ADVERTISEMENTREMOVE AD

15 अगस्त तक भारत में कोरोना वैक्सीन होगी तैयार? एक्सपर्ट्स की राय

वैक्सीन के लिए ट्रायल के सभी फेज इस 15 अगस्त तक पूरे कर लिए जाएंगे?

Updated
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) के एक लेटर में नोवेल कोरोना वायरस की वैक्सीन 15 अगस्त, 2020 तक लाए जाने का जिक्र किया गया है. हालांकि इसके बाद आईसीएमआर ने साफ किया किया कि इस तारीख तक ट्रायल रिजल्ट आ जाएंगे. लोगों के लिए वैक्सीन आने में वक्त लगेगा.

ये लक्ष्य भारत बायोटेक इंटरनेशनल लिमिटेड (BBIL) की पार्टनरशिप से डेवलप कोवैक्सीन नाम के वैक्सीन कैंडिडेट के लिए रखा गया है.

इस 15 अगस्त तक वैक्सीन की लॉन्चिंग संभव है?

फिट ने इस सिलसिले में वायरोलॉजिस्ट डॉ टी जैकब जॉन और ग्लोबल हेल्थ के हेल्थ पॉलिसी रिसर्चर डॉ अनंत भान से बात की.

ADVERTISEMENTREMOVE AD
“यह एक दूरदर्शी और आशावादी दावा है. वैक्सीन जल्द ही लाने का इरादा अच्छा है, लेकिन ये संभव नहीं लगता कि सिर्फ 45 दिनों में वैक्सीन तैयार हो जाएगी. फेज 1 और फेज 2 डेढ़ महीने में किया जा सकता है, लेकिन फेज 3 नहीं.”
डॉ टी जैकब जॉन, वायरोलॉजिस्ट

डॉ अनंत भान ने कहा कि यह "कोवैक्सिन के लिए नहीं बल्कि सभी COVID वैक्सीन कैंडिडेट के लिए संभव नहीं लगता."

कोरोना की वैक्सीन को लेकर वो बातें जो स्पष्ट नहीं हैं

15 अगस्त तक वैक्सीन लाने की तैयारी पर सवाल ये है कि ये सब बहुत जल्दबाजी में हो रहा है.

29 जून को सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन ने भारत बायोटेक को क्लीनिकल ट्रायल करने की मंजूरी दी और सिर्फ 4 दिन बाद खबर है कि वैक्सीन लाने की तारीख निर्धारित कर दी गई है.

अब जैसा कि फिट ने इस स्टोरी में पहले बताया है वैक्सीन तैयार करना एक लंबी प्रक्रिया है, जिसमें उसकी सेफ्टी और असर दोनों को सुनिश्चित करने की जरूरत होती है.

इस महामारी में वैक्सीन के काम में तेजी लाने की जरूरत है, लेकिन ICMR के रुख पर एक बड़ा सवाल यह है- क्या इस 15 अगस्त तक वैक्सीन लाना वैज्ञानिक रूप से संभव है?

डॉ जॉन कहते हैं, "विज्ञान पर तेजी का दबाव अच्छा नहीं है."

वह एक वैक्सीन बनाने के लिए जरूरी महत्वपूर्ण स्टेज के बारे में बताते हैं.

डॉ भान भी यह कहते हैं, "सुरक्षित और प्रभावी वैक्सीन के लिए उचित प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए."

डॉ जैकब बताते हैं, “जब आप एक वैक्सीन बनाने के बारे में सोच रहे हैं, तो सबसे सरल तरीका वायरस को बढ़ाना और उसे निष्क्रिय करना है. हेपेटाइटिस A, इन्फ्लुएंजा के टीके सभी निष्क्रिय वायरस वाले टीके हैं. जबकि बाकी दुनिया दूसके तरह की वैक्सीन पर काम कर रही है, भारत बायोटेक ने मृत वायरस वाले वैक्सीन डेवलपमेंट का फैसला किया है."

BBIL के मुताबिक प्री-क्लीनिकल स्टडी, जो कि एनिमल-टेस्टिंग है, वो पूरी हो चुकी है. लेकिन वो प्री-ट्रायल डिटेल दिए नहीं गए हैं.

