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Cancer Test: स्टेज जीरो पर ही कैंसर का पता लगा सकता यह टेस्ट, जानें कैसे?

"स्टेज जीरो पर संभावित ट्यूमर का पता लगाने से कैंसर ठीक होने की संभावना बढ़ जाती है"

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फिट
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Cancer Test: कैसा हो अगर कैंसर का टेस्ट आपके सालाना हेल्थ चेकअप टेस्ट का हिस्सा बन सके और ट्यूमर बनने से पहले ही कैंसर का पता लगाया जा सके?

मॉड्यूलर डायग्नोस्टिक कंपनी, जार लैब्स, सिंगापुर की ओर से ट्यूमर बनने से पहले ही कैंसर का पता लगाने के लिए एक टेस्ट बनाया गया है. इस टेस्ट को बनाने में उनका साथ दिया है मुंबई स्थित बायोटेक कंपनी, एपिजेनरेस बायोटेक ने.

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आसान सा ब्लड टेस्ट कैंसर का पता लगाने के लिए एक प्रेडिक्टेबल, गैर-आक्रामक और सेफ टेस्ट है, जिसे जरूरत पड़ने पर बार-बार कराया जा सकता है.

इस टेस्ट के बारे में अधिक जानने के लिए फिट ने एपिजेनरेस के प्रबंध निदेशक अनीश त्रिपाठी से बात की.

ये टेस्ट कैसे काम करता है?

अनीश त्रिपाठी: टेस्ट, उन स्टेम सेल्स का लाभ उठाता है, जिन्हें शोधकर्ताओं ने ऑर्गन टिशूज में खोजा था. वे बहुत छोटे और रेयर होते हैं, लेकिन विशेष कोशिकाओं (specilized cells) के लिए किसी ऑर्गन की आवश्यकताओं को पूरा करने में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.

"यह भी पाया गया कि इन सेल्स के बीच एक संबंध है और यदि और जब किसी अंग में ट्यूमर विकसित हो जाता है."

ये स्टेम सेल्स अनिवार्य रूप से पूर्ववर्ती कोशिकाएं (precursor cells) हैं, जो आगे चल कर ट्यूमर कोशिकाएं बन जाती हैं, इसलिए हम कैंसर का जल्द पता लगाने में सक्षम हैं.

हालांकि, इन स्टेम सेल्स तक सीधे ऑर्गन्स से नहीं पहुंचा जा सकता था, जब तक कि हम टिश्यू बायोप्सी नहीं करें. हमारा इनोवेशन यह था कि हम पेरिफेरल ब्लड (peripheral blood) से इन स्टेम सेल्स तक पहुंचने में कामयाब हो सके थे और यह एक महत्वपूर्ण सफलता थी.

"संक्षेप में, यह एक साधारण ब्लड टेस्ट है, जिसे एक व्यक्ति करा सकता है और अगर आपमें कैंसर विकसित होने की आशंका है, तो हम पहले ही इन स्टेम सेल्स में म्यूटेशन का पता लगाने में सक्षम होंगे. इसकी रिपोर्ट आने में लगभग 4 से 6 दिन लगते हैं."

क्या टेस्ट सही में स्टेज जीरो में कैंसर का पता लगा सकता है? स्टेज जीरो क्या है?

अनीश त्रिपाठी: इन स्टेम सेल्स में म्यूटेशन होने और पूरी तरह से ट्यूमर विकसित होने में 12 से 18 महीने का समय होता है. यही वह समय है जब हम कैंसर का शीघ्र पता लगाने के लिए इस टेस्ट का उपयोग कर सकते हैं.

"स्टेज जीरो वह है, जो स्टेज 1 से पहले होता है. यह वह स्टेज है, जहां कैंसर सेल्स फैलने लगती हैं, लेकिन एक पूर्ण विकसित ट्यूमर अभी तक नहीं बना होता है. इस तरह हम इसका जल्दी पता लगाने में सक्षम होते हैं."

वैज्ञानिकों और डॉक्टरों स्टेज जीरो के बारे में कुछ समय पहले से पता है, लेकिन व्यावहारिक रूप से इसका कोई मतलब नहीं था क्योंकि इस स्टेज में कैंसर का पता लगाने के लिए कोई टेस्ट उपलब्ध नहीं था. फिलहाल, बहुत जल्दी पता चल जाने वाले कैंसर के लिए कोई उपचार प्रोटोकॉल भी नहीं है.

