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ट्रांसजेंडर को पायलट का लाइसेंस देने से इनकारः एक्सपर्ट की नजर में ट्रांसफोबिया

ट्रांस-मैन पायलट एडम हैरी को DGCA से उड़ान भरने के लिए क्लियरेंस नहीं मिलने पर वह मामला कोर्ट में ले जा रहे हैं.

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23 साल के एडम हैरी का शुरू से पायलट बनने का सपना था, और उन्होंने रुकावटों का सामना करते हुए भारत का पहला ट्रांस पुरुष पायलट (first trans male pilot) बनने के लिए कड़ी मेहनत की.

मगर अपनी ट्रेनिंग पूरी करने के बावजूद एडम के सपने कभी उड़ान नहीं भर सके. वजह– डायरेक्ट्रेट जनरल ऑफ सिविल एविएशन (DGCA) ने जेंडर डिस्फोरिया (gender dysphoria) और हार्मोन थेरेपी (hormone therapy) लेने के आधार पर उन्हें ‘विमान उड़ाने के लिए अनफिट’ करार दे दिया.

दो साल बाद एडम अब DGCA के खिलाफ अदालत में मुकदमा दायर कर रहे हैं.

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उनकी जेंडर आइडेंटी के आधार पर उड़ान भरने की इजाजत नहीं देने के DGCA के फैसले के खिलाफ पायलट एडम हैरी आज यानी शुक्रवार 8 जुलाई को एक रिट याचिका दायर करेंगे.

क्या DGCA के फैसले का कोई वैज्ञानिक आधार है? क्या हॉर्मोन थेरेपी किसी को विमान उड़ाने के लिए अयोग्य बना सकती है? इसके रिस्क फैक्टर क्या हैं?

फिट ने एक्सर्ट्स से पूछा.

एडम की कहानी: क्या हुआ था?

एडम को साल 2020 में केरल सरकार की तरफ से ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के वेल्फेयर फंड से राजीव गांधी एविएशन एकेडमी में पायलट ट्रेनिंग के लिए स्कॉलरशिप दी गई थी.

इस दौरान अपना स्टूडेंट पायलट लाइसेंस (student pilot's licence) हासिल करने के लिए एडम को एक महिला के रूप में मेडिकल टेस्ट (जन्म के समय उनका घोषित जेंडर) से गुजरना पड़ा, क्योंकि सिस्टम में केवल दो विकल्पों में से किसी एक का चुनाव करना था- पुरुष और महिला.

एडन ने क्विंट की मैत्रेयी रमेश को बताया, इस मूल्यांकन के आधार पर “उन्होंने कहा कि जेंडर डिस्फोरिया और हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी (hormone replacement therapy HRT) की वजह से मैं विमान उड़ाने के लिए फिट नहीं हूं.”

क्या हार्मोन थेरेपी आपको उड़ान के लिए अयोग्य बना सकती है?

बहुत से ट्रांस पुरुषों की तरह एडम महिला से पुरुष टेस्टोस्टेरोन थेरेपी (testosterone therapy या T therapy) ले रहे हैं, जो सीधे शब्दों में कहें तो, एस्ट्रोजन को दबाती है और शारीरिक मर्दाना गुणों और लक्षणों को उभारने के लिए आपके टेस्टोस्टेरोन के स्तर को बढ़ाती है.

कार्डियोवस्कुलर परफ्यूज़निस्ट साहेर अली नाज, जो एक ट्रांसवुमन हैं, फिट से कहती हैं. “हर शख्स में एक सेक्स हार्मोनल सिस्टम होता है.”

"कुछ लोगों को इसे आर्टिफिशियल रूप से लेना पड़ सकता है. न केवल एडम (एक ट्रांसमैन) के मामले में, बल्कि जन्म के अनुरूप जेंडर (cisgender) वाले पुरुषों और महिलाओं को भी आर्टिफिशियल तरीके से हार्मोंस लेने की जरूरत पड़ सकती है.”
साहेर अली नाज़, कार्डियोवस्कुलर परफ्यूज़निस्ट

ऐसा खासतौर से हार्मोनल असंतुलन वाले लोगों और PCOD जैसी कंडीशन वाली महिलाओं के मामले में होता है.

