉ. मनदीप सिंह मलहोत्रा, डायरेक्टर- सर्जिकल ओंकोलॉजी, सी के बिड़ला हॉस्पिटल, दिल्ली
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  3. 3. किस उम्र की महिलाओं को ये जांच करानी चाहिए?

    एक्सपर्ट आमतौर पर सभी आयुवर्ग की महिलाओं के मामले में इस जांच की सिफारिश करते हैं. रूटीन जांच 30-35 वर्ष की उम्र से शुरू हो जानी चाहिए, लेकिन अच्छा तो यह होगा कि सभी आयुवर्ग के लिए इस प्रकार की जांच की जाए.

    ब्रेस्ट कैंसर के मामले अब कम उम्र की युवतियों जैसे कि 26-27 साल, में भी सामने आने लगे हैं और यहां तक कि उनमें भी गैर-कैंसरकारी (बिनाइन) गांठ दिखायी देने लगी है.

    एमटीई सभी आयुवर्गों के लिए उपयुक्त होता है. 30 की उम्र की महिलाओं के लिए भी इसकी सलाह दी जाती है, जिनके लिए मैमोग्राफी उपयुक्त नहीं होती.

    डॉ. मनदीप सिंह मलहोत्रा कहते हैं,

    "ये भी समझना जरूरी है कि एमटीई केवल स्क्रीनिंग के लिए है, इसे डायग्नॉसिस के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाता. डायग्नॉसिस की पुष्टि करने के लिए, मैमोग्राम, अल्ट्रासाउंड, एमआरआई और बायप्सी जैसी जांच जरूरी होती हैं. एमटीई इन टेस्ट की जगह नहीं ले सकता."
    Expand
  4. 4. ब्रेस्ट कैंसर की पहचान करने में एमटीई कितना मददगार है?

    मेडिकल टैक्टाइल एग्जामिनेशन (एमटीई) प्रशिक्षित एग्जामिनर द्वारा किया जाता है. यह उसी प्रकार से किया जाता है, जैसे कि खुद ब्रेस्ट की जांच की जाती है, बस इतना अंतर होता है कि यह जांच प्रशिक्षित प्रोफेशनल्स द्वारा की जाती है, जो ब्रेस्ट के हर भाग की पूरी गहराई के साथ जांच करती हैं. इस जांच में, ब्रेस्ट को एनटॅमी के आधार पर अलग-अलग भागों में बांटा जाता है ताकि कोई भी भाग छूट न जाए.

    "उंगलियों से ब्रेस्ट के एक-एक भाग की गहराई से की जाने वाली इस जांच में 0.5 मिमी आकार की मामूली गांठ या गुठली भी छूट नहीं पाती और इस तरह काफी आरंभिक अवस्था में ही ब्रेस्ट कैंसर का निदान हो जाता है."
    डॉ. सीमा सहगल, डायरेक्टर – डिपार्टमेंट ऑफ ऑब्सटैट्रिक्स एंड गाइनीकोलॉजी, सी के बिड़ला अस्पताल (आर), दिल्ली
    Expand
  5. 5. एमटीई से कितने लोगों को फायदा हुआ है?

    एमटीई दरअसल, सेल्फ-एग्जामिनेशन और ब्रेस्ट कैंसर से जुड़े मेडिकल जांच के बीच की कड़ी है.

    डॉ. मनदीप सिंह मलहोत्रा बताते हैं कि सी के बिड़ला अस्पताल में, कोविड-19 से पहले एमटीई टेस्ट शुरू हो गया था. चूंकि इस प्रक्रिया में स्पर्श जरूरी होता है, इसलिए कोविड के समय इसे रोक दिया गया था.

    "पिछले 6 से 12 महीनों में यह टेस्ट फिर शुरू हो गया है और हमने करीब 1500 लोगों का टेस्ट किया है. दिल्ली-एनसीआर के सभी अस्पतालों में, कम से कम 3000-4000 महिलाओं ने इस टेस्ट को करवाया है."
    डॉ. मनदीप सिंह मलहोत्रा, डायरेक्टर- सर्जिकल ओंकोलॉजी, सी के बिड़ला हॉस्पिटल, दिल्ली

    डॉ. मनदीप सिंह मलहोत्रा आगे कहते हैं कि एमटीई जांच कर इस बात की पुष्टि करती हैं कि सब नॉर्मल है या नहीं. अगर उन्हें सब नॉर्मल लगता है, तो आपको अल्ट्रासाउंड या मैमोग्राम की जरूरत नहीं होती.

