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World Haemophilia Day 2022|हीमोफीलिया से ग्रसित बच्चों का इस तरह रखें ध्यान..

World Haemophilia Day पर डॉक्टर ने बताए हीमोफिलिया (Haemophilia) से बच्चों को सुरक्षित रखने के उपाय.

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World haemophilia day हर साल 17 अप्रैल को पूरी दुनिया में मनाया जाता है. इसे मानने के पीछे उद्देश है, ज्यादा से ज्यादा लोगों को इस बीमारी के प्रति जागरूक करना. यह बीमारी बड़ों और बच्चों दोनों में पाई जाती है. आज इस लेख के जरिए हम बच्चों में हीमोफीलिया (Haemophilia) के कारण, प्रकार, लक्षण और इलाज के बारे