मैक्स हेल्थकेयर में एंडोक्रिनोलॉजी एंड डायबिटीज के चेयरमैन डॉ. अंबरीश मिथलबात बात को आगे बढ़ाते हुए फिट से कहते हैं, “यहां आप उसकी भरपाई कर रहे हैं जो कि एक पुरुष के शरीर में होता है, आप उसे बाहर से दे रहे हैं, वह हार्मोन बाहर से बाहरी सोर्स से दे रहे हैं.

“मैं नहीं समझ पा रहा कि क्यों अयोग्यता होनी चाहिए.”
डॉ. अंबरीश मिथल, चेयरमैन, एंडोक्रिनोलॉजी एंड डायबिटीज, मैक्स हेल्थकेयर

क्विंट की मैत्रेयी रमेश से बात करते हुए एडम कहते हैं, अगर ऐसा है, तो भी अपनी मेडिकल जांच के समय उन्होंने हार्मोन थेरेपी बंद कर दी थी, क्योंकि उनका एक महिला के तौर पर टेस्ट किया जा रहा था, और फिर भी यह काफी नहीं था. उनका टेस्टोस्टेरोन का स्तर महिला के मानक स्तर से ज्यादा था.

“तो यह पक्का करने के लिए टेस्ट को पास कर लूं, मैंने छह महीने के लिए अपनी हार्मोन थेरेपी बंद कर दी. यह मेरे लिए शारीरिक और भावनात्मक रूप से थका देने वाला था. कोई भी ट्रांस शख्स आपको बता सकता है कि यह आसान नहीं है. लेकिन सब कुछ करने के बाद भी मेरा टेस्टोस्टेरोन का स्तर ज्यादा था और मैं टेस्ट पास नहीं कर सका.”
एडम हैरी ने द क्विंट को बताया
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ऐसे में सवाल उठता है कि क्या टेस्टोस्टेरोन का स्तर ज्यादा होना किसी शख्स को विमान उड़ाने के लिए अनफिट बना सकता है?

साहेर अली नाज कहती हैं, “जब किसी ऐसे शख्स की बात आती है, जो एक्सट्रा हार्मोंस ले रहा है, तो मैं कह सकती हूं कि थोड़ा जोखिम है. यहां एक्सट्रा शब्द पर ध्यान देना होगा.” उनका यह भी कहना है कि शख्स के ब्लड की मॉनीटरिंग कर के इस तरह के जोखिम का आसानी से पता लगाया जा सकता है.

डॉ. मिथल इससे सहमत हैं, “हर ट्रीटमेंट के साइड इफेक्ट हो सकते हैं. आपको लिवर फंक्शन के काम, ब्लड काउंट पर नजर रखनी होगी.”

डॉ. मिथल का यहां तक कहना है कि टेस्टोस्टेरोन के बहुत ज्यादा स्तर से हाई हीमोग्लोबिन और हाई ब्लड पैरामीटर हो सकता है. लाखों में किसी एक मामले में यह लिविर के काम में गड़बड़ी (liver dysfunction) की वजह भी बन सकता है. वह कहते हैं, लेकिन जोखिम खासतौर से उन लोगों में है, जिनकी मॉनीटरिंग नहीं की जा रही है.

“ऐसा नहीं है कि आपको लगातार निगरानी की जरूरत है— हम इन मरीजों को सेट हो जाने के बाद साल में एक बार या इसी तरह बुलाते हैं. तो मेरा मतलब है कि यह किसी और चीज के लिए ट्रीटमेंट लेने जैसा ही है.”
डॉ. अंबरीश मिथल, चेयरमैन, एंडोक्रिनोलॉजी एंड डायबिटीज, मैक्स हेल्थकेयर

वह कहते हैं, “अगर उन्हें (DGCA) टेस्टिंग में कुछ असामान्यताएं मिलीं हैं, तो मैं समझ सकता हूं.”

डॉ. मिथल कहते हैं कि तब भी “यह पूरी तरह से ट्रीटमेंट का मामला है, जिसे डोज को घटा-बढ़ाकर और थेरेपी के तरीके को बदलकर कंट्रोल किया जा सकता है. मुझे नहीं लगता कि क्यों अनफिट करार देना चाहिए.”

