World AIDS Day 2022: हर साल 1 दिसंबर को एड्स (AIDS) के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए विश्व भर में एड्स दिवस मनाया जाता है. अब तक दुनिया भर में 40.1 मिलियन लोगों की जान लेने के कारण एचआईवी (HIV) एक प्रमुख वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य मुद्दा बना हुआ है.
साल 2021 में, विश्व भर में 650 000 लोग एचआईवी (HIV) से संबंधित कारणों से मारे गए और 1.5 मिलियन लोगों को एचआईवी (HIV) हुआ.
भारत में किस उम्र के लोगों में बढ़ रही एचआईवी/एड्स की समस्या? संख्या को लेकर क्या कहता है एचआईवी/एड्स का डेटा? क्या अभी भी एड्स/एचआईवी से जुड़ा है सोशल स्टिग्मा? एड्स के कारण और कौन सी बीमारियां होने का खतरा बढ़ जाता है? फिट हिन्दी आपके लिये ऐसे ही महत्वपूर्ण सवालों के जवाब लाया है.
क्या कहता है एचआईवी/एड्स का डेटा?
भारत में एचआईवी (HIV) संक्रमण में कमी आ रही है, लेकिन अभी भी देश में अनुमानित (estimated) 24.01 लाख रोगी हैं, जिनमें 12 साल से कम उम्र के 51,000 बच्चे शामिल हैं.
कुल अनुमानित पीएलएचआईवी (PLHIV) में लगभग 45% (10.83 लाख) महिलाएं हैं और 2% लगभग 51,000 बच्चे हैं, जिनकी उम्र 12 साल से कम है.
यूएनएड्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत उन देशों में शामिल है, जिन्होंने कोविड-19 और अन्य संकटों के बीच भी एचआईवी संक्रमण में कमी देखी है.
किस उम्र के मरीज ज्यादा देखने को मिल रहे हैं?
फोर्टिस हॉस्पिटल, नोएडा में इंफेक्शियस डिजीज की कंसल्टेंट, डॉ छवि गुप्ता फिट हिन्दी से कहती हैं, "देश में युवा पीढ़ी खासतौर से किशोर एचआईवी/एड्स से ज्यादा प्रभावित हैं. फिलहाल बच्चों में इसका प्रसार 0.15% है".
"ज्यादातर एचआईवी/एड्स के मरीज बीस से चालीस साल की उम्र के होते हैं. एचआईवी/एड्स ग्रसित सीनियर सिटीजन की संख्या काम होती है और वह ज्यादातर किसी और बीमारी की सर्जरी करवाते समय एड्स से भी पीड़ित पाए जाते हैं."डॉ. अंकिता बैद्य, कंसल्टेंट- इंफेक्शियस डिजीज, एचसीएमसीटी मणिपाल हॉस्पिटल, द्वारका
एड्स के कारण और कौन सी बीमारी होने का खतरा है?
"एड्स (AIDS) के कारण बहुत सारे इन्फेक्शन्स जैसे कि फंगल इन्फेक्शन्स, दिमाग का इन्फेक्शन होने का खतरा बढ़ जाता है. एड्स, एचआईवी का चौथा स्तर माना जाता है, जिसमें एड्स से जुड़ी बीमारियां होती हैं. इस स्तर पर कुछ तरह के कैंसर होने का खतरा भी होता है" ये कहना है डॉ. अंकिता बैद्य का.
एचआईवी (HIV) की वजह से इम्यून कोशिकाएं प्रभावित होती हैं, जिसके चलते इम्यूनो डेफिशिएंसी हो जाती है और इसे ही एड्स (इक्वायर्ड इम्युनोडेफिशिएंसी सिंड्रोम) कहते हैं.
"इम्यूनोसप्रेस्ड स्टेटस की वजह से मरीजों को दूसरे कई संक्रमणों जैसे ट्यूबरक्लॉसिस, फंगल इंफेक्शंस जैसे कि क्रिप्टोकोकल मेनिंजाइटिस का खतरा रहता है. इन संक्रमणों की मृत्यु दर भी अधिक है."डॉ छवि गुप्ता, कंसल्टेंट- इंफेक्शियस डिजीज, फोर्टिस हॉस्पिटल, नोएडा
इन संक्रमणों के अलावा, दूसरी कई जटिलताएं जैसे एड्स संबंधी कार्डियोमायोपैथी, मेटाबॉलिक सिंड्रोम, एचआईवी नेफ्रोपैथी भी आम हैं. एचआईवी (HIV) मरीजों में मैलिग्नेंसी के मामले भी बढ़ रहे हैं.