“मेरा मानना है कि ये प्री-क्लीनिकल परिणाम सुरक्षित और प्रतिरक्षात्मक हैं - इसका मतलब है कि यह जानवरों में एंटीबॉडी को प्रेरित करता है. एनिमल स्टडी से ह्यूमन स्टडी के लिए सामान्य रूप से फेज 1, 2 और 3 से गुजरना होता है. अगर अच्छे से प्लान किया जाए, तो फेज 1 और फेज 2 को जोड़ा जा सकता है.”
डॉ टी जैकब जॉन, वायरोलॉजिस्ट

वो आगे समझाते हैं, "फेज 1 सेफ्टी के लिए होता है, फेज 2 एंटीबॉडी उत्पादन पर प्रारंभिक डेटा के लिए और फेज 3 सुरक्षात्मक प्रभाव या जैविक प्रभाव के लिए होता है."

इसलिए हमें फेज 1 से फेज 3 पर जाना होगा. ये तब हो सकता है जब उसकी सेफ्टी और इम्युनोजेनिक प्रभाव साबित हो जाएं.

“तब वैक्सीन का असर जानने के लिए फेज 3 का ट्रायल जल्द करना होगा, जो 45 दिनों में नहीं हो सकता.”
डॉ टी जैकब जॉन

ट्रायल का फेज 3 कई स्थानों पर काफी बड़ी आबादी में किया जाना चाहिए, जहां महामारी बढ़ रही हो.

डॉ जैकब कहते हैं, "यह महत्वपूर्ण है क्योंकि तब हम आबादी में संक्रमण के जोखिम की गणना करने के साथ ही ये जान सकते हैं कि वैक्सीन कितनी प्रभावी हो सकती है."

ADVERTISEMENTREMOVE AD

एक और मुद्दा जो सामने आया, वह यह है कि ICMR के लेटर में ट्रायल के सेंटरों का जिक्र क्यों है. क्या क्लीनिकल ट्रायल की साइटें इसके लिए तैयार हैं?

डॉ भान कहते हैं, “वैक्सीन के फेज में 24x7 निगरानी की जरूरत होती है, जो आमतौर पर तृतीयक केंद्रों (Tertiary Centres) में होते हैं, जिन्हें क्लीनिकल ट्रायल का अनुभव हो. लेटर में दी गईं बहुत सी साइटें छोटे केंद्र हैं, उनके पास जरूरी बुनियादी ढांचे और विशेषज्ञता है या नहीं इसकी जांच करनी होगी."

उन्होंने बताया कि ट्रायल में नामांकन की तारीखों में गड़बड़ी है, “ICMR 7 जुलाई कहता है लेकिन CTRI की एंट्री डेट 13 जुलाई है. अगर हम इसे जुलाई का दूसरा हफ्ता ही मान लें, फिर भी 15 अगस्त तक वैक्सीन मिलना संभव नहीं लगता.”

ADVERTISEMENTREMOVE AD

डॉ जैकब का कहना है कि फेज 1 को सिर्फ 20 लोगों में भी किया जा सकता है और अगर यह सुरक्षित पाया जाता है, तो इसे 100 लोगों तक बढ़ाया जा सकता है. "हमें वायरस को निष्क्रिय करने वाले एंटीबॉडी की एलिसा तकनीक के जरिए प्रतिक्रिया मापनी होगी."

यहां तक कि 43 दिनों में फेज 1 और 2 होना भी ठीक है बशर्ते BBIL तेजी से करना चाहे साथ में ICMR और NIV का सपोर्ट मिले, तो ऐसा किया जा सकता है.

पत्र के अनुसार, ICMR ने इस वैक्सीन डेवलमपमेंट को "उनकी सर्वोच्च प्राथमिकता" कहा है.

डॉ जैकब कहते हैं, "फिर भी, 43 दिनों में, फेज 2 के साथ, यह अभी भी एक वैक्सीन कैंडिडेट होगा और वैक्सीन नहीं."

ADVERTISEMENTREMOVE AD

एक नए वायरस के लिए नई वैक्सीन

SARS-CoV-2 नए तरह का कोरोना वायरस है, जिसके बारे में अभी और जानकारी जुटाई जा रही है. इसलिए वायरस और वैक्सीन दोनों के लिहाज से COVID-19 वैक्सीन का विकास बिल्कुल नया है.

साइटोकाइन स्टॉर्म के बारे में बताते हुए डॉ जैकब कहते हैं, "COVID-19 एक अजीब वायरस है और कुछ लोगों में संक्रमण पर रिएक्शन अनियंत्रित तरीके से होता है."

“निष्क्रिय वायरस इस तरह की समस्याओं से बिल्कुल सुरक्षित होगा? हम पहले भी देख चुके हैं कि मृत वायरस वाली वैक्सीन हमेशा सुरक्षित नहीं होती है.”