एडम क्विंट से कहते हैं कि हार्मोन थेरेपी या किसी दूसरी वजह से उनको कोई लिवर या हार्ट में कमजोरी की कोई समस्या नहीं है.

“तब समझ में आता अगर उनको कोई गंभीर मेडिकल समस्या होती जो उनके काम पर असर डाल सकती थी, लेकिन ये हार्मोंस उनके काम पर असर नहीं डाल सकते हैं.”
साहेर अली नाज़, कार्डियोवैस्कुलर परफ्यूज़निस्ट
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और ये जेंडर डिस्फोरिया का मसला क्या है?

एडम यह भी बताते हैं कि उनका साइकोमीट्रिक टेस्ट (psychometric test) कराया गया, जिसमें पता चला कि उन्हें जेंडर डिस्फोरिया (gender dysphoria) है- जिसे DGCA ने उनके फ्लाइंग लाइसेंस को खारिज करने की एक और वजह बताया.

हालांकि, उन्होंने इसके लिए कोई वजह नहीं बताई है कि ‘जेंडर डिस्फोरिया’ उन्हें विमान उड़ान के लिए किस तरह अनफिट बना देता है.

“बदकिस्मती से DSM (डाइग्नोस्टिक एंड स्टेटेस्टिकल मैनुअल ऑफ मेंटल डिसऑर्डर्स) में जेंडर डिस्फोरिया मेंटल हेल्थ डायग्नोसिस के रूप में दर्ज है, और हम सभी जो जेंडर, सेक्सुअलटी और मेंटल हेल्थ के क्षेत्र में काम करते हैं, जानते हैं कि यह कोई बीमारी नहीं है. आप डिस्फोरिया का इलाज नहीं करते हैं, आप किसी शख्स के अपने जेंडर को जीने के लिए इसकी केयर मुहैया कराते हैं.”
पूजा नायर, साइकोथेरेपिस्ट

“चूंकि इसे एक बीमारी के तौर पर लिस्ट में शामिल किया गया है, इसलिए DGCA यह कहने का हकदार है कि ‘आपको एक बीमारी है’, क्योंकि यह एक डायग्नोस की जाने वाली कंडीशन है.”

अगर यह ‘जांच के बाद पाई गई बीमारी’ थी, तो भी यह किसी शख्स की विमान उड़ाने की क्षमता पर कैसे असर डालेगी?

डॉ. नायर कहती हैं, “यही वह सवाल है, जिसे पूछने की जरूरत है, और मुझे यकीन है कि उनके पास संतोषजनक जवाब नहीं होगा. यह ट्रांसफोबिया (transphobia) नहीं है?” क्योंकि जेंडर डिस्फोरिया से शरीर में कमजोरी नहीं होती जैसा कि एक पायलट के लिए एन्जाइटी डिसऑर्डर या PTSD में हो सकता है.

वह कहती हैं, “इसके (जेंडर डिस्फोरिया) असर से शरीर में कमजोरी नहीं आती है.”

“कह सकते हैं कि डिस्फोरिया होने पर इसके अनुभव की वजह से कमजोर बनाता है क्योंकि इसमें इंसान के जीवन की गुणवत्ता कम हो जाती है. मगर यह मेरी काम करने की क्षमता पर असर नहीं डालता है. ऐसा नहीं है कि अगर मुझे डिस्फोरिया है तो मैं यह नहीं जान सकती कि एयरोप्लेन कैसे काम करता है.”
पूजा नायर, साइकोथेरेपिस्ट

वह आगे कहती हैं, “जेंडर डिस्फोरिया से होने वाले परेशानी का इस्तेमाल यह कहने के लिए किया जा रहा है कि आपके पास इस काम के लिए जरूरी कौशल या प्रतिभा नहीं है.”