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कैंसर का जल्दी पता लगाना इतनी बड़ी बात क्यों है?

अनीश त्रिपाठी: भारत में कैंसर के मरीजों की संख्या काफी है. हर साल दस लाख से अधिक कैंसर रोगियों का पता चलता है. बहुत से डॉक्टरों का मानना ​​है कि कैंसर से पीड़ित मरीजों की वास्तविक संख्या तीन से चार गुना तक हो सकती है.

हालांकि, दुख की बात ये है कि कैंसर का पता बहुत देर से चलता है (स्टेज 3 या स्टेज 4 में) जब यह एक गंभीर बीमारी बन चुकी होती है, जिसका इलाज करना मुश्किल होता है, इलाज का खर्च अधिक होता है, इलाज के लिए समय अधिक चाहिए होता है और मृत्यु की आशंका भी अधिक होती है.

"लेकिन अगर, मान लीजिए, हम भविष्य में कैंसर के 80% रोगियों को प्रारंभिक चरण (शून्य से एक) में पकड़ने में सक्षम हैं, तो यह इसे ठीक करने में सक्षम होने के साथ-साथ इलाज का समय, सफलता की संभावना और इलाज के खर्च सभी में सुधार आ जाएगा."

हमारा सपना इस बीमारी को अंतिम चरण की बीमारी से प्रारंभिक चरण की बीमारी में बदलना है.

यह किसके लिए है?

अनीश त्रिपाठी: यह टेस्ट हर किसी के लिए है - आपके और मेरे जैसे बिना लक्षण वाले लोगों के लिए, स्क्रीनिंग उद्देश्यों के लिए, कैंसर रोगियों और सर्वाइवर्स के लिए भी.

लेकिन, ऐसे लोगों की कुछ श्रेणियां हैं, जिनमें कैंसर विकसित होने की आशंका अधिक होती है, जिन्हें उच्च जोखिम वाली आबादी के रूप में गिना जाता है, उन्हें निश्चित रूप से टेस्ट करवाने पर विचार करना चाहिए.

इसमें शामिल हैं,

  • जिन लोगों के परिवार में कैंसर का इतिहास है

  • धूम्रपान करने वाले

  • जो लोग शराब का अत्यधिक सेवन करते हैं

"लेकिन वास्तव में यह सभी के लिए है क्योंकि इसका कोई वास्तविक तर्क नहीं है कि कैंसर किसे हो सकता है. कैंसर के ट्रिगर भी बढ़ रहे हैं, यहां तक ​​कि युवा लोगों में भी. यह किसी भी हो सकता है."
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इसका मूल्य कितना है?

अनीश त्रिपाठी: हम भारत में कीमत कम से कम रखना चाहते हैं. सूची मूल्य 14 हजार है, लेकिन इसकी कीमत 9 हजार जितनी कम हो सकती है.

अभी भी ऐसे लोगों का एक बड़ा वर्ग है, जो भुगतान करने में सक्षम हैं. हालांकि, हम उन तरीकों का पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं, जिनसे हम इस टेस्ट को उन लोगों को भी उपलब्ध करा सकें जो इस टेस्ट का खर्च नहीं उठा सकते.

"हमें उम्मीद है कि हम ऑटोमेशन के साथ क्षमता बढ़ाने में सक्षम हैं और हम कीमत को और नीचे लाकर इसे और अधिक किफायती बना सकते हैं."

यह टेस्ट भारत में, कैंसर के इलाज के भविष्य में क्या बदलाव ला सकता है?

दुर्भाग्य से, स्टेज जीरो में इन सेल्स का पता लगाने को आज कोई ऑन्कोलॉजिस्ट भी कैंसर नहीं मानता है. आप किसी विशेष ट्यूमर के लिए रेडियोलॉजिकल फैक्ट्स के बिना इलाज शुरू नहीं कर सकते.

हमें उम्मीद है कि जैसे-जैसे हमारा टेस्ट समय के साथ पूरे भारत में देशव्यापी हो जाएगा, प्रारंभिक चरण के कैंसर का इलाज करने के लिए ऑन्कोलॉजिस्ट की मांग बढ़ेगी और फिर यह फार्मास्युटिकल कंपनियों पर निर्भर होगा कि वे कैंसर के प्रारंभिक चरण के लिए इलाज के विकल्प लेकर आएं.

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