सुरक्षा पर और भी अधिक ध्यान देने की जरूरत है क्योंकि यह एक नए वायरस के लिए एक नया टीका है.
डॉ अनंत भान, रिसर्चर, ग्लोबल हेल्थ, बायोएथिक्स एंड हेल्थ पॉलिसी

डॉ जैकब कहते हैं, “बेशक, हम उम्मीद कर रहे हैं कि निष्क्रिय टीका यानी इनएक्टिवेटेड वैक्सीन सुरक्षित और प्रभावी हो. लेकिन कोरोना वायरस के लिए इस सिद्धांत का कोई सबूत नहीं है."

“कोरोना वायरस में एक जटिल आभासी संरचना होती है, जिससे अवांछित इम्युनोस्टिम्यूलेशन इंसानों में एक संभावित प्रतिक्रिया है. इसलिए अगर हम एनिमल स्टडी से सीधे ह्यूमन स्टडी पर आते हैं, तो ये सावधानी से किया जाना चाहिए."

ADVERTISEMENTREMOVE AD

सुरक्षा को लेकर सवाल बरकरार

डॉ भान कहते हैं कि एक बड़ा सवाल यह है ऐसा क्यों हो रहा है और इतना सटीक समय क्यों तय किया गया है.

डेटा और सुरक्षा निगरानी बोर्ड, DSMB है, जिसमें स्वतंत्र विशेषज्ञ हैं, जैसा कि नाम से पता चलता है, ये चल रहे क्लीनिकल ट्रायल में पार्टिसिपेंट्स की सुरक्षा मॉनिटर करता है. वे यह भी सुनिश्चित करते हैं कि डेटा ठीक से इकट्ठा किया जा रहा है.

डॉ जैकब कहते हैं, "उन्हें यह प्रमाणित करना होगा कि वे इस बात से संतुष्ट हैं कि वैक्सीन से सीधे या अगर कोई जीवित कोरोना वायरस से संक्रमित हो जाता है, तो मृत वायरस के कारण कोई प्रतिकूल प्रतिक्रिया नहीं होगी."

सेफ्टी को लेकर दो चीजें हैं, एक तो वैक्सीन की सेफ्टी और दूसरा जिसे वैक्सीन दी जा रही है यानी वायरस से एक्सपोज किया जा रहा है उसकी सुरक्षा.

“ऐसा न हो कि लाइव इन्फेक्शन के जरिए इम्युन करने की कोशिश में शख्स पर वायरस से होने वाली बीमारी की तुलना में ज्यादा बदतर प्रतिक्रिया हो. डेंगू के मामले में -डेंगवाक्सिया- वैक्सीन को इसी समस्या के कारण वापस लेना पड़ा था.”
डॉ टी जैकब जॉन, वायरोलॉजिस्ट और प्रोफेसर क्रिश्चन मेडिकल कॉलेज, वेल्लूर
ADVERTISEMENTREMOVE AD

डॉ जैकब बताते हैं कि सेफ्टी का टेस्ट करने के लिए तीन चीजें देखनी हैं:

  1. आमतौर पर सेफ हो
  2. अनियंत्रित इम्युन रेस्पॉन्स से सेफ हो
  3. जब किसी शख्स को वायरस से इन्फेक्ट कराया जाए, तब भी सेफ हो

डॉ जैकब कहते हैं, “हमने नुकसान को लेकर गलत अनुमान लगाया और हां, वैक्सीन से मदद मिलेगी. ये इरादा अच्छा है, लेकिन वास्तविक नहीं है.”

वैक्सीन लॉन्च करने के लिए इस तरह की जल्दबाजी के क्या परिणाम हो सकते हैं? डॉ भान कहते हैं, "इससे नियत प्रक्रिया से चूकने की चिंता है और आगे सेफ्टी और प्रभाव से जुड़ी समस्या हो सकती है."

ऐसे में क्या इसे लेने वाली आबादी को कोई खतरा हो सकता है? डॉ भान जवाब देते हैं, "हम नहीं जानते. यह हो सकता है. पर्याप्त प्रक्रियाओं को सुनिश्चित कर ऐसा होने की आशंका कम की जा सकती है."

जहां तक मेरी चिंता है, वैक्सीन लॉन्च करने से पहले इसकी सेफ्टी और इसके असर की पूरी तरह से जांच की जरूरत है.
डॉ टी जैकब जॉन, वायरोलॉजिस्ट और प्रोफेसर क्रिश्चन मेडिकल कॉलेज, वेल्लूर

किसी प्रक्रिया को अपनाए जाने की वजह होती है और जल्द नतीजों के लिए वैज्ञानिकों को अपनी सीमा से बाहर जाने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए.

(ये स्टोरी सबसे पहले फिट हिंदी पर पब्लिश की गई है.)

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×