    एमटीई काफी एफॉर्डेबल प्रक्रिया है. एमटीई आपको सही तरीके से सेल्फ-एग्जामिनेशन के बारे में सिखाती हैं. इस तरह, से अपने सीमित संसाधनों में ही लोग इनकी सेवाओं का सही लाभ ले पाते हैं.

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  6. 6. एमटीई की क्या सीमाएं हैं?

    "एमटीई किसी भी तरह से अल्ट्रासाउंड, मैमोग्राम या बायप्सी का रिप्लेसमेंट नहीं है. सबसे पहले तो हरेक महिला को सेल्फ-एग्जामिनेशन करना चाहिए. अगर आपको कुछ भी संदेह हो तो आगे जांच करवाएं. कुछ भी गड़बड़ लगे तो तुरंत डॉक्टर को दिखाएं."
    डॉ. मनदीप सिंह मलहोत्रा, डायरेक्टर- सर्जिकल ओंकोलॉजी, सी के बिड़ला हॉस्पिटल, दिल्ली

    एक्सपर्ट के अनुसार, एमटीई से कोई नुकसान नहीं होता है पर हां, एक एमटीई हर दिन केवल 5 से 6 जांच ही कर पाती हैं और प्रत्येक महिला की जांच में औसतन 40 मिनट का समय लगता है.

    "यह सेल्फ-एग्जामिनेशन से बेहतर तरीका होता है क्योंकि इसे ट्रेन्ड प्रोफेशनल्स करते हैं. दूसरा, यह सुरक्षित तरीका भी है क्योंकि इसमें आप किसी भी प्रकार की रेडिएशन या दवाओं के संपर्क में नहीं आते."
    डॉ. सीमा सहगल, डायरेक्टर – डिपार्टमेंट ऑफ ऑब्सटैट्रिक्स एंड गाइनीकोलॉजी, सी के बिड़ला अस्पताल (आर), दिल्ली

    डॉ. सीमा सहगल आगे कहती हैं, "लेकिन यह नहीं कहा जा सकता है कि यह मैमोग्राफी से बेहतर तकनीक है क्योंकि ब्रेस्ट कैंसर जांच में मैमोग्राफी की अपनी भूमिका और महत्व है. हां, इतना जरूर है कि एमटीई ब्रेस्ट कैंसर का शुरुआती अवस्था में पता लगाने का अच्छा विकल्प होता है".

    (क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

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मेडिकल टैक्टाइल एग्जामिनर (MTE) कौन होती हैं?

एमटीई आमतौर पर नेत्रहीन महिलाएं होती हैं, जिन्हें ब्रेस्ट कैंसर का शुरुआत में ही पता लगाने के लिए स्तनों की जांच के लिए प्रशिक्षित किया गया होता है. उन्हें ब्रेस्ट एनटमी, फिजियोलॉजी, कैंसर की अवस्थाओं और कैंसर का पता कैसे लगाया जाए, इन तमाम पहलुओं के बारे में काफी विस्तार से बताया जाता है.

एमटीई के लिए जर्मन रिहैबिलिटेशन सेंटर द्वारा मान्य एक परीक्षा पास करना जरूरी होता है. इसके बाद, उन्हें कुछ चुनिंदा अस्पतालों जैसे सी के बिड़ला, मेदांता और टाटा मेमोरियल अस्पताल में इंटर्नशिप करनी होती है.

इस दौरान, ये डॉक्टरों और दूसरे हेल्थ केयर कर्मियों के साथ काम करती हैं और उन्हें अपनी सैद्धांतिक (theoretical) जानकारी को व्यावहारिक स्थितियों से मिलान करने का मौका मिलता है. इन सभी चरणों से गुजरने के बाद ये ट्रेनी पूरी तरह से ट्रेन्ड एमटीई बनती हैं.