एड्स (AIDS)/एचआईवी से आज भी जुड़ी है शर्मिंदगी
"भारत में आज भी एड्स (AIDS) को लेकर सोशल स्टिग्मा मौजूद है. एड्स (AIDS) के साथ जुड़े स्टिग्मा के कारण मरीज और उसका परिवार इस बीमारी को दुनिया से छुपाना चाहते हैं, जिसके चलते कई बार सही इलाज करवा पाना मुश्किल हो जाता है. इस कारण मरीज सही जानकारी और एक्सपर्ट ट्रीटमेंट नहीं ले पाते."डॉ. अंकिता बैद्य, कंसल्टेंट- इंफेक्शियस डिजीज, एचसीएमसीटी मणिपाल हॉस्पिटल, द्वारका
डॉ छवि गुप्ता ने इस पहलू पर प्रकाश डालते हुए फिट हिन्दी से कहा, "एचआईवी/एड्स को आज भी सामाजिक शर्मिंदगी का कारण माना जाता है. एचआईवी (HIV) से जुड़ी शर्मिंदगी के चलते, एचआईवी (पीएलएचआईवी) से प्रभावित लोगों और उनके परिजनों को नकारात्मक विचारों, दृष्टिकोणों और भावनाओं को सहना पड़ता है. एचआईवी से जुड़ी शर्मिंदगी का एक बड़ा कारण इस रोग को लेकर डर का भाव भी है, जो कि तरह-तरह की गलत धारणाओं, जानकारी के अभाव और सामाजिक मेल-मिलाप से एचआईवी के प्रसार जैसी गलतफहमियों के चलते बढ़ता है. शर्मिंदगी का कारण धारणा या सोच होती है, और इनके चलते व्यवहार में भेदभाव बढ़ता है".
"एचआईवी संबंधी भेदभाव के चलते, लोग एचआईवी (HIV) से प्रभावित लोगों के साथ बुरा बर्ताव करते हैं. इससे एचआईवी प्रभावित लोगों की भावनात्मक तथा मानसिक सेहत भी प्रभावित होती है. जैसे ही किसी व्यक्ति को अपने एचआईवी पॉजिटिव होने का पता चलता है, उनके आत्मविश्वास और आत्मसम्मान को इससे ठेस पहुंचती है. शुरू में वे चिंता में घुलते हैं, फिर डर या अवसाद से भी घिर जाते हैं. वे अक्सर अपने साथ होने वाले भेदभाव का कड़वा घूंट अकेले ही पीते हैं और समाज से मिले नकारात्मक अनुभवों के चलते खुद को लेकर उनकी छवि लगातार बिगड़ती रहती है."डॉ छवि गुप्ता, कंसल्टेंट- इंफेक्शियस डिजीज, फोर्टिस हॉस्पिटल, नोएडा
सामाजिक रूप से अलगाव और निराशा का भाव पैदा करती
एचआईवी से जुड़ी शर्मिंदगी अक्सर सामाजिक रूप से अलगाव और निराशा का भाव भी पैदा करती है. ऐसे मरीज और उनके परिवार के दूसरे सदस्यों को हमेशा अपने सामाजिक रुतबे के छिनने और सामाजिक प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचने का डर सताता है. उन्हें लगातार भेदभाव तथा पूर्वाग्रह जैसे अनुभवों से गुजरना पड़ता है. इस प्रकार की प्रतिक्रियाओं के चलते एचआईवी के इलाज तथा इस रोग से बचाव के प्रोग्रामों के रास्ते में कई अड़चनें पेश आती हैं.
एचआईवी संक्रमण का कोई इलाज नहीं है. हालांकि, दुनिया में एचआईवी के प्रभावी रोकथाम, निदान, उपचार और देखभाल तक बढ़ती पहुंच के साथ, एचआईवी संक्रमण एक प्रबंधनीय (manageable) पुरानी स्वास्थ्य स्थिति बन गई है, जिससे एचआईवी के साथ रहने वाले लोग स्वस्थ और लंबा जीवन जी सकते हैं.
व्यवहार परिवर्तन कर सकता है मदद
ये सच है कि देश में आज पहले के मुकाबले कहीं अधिक एचआईवी संक्रमित लोग ट्रीटमेंट करा रहे हैं, लेकिन अभी भी बहुत से लोगों तक जरूरी मदद नहीं पहुंच पाई है. या तो वे एचआईवी (HIV) संक्रमित होने से अनजान हैं या वे पता चलने के बाद एचआईवी/एड्स से जुड़े स्टिग्मा से डरे हुए हैं.
