लिवर (Liver) की बीमारियां विश्व के लिए एक गंभीर चिंता बनती जा रही हैं, जिससे दुनिया भर में हर साल लगभग 2 मिलियन मौतें होती हैं, जिनमें प्रमुख कारक सिरोसिस, वायरल हेपेटाइटिस और हेपेटोसेलुलर कार्सिनोमा से जुड़ी क्लिनिकल जटिलताएं हैं. हाल के वर्षों में, अकेले भारत में लिवर से जुड़ी मृत्यु दर सालाना 268,580 तक बढ़ गई है, जो सभी मौतों का 3.17% है और वैश्विक लिवर से संबंधित मौतों में 18.3% का कारण है.
भारत में लिवर रोग सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंता है
भारत में क्रॉनिक हेपेटाइटिस बी और सी, गैर-अल्कोहलिक फैटी लिवर रोग (एनएएफएलडी) और अल्कोहलिक लिवर रोग (एएलडी) लिवर की वो स्थिति है, जिसमें 40 मिलियन व्यक्ति क्रॉनिक हेपेटाइटिस बी से प्रभावित हैं और 6 से 12 मिलियन लोग हेपेटाइटिस सी संक्रमण से जूझ रहे हैं. एनएएफएलडी, एक बढ़ती हुई सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंता है, जो सामान्य आबादी के 50% से अधिक लोगों को गंभीरता के अलग-अलग स्तर तक प्रभावित करती है.
शराब से होने वाली लिवर की बीमारी भारत में भी चिंता का विषय बनी हुई है और एक लाख से अधिक मौतों का कारण बनती है.
जबकि क्लिनिकल प्रैक्टिस में सामने आने वाली कई लिवर बीमारियां काफी हद तक रोकी जा सकती हैं. बढ़ती घटनाओं का कारण, लिवर रोगों की प्रकृति और समय पर मेडिकल हेल्प प्राप्त करने में देरी है.
शुरुआत के स्टेज के दौरान लक्षणों का पता नहीं चलने के कारण लिवर रोगों का बढ़ता बोझ और भी बढ़ जाता है. इस बोझ से निपटने के लिए, क्लिनिकल एक्सपर्ट लिवर की जांच की सिफारिश करते हैं, जो लिवर की स्थिति को समझने, संभावित मुद्दों की समय पर पहचान करने और लिवर हेल्थ को बनाए रखने के लिए आवश्यक कदम उठाने का मौका देता है.
नियमित जांच और परीक्षण का महत्व
लिवर हेल्थ की जांच में आमतौर पर ब्लड टेस्ट, इमेजिंग स्टडी और विशेष टेस्ट सहित पूरा मूल्यांकन शामिल होता है.
लिवर फंक्शन टेस्ट, जिसे लिवर केमिस्ट्री या लिवर पैनल भी कहा जाता है, ये ब्लड फ्लो में प्रोटीन, लिवर एंजाइम और बिलीरुबिन की कॉन्संट्रेशन का मूल्यांकन करके लिवर हेल्थ का आकलन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. ये टेस्ट लिवर हेल्थ के बारे में जरुरी जानकारी प्रदान करते हैं और लिवर की बीमारियों का निदान करने, रोग की प्रगति पर नजर रखने और चिकित्सीय हस्तक्षेपों की प्रभावशीलता को समझने में एक जरुरी टूल के रूप में काम करते हैं.
विशिष्ट रेडियोलॉजी प्रक्रियाएं, जैसे कि लिवर स्कैन, खास स्थितियों के लिए लिवर की जांच और मूल्यांकन करने और इसके पूरे काम पर नजर रखने के लिए बहाल की जाती हैं. लिवर अल्ट्रासोनोग्राफी (यूएस), कंप्यूटेड टोमोग्राफी (सीटी), और मैग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग (एमआरआई) लिवर के घावों और असामान्यताओं के निदान के लिए उपयोग की जाने वाली प्राथमिक इमेजिंग तरीका है.
नियमित लिवर हेल्थ की जांच से फैटी लिवर रोग, वायरल हेपेटाइटिस, लिवर फाइब्रोसिस और लिवर कैंसर सहित कई लिवर स्थितियों का पता लगाने में मदद मिलती है. यह जल्द पता लगाने में सहायता करता है.
नियमित जांच हेल्थ केयर प्रोवाइडर को लिवर हेल्थ की बारीकी से निगरानी करने और व्यक्तिगत आवश्यकताओं के लिए खास सिफारिशें पेश करने में भी सक्षम बनाती है. स्क्रीनिंग के अलावा, लाइफस्टाइल के उपाय जैसे स्वस्थ आहार बनाए रखना, नियमित व्यायाम, शराब का सेवन सीमित करना और उच्च जोखिम वाले व्यवहार से बचना लिवर हेल्थ के मैनेजमेंट के लिए महत्वपूर्ण हैं.
लिवर को हेल्दी रखने के उपाय
रिस्क फैक्टर्स को समझने, लाइफस्टाइल में बदलाव और नियमित जांच जैसे प्रिवेंटिव उपायों को अपनाने से लिवर रोगों की घटनाओं और प्रभाव को काफी कम किया जा सकता है. इसके अलावा, जरूरी है कि हेल्थकेयर प्रोवाइडर और पालिसी बनाने वाले, सोसाइटी के हेल्थ और वेलनेस बनाए रखने के लिए जागरूकता बढ़ाएं और सक्रिय उपायों को बढ़ावा दें.
व्यक्तिगत स्तर पर, लोगों को लिवर से जुड़े लक्षणों के प्रति सतर्क रहना चाहिए और हेल्थकेयर प्रोवाइडर के साथ नियमित जांच कराकर लिवर हेल्थ को प्राथमिकता देनी चाहिए.
स्टडीज से पता चलता है कि 40 वर्ष की आयु से अधिक के लोग और नियमित रूप से शराब का सेवन करने वाले या हेपेटाइटिस के संपर्क में आने वाले व्यक्तियों के लिए हर 3 साल में लिवर की जांच कराने की सलाह दी जाती है. लिवर हेल्थ की दिशा में सक्रिय कदम उठाने से पूरा हेल्थ सुरक्षित रहेगा, जीवन की गुणवत्ता बढ़ेगी और लिवर से जुड़े रिस्क कम होंगे.
यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि जल्द पता लगाना और समय पर हस्तक्षेप बेहतर परिणाम और स्वस्थ आबादी सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है.
(यह आर्टिकल राम मनोहर लोहिया अस्पताल की वरिष्ठ सर्जन और मैया सोशल चेंज फ्रंट फाउंडेशन की डायरेक्टर डॉ. दिव्या सिंह ने फिट हिंदी के लिए लिखा है.)
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