डॉ. मनदीप सिंह मलहोत्रा कहते हैं, "अक्सर यह देखा गया है कि अगर कोई महिला नियमित रूप से अपने ब्रेस्ट की जांच करती रहे, तो वह करीब 2 सेमी आकार की गांठ को खुद पकड़ सकती है यानी यह स्टेज 2 कैंसर होता है. वहीं अगर रूटीन क्लीनिकल ब्रेस्ट जांच करवाती रहें तो हेल्थकेयर वर्कर द्वारा 1 सेमी के आकार की गांठ का भी पता लगाने की संभावना बढ़ जाती है".

"लेकिन इस जांच को एमटीई तरीके से किए जाने पर 5 मिमि आकार की गुठली का भी पता लगाना मुमकिन होता है, जो कि इन नेत्रहीन एमटीई के अधिक संवेदी स्पर्श के चलते होता है."
डॉ. मनदीप सिंह मलहोत्रा, डायरेक्टर- सर्जिकल ओंकोलॉजी, सी के बिड़ला हॉस्पिटल, दिल्ली
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मेडिकल टैक्टाइल एग्जामिनर(MTE) ब्रेस्ट कैंसर का पता कैसे लगाती हैं?

नेशनल एसोसिएशन ऑफ ब्लाइंड (एनएबी) इंडिया, साइंस की बुनियादी समझ और जानकारी रखने वाली नेत्रहीन महिलाओं का प्रारंभिक स्तर पर चयन करता है.

इस नई और कारगर तकनीक में कुछ दृष्टिहीन महिलाओं को ब्रेस्ट एग्जामिनेशन के लिए ट्रेन्ड किया जाता है, जो अपने हाथों से छूकर (Tactile Sensation) ब्रेस्ट में मौजूद लंप यानी गांठ के बारे में पता लगाती हैं. ट्रेनिंग के बाद इन दृष्टिहीन महिलाओं को मेडिकल टैक्टाइल एग्जामिनर यानी कि एमटीई कहा जाता है.

जर्मनी के डॉ फ्रैंक हॉफमैन ने मेडिकल टैक्टाइल एग्जामिनेशन (एमटीई) का आइडिया तैयार किया था जिसमें नेत्रहीन महिलाओं को शुरुआती स्तर में ब्रेस्ट कैंसर का पता लगाने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है.

भारत में, ब्रेस्ट कैंसर की सबसे प्रमुख उम्र (पीक एज) 45 वर्ष है, इसलिए स्क्रीनिंग की शुरुआत कम से कम दस साल पहले यानी लगभग 30-35 साल की उम्र से हो जानी चाहिए.

"लेकिन युवतियों के मामले में, आरंभिक चरण में ब्रेस्ट कैंसर को मैमोग्राम, जो कि ब्रेस्ट कैंसर का पता लगाने के लिए मानक जांच है, से पकड़ा नहीं जा सकता."
डॉ. मनदीप सिंह मलहोत्रा, डायरेक्टर- सर्जिकल ओंकोलॉजी, सी के बिड़ला हॉस्पिटल, दिल्ली

डॉ. मनदीप सिंह मलहोत्रा फिट हिंदी से इसका कारण बताते हुए कहते हैं, "इसका कारण यह होता है कि युवतियों के स्तन में मिल्क डक्टल टिश्यू काफी अधिक संख्या में मौजूद होते हैं. इनकी वजह से मैमोग्राम में कैंसर का पता लगाना आसान नहीं होता. मेनोपॉज के बाद, 45-50 साल की महिलाओं में, जब स्तन में ये टिश्यू घटने लगते हैं और इनकी जगह फैट यानी चर्बी ले लेती है, तब मैमोग्राम से ब्रेस्ट कैंसर का पता शुरू में ही लग जाता है.