"एचआईवी/एड्स आधारित भेदभाव पीड़ित लोगों के लिए बहुत गंभीर समस्या है. यह लोगों को एचआईवी से बचने, स्वास्थ्य सेवाएं लेने में रुकावट पैदा करता है. प्रचार एवं प्रसार के बावजूद भेदभाव की समस्या से लड़ने में 25 सालों में कम सफलता ही मिल पाई है. भेदभाव की समस्या से मुकाबला करने के लिए एक सशक्त नीति और योजना कई स्तरों पर आवश्यक है. इसमें समाज, स्वास्थ्य सेवी संस्थाएं, परिवार का सम्मिलित होना आवश्यक है."पूनम मुतरेजा, कार्यकारी निदेशक- पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया
पूनम मुतरेजा फिट हिन्दी से कहती हैं, "एचआईवी से बचाव में बिहेवियर चेंज (behaviour change) को काफी सफलता मिली है. व्यवहार (behaviour) सम्बंधी नीतियों ने पहले यौन संबंध बनाने में देरी करने, यौन के कम साथी रखने, इस्तेमाल की हुई सुईयां से बचने और इंजेक्शन योग्य नशीली दवाओं का दुरुपयोग कम करने में मदद की है. बिहेवियर चेंज कम्युनिकेशन (behaviour change communication) एचआईवी/एड्स कार्यक्रम का आवश्यक अंग है. ये भेदभाव से लड़ने में, स्वास्थ्य सेवाओं का इस्तेमाल बढ़ाने में, सुरक्षित यौन संबंध बनाने और सुरक्षित सुई का इस्तेमाल करने में कारगर हुए हैं और आगे भी मदद कर सकते हैं. संवेदनशील और आदरपूर्ण बिहेवियर चेंज कम्युनिकेशन कार्यक्रम भेदभाव से ग्रस्त समूहों को रोजगार देकर भेदभाव को खत्म करने में करने में भी मदद कर सकते हैं".
ऐसे हो सकता है एचआईवी (HIV) का संक्रमण
एचआईवी (HIV) संक्रमित शख्स के साथ असुरक्षित वजाइनल या एनल सेक्स और कुछ दुर्लभ मामलों में ओरल सेक्स के जरिए
एचआईवी (HIV) संक्रमित खून चढ़ाए जाने से
संक्रमित सूई, सिरिंज, सर्जिकल उपकरण, संक्रमित रेजर, ब्लेड, चाकू या त्वचा को काटने या छीलने वाली दूसरे नुकीली चीजें साझा करने से
संक्रमित मां से उसके बच्चे को प्रेगनेंसी, जन्म या ब्रेस्ट फीडिंग के दौरान
कई लोगों में एचआईवी वायरस शरीर में कई वर्षों तक साइलेंट रह सकता है और किसी प्रकार के लक्षण नहीं पैदा करता, ऐसे मरीजों में रोग का निदान दुर्घटनावश होता है.
शुरुआती लक्षणों के रूप में इन मरीजों को महीनों तक हल्का बुखार, वजन गिरना, भूख घटना, रैशेज, अल्सर, एलोपीसिया शामिल हैं. कभी-कभी मरीजों में संक्रमण या मैलिग्नेंसी (कैंसर) भी दिखायी देता है और इसके बाद वे एचआईवी (HIV) के मरीज घोषित होते हैं.
अगर इनमें से कुछ लक्षण मौजूद हैं, तो जल्द से जल्द जांच करवाना जरूरी है क्योंकि एड्स कई तरीकों से फैल सकता है.
एचआईवी/एड्स पर लगाम संभव
अगर किसी को इन्फेक्शन का एक्सपोरज हो जाये तो सबसे जरूरी है , पोस्ट एक्सपोजर प्रोफिलैक्सिस (PEP) 72 घंटों के अंदर ले लिया जाये ताकि इन्फेक्शन का खतरा काम हो सके. जितनी जल्दी ये दवा ले ली जाएगी उतनी ज्यादा प्रभावकारी होगी.
डॉक्टरों का कहना है कि कुछ सरल उपाय अपनाकर इस बीमारी पर लगाम लगाई जा सकती है:
बॉडी फ्लूइड से बचें: किसी भी दूसरे व्यक्ति के खून या अन्य बॉडी फ्लूइड से दूर रहें, अगर आप इसके संपर्क में आते हैं, तो त्वचा को तुरंत अच्छी तरह धोएं. इससे संक्रमण की आशंका कम हो जाती है.
ड्रग के इंजेक्शन और नीडल शेयर ना करें: कई देशों में ड्रग्स के लिए इस्तेमाल की जाने वाली सिरिंज को शेयर करना एचआईवी फैलने का मुख्य कारण है. यह एचआईवी के अलावा हेपेटाईटिस का भी कारण हैं. हमेशा साफ, नई नीडल इस्तेमाल करें.
असुरक्षित यौन संबंध ना बनाएं: दुनिया भर में एचआईवी मुख्य रूप से असुरक्षित वजाइनल और एनल सेक्स से ट्रांसमिट होता है. ऐसे में हमेशा कंडोम का सही इस्तेमाल करने की सलाह दी जाती है. डॉक्टरों के मुताबिक कंडोम एचआईवी/एड्स की रोकथाम के सर्वोत्तम तरीकों में से एक है.
प्रेगनेंसी के दौरान एचआईवी (HIV) टेस्ट कराएं: एचआईवी संक्रमित गर्भवती महिला से उसके बच्चे में एचआईवी का संक्रमण हो सकता है. इसके अलावा स्तनपान कराने से भी एचआईवी का वायरस बच्चे में जा सकता है. हालांकि अगर मां उचित दवाएं ले रही है तो यह आशंका कम हो जाती है.
खून चढ़ाने के दौरान सुरक्षा बरतें: स्वयंसेवी रक्तदाताओं के खून की जांच के बाद किसी को खून देना एचआईवी को फैलने से रोकने का सुरक्षित तरीका है.
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