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भारत से बाहर: अंतरराष्ट्रीय कानून क्या कहते हैं

यह सिर्फ भारत का ही मामला नहीं है. ट्रांसफोबिया (ट्रांस सेक्सुअल या ट्रांस जेंडरलोगों के प्रति पूर्वाग्रह) के शिकार लोग दुनिया भर के एविएशन संस्थानों में है, अक्सर उम्मीदवारों को सिर्फ ट्रांसजेंडर होने की वजह से कड़े मानसिक मूल्यांकन की तमाम रुकावटों को पार करना पड़ता है.

NGPA जैसे एक्टिविस्ट ग्रुप बराबरी के अधिकारों की वकालत कर रहे हैं, और दुनिया भर में एविएशन में LGBTQ कम्युनिटी के सदस्यों को मेडिकल और कानूनी मदद मुहैया कर रहे हैं.

उदाहरण के लिए, अमेरिका में बहुत खींच तान के बाद फेडरल एविएशन एड मिनिस्ट्रेशन (FAA) ने अभी हाल ही में अपने नियमों में बदलाव किया है जिसके बाद सभी पायलटों के लिए जरूरी मेडिकल टेस्ट के अलावा ट्रांस जेंडर लोगों के लिए अब अलग से इस तरह के मूल्यांकन नहीं किए जाते हैं.

एडम और ट्रांस अधिकारों के लिए आगे की राह

साइकोथेरेपिस्ट पूजा नायर कहती हैं, “जब तक वे इसे एक बीमारी के तौर पर देखेंगे, तब तक वे यह साबित कर सकेंगे कि यह एक खास तरह से कमजोर करने वाली है.”

उनका यह भी कहना है कि जब तक वर्कप्लेस में सही समायोजन के विचार पर ज्यादा गंभीरता से विचार नहीं किया जाता, तब तक चीजें नहीं बदलेंगी.

वह कहती हैं, “यह एक सवाल बन जाता है कि जिस काम के लिए हमने आपको काम पर रखा है, उसे करने में आपकी मदद करने के लिए क्या किया जा सकता है?”

“यह ऐसा कहने जैसा है कि अगर आप ज्यादा देर तक खड़े नहीं रह सकते हैं, तो हम आपको कुर्सी नहीं देंगे. इसे उस तरह देखने के बजाय जो एडम को असल में एक अच्छा पायलट बनने के लिए जरूरी है, आप कह रहे हैं कि वह इन सभी एक, दो, तीन वजहों से पायलट नहीं बन सकते हैं.”
पूजा नायर, साइकोथेरेपिस्ट

बदकिस्मती से, ट्रांसफोबिया मेडिकल सिस्टम में जगह बना चुका है, और ट्रांसकम्युनिटी के लोग इसे बदल पाने के लिए कुछ खास नहीं कर सकते हैं.

पूजा कहती हैं, “जेंडर पुष्टि केयर (affirming care) हासिल करने के लिए लोगों को इसका (जेंडर डिस्फोरिया) डायग्नोसिस कराना पड़ता है, इसलिए मेडिसिन और पूरी मेडिकल कम्युनिटी ने इसे इस तरह से बना दिया है कि आपको बीमारी के इलाज के लिए इसे बीमारी के तौर पर कुबूल करना ही होता है. वह ‘इलाज’ पाने के लिए जो हार्मोन थेरेपी, सर्जरी वगैरह है.”

हालांकि, एडम की लड़ाई किसी एक से नहीं, इस सिस्टम से है.

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“मैं चाहता हूं कि DGCA शरीरों की तुलना करना बंद कर दे... इसके बजाय, किसी शख्स की योग्यता को देखें. किसी के करियर के ख्वाब को इसलिए मत छीनो, क्योंकि कोई दूसरा शख्स उससे असहज है.”
एडम हैरी ने क्विंट से कहा.

उन्होंने इस बारे में बताया कि पूरी अग्निपरीक्षा उनके लिए कितनी परेशान करने वाली रही है, खासकर अब जबकि उन्होंने DGCA के फैसले को अदालत में चुनौती देने का फैसला लिया है.

साहेर कहती हैं, “मैं जानती हूं कि मानसिक रूप से कोई भी शख्स परेशान हो जाएगा अगर उसने कुछ पाने के लिए कड़ी मेहनत की है और बिना किसी सही वजह के कोई उन्हें अपने सपने को जीने के मौके से वंचित कर देता है.”

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