"एक और बात जो याद रखनी चाहिए वह यह कि वेस्टर्न देशों की महिलाओं के मुकाबले भारत में महिलाओं की ब्रेस्ट डेन्सिटी ज्यादा होती है, इस वजह से भी शुरुआती अवस्था में मैमोग्राम से ब्रेस्ट कैंसर का पता लगाना थोड़ा मुश्किल होता है."
डॉ. मनदीप सिंह मलहोत्रा, डायरेक्टर- सर्जिकल ओंकोलॉजी, सी के बिड़ला हॉस्पिटल, दिल्ली

ब्रेस्ट कैंसर का पता शुरुआत में ही लगाने के लिए डॉक्टर हमेशा सेल्फ-ब्रेस्ट एग्जामिनेशन (एसबीए) की सलाह देते हैं यानी अपने स्तनों को भली-भांति देखना और उन्हें हाथों और उंगलियों से महसूस करना.

लेकिन अक्सर इस प्रकार की जांच के बावजूद जांच करने वाली महिला को भरोसा नहीं होता कि उसने ठीक से ब्रेस्ट एग्जामिनेशन किया है या नहीं यानी जांच का यह तरीका 100% भरोसा या सही नतीजा नहीं दिलाता.

इस कारण युवतियों को किसी हेल्थकेयर वर्कर जैसे डॉक्टर, गायनेकोलॉजिस्ट या ट्रेन्ड नर्स से हर 6 महीने में या एक साल में अपनी जांच करवाने की सलाह दी जाती है. ऐसे में एमटीई बेहद मददगार साबित होती हैं.

"एमटीई का एक महत्वपूर्ण सामाजिक पहलू भी है. नेत्रहीन महिलाओं को ट्रेनिंग देकर उनके लिए रोजगार के अवसरों को तैयार कर उन्हें आत्मनिर्भर बनाने में मदद मिलती है."
डॉ. मनदीप सिंह मलहोत्रा, डायरेक्टर- सर्जिकल ओंकोलॉजी, सी के बिड़ला हॉस्पिटल, दिल्ली

किस उम्र की महिलाओं को ये जांच करानी चाहिए?

एक्सपर्ट आमतौर पर सभी आयुवर्ग की महिलाओं के मामले में इस जांच की सिफारिश करते हैं. रूटीन जांच 30-35 वर्ष की उम्र से शुरू हो जानी चाहिए, लेकिन अच्छा तो यह होगा कि सभी आयुवर्ग के लिए इस प्रकार की जांच की जाए.

ब्रेस्ट कैंसर के मामले अब कम उम्र की युवतियों जैसे कि 26-27 साल, में भी सामने आने लगे हैं और यहां तक कि उनमें भी गैर-कैंसरकारी (बिनाइन) गांठ दिखायी देने लगी है.

एमटीई सभी आयुवर्गों के लिए उपयुक्त होता है. 30 की उम्र की महिलाओं के लिए भी इसकी सलाह दी जाती है, जिनके लिए मैमोग्राफी उपयुक्त नहीं होती.

डॉ. मनदीप सिंह मलहोत्रा कहते हैं,

"ये भी समझना जरूरी है कि एमटीई केवल स्क्रीनिंग के लिए है, इसे डायग्नॉसिस के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाता. डायग्नॉसिस की पुष्टि करने के लिए, मैमोग्राम, अल्ट्रासाउंड, एमआरआई और बायप्सी जैसी जांच जरूरी होती हैं. एमटीई इन टेस्ट की जगह नहीं ले सकता."
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ब्रेस्ट कैंसर की पहचान करने में एमटीई कितना मददगार है?

मेडिकल टैक्टाइल एग्जामिनेशन (एमटीई) प्रशिक्षित एग्जामिनर द्वारा किया जाता है. यह उसी प्रकार से किया जाता है, जैसे कि खुद ब्रेस्ट की जांच की जाती है, बस इतना अंतर होता है कि यह जांच प्रशिक्षित प्रोफेशनल्स द्वारा की जाती है, जो ब्रेस्ट के हर भाग की पूरी गहराई के साथ जांच करती हैं. इस जांच में, ब्रेस्ट को एनटॅमी के आधार पर अलग-अलग भागों में बांटा जाता है ताकि कोई भी भाग छूट न जाए.

"उंगलियों से ब्रेस्ट के एक-एक भाग की गहराई से की जाने वाली इस जांच में 0.5 मिमी आकार की मामूली गांठ या गुठली भी छूट नहीं पाती और इस तरह काफी आरंभिक अवस्था में ही ब्रेस्ट कैंसर का निदान हो जाता है."
डॉ. सीमा सहगल, डायरेक्टर – डिपार्टमेंट ऑफ ऑब्सटैट्रिक्स एंड गाइनीकोलॉजी, सी के बिड़ला अस्पताल (आर), दिल्ली
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एमटीई से कितने लोगों को फायदा हुआ है?

एमटीई दरअसल, सेल्फ-एग्जामिनेशन और ब्रेस्ट कैंसर से जुड़े मेडिकल जांच के बीच की कड़ी है.

डॉ. मनदीप सिंह मलहोत्रा बताते हैं कि सी के बिड़ला अस्पताल में, कोविड-19 से पहले एमटीई टेस्ट शुरू हो गया था. चूंकि इस प्रक्रिया में स्पर्श जरूरी होता है, इसलिए कोविड के समय इसे रोक दिया गया था.

"पिछले 6 से 12 महीनों में यह टेस्ट फिर शुरू हो गया है और हमने करीब 1500 लोगों का टेस्ट किया है. दिल्ली-एनसीआर के सभी अस्पतालों में, कम से कम 3000-4000 महिलाओं ने इस टेस्ट को करवाया है."
डॉ. मनदीप सिंह मलहोत्रा, डायरेक्टर- सर्जिकल ओंकोलॉजी, सी के बिड़ला हॉस्पिटल, दिल्ली

डॉ. मनदीप सिंह मलहोत्रा आगे कहते हैं कि एमटीई जांच कर इस बात की पुष्टि करती हैं कि सब नॉर्मल है या नहीं. अगर उन्हें सब नॉर्मल लगता है, तो आपको अल्ट्रासाउंड या मैमोग्राम की जरूरत नहीं होती.

एमटीई काफी एफॉर्डेबल प्रक्रिया है. एमटीई आपको सही तरीके से सेल्फ-एग्जामिनेशन के बारे में सिखाती हैं. इस तरह, से अपने सीमित संसाधनों में ही लोग इनकी सेवाओं का सही लाभ ले पाते हैं.

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"एमटीई किसी भी तरह से अल्ट्रासाउंड, मैमोग्राम या बायप्सी का रिप्लेसमेंट नहीं है. सबसे पहले तो हरेक महिला को सेल्फ-एग्जामिनेशन करना चाहिए. अगर आपको कुछ भी संदेह हो तो आगे जांच करवाएं. कुछ भी गड़बड़ लगे तो तुरंत डॉक्टर को दिखाएं."
डॉ. मनदीप सिंह मलहोत्रा, डायरेक्टर- सर्जिकल ओंकोलॉजी, सी के बिड़ला हॉस्पिटल, दिल्ली

एक्सपर्ट के अनुसार, एमटीई से कोई नुकसान नहीं होता है पर हां, एक एमटीई हर दिन केवल 5 से 6 जांच ही कर पाती हैं और प्रत्येक महिला की जांच में औसतन 40 मिनट का समय लगता है.

"यह सेल्फ-एग्जामिनेशन से बेहतर तरीका होता है क्योंकि इसे ट्रेन्ड प्रोफेशनल्स करते हैं. दूसरा, यह सुरक्षित तरीका भी है क्योंकि इसमें आप किसी भी प्रकार की रेडिएशन या दवाओं के संपर्क में नहीं आते."
डॉ. सीमा सहगल, डायरेक्टर – डिपार्टमेंट ऑफ ऑब्सटैट्रिक्स एंड गाइनीकोलॉजी, सी के बिड़ला अस्पताल (आर), दिल्ली

डॉ. सीमा सहगल आगे कहती हैं, "लेकिन यह नहीं कहा जा सकता है कि यह मैमोग्राफी से बेहतर तकनीक है क्योंकि ब्रेस्ट कैंसर जांच में मैमोग्राफी की अपनी भूमिका और महत्व है. हां, इतना जरूर है कि एमटीई ब्रेस्ट कैंसर का शुरुआती अवस्था में पता लगाने का अच्छा विकल्प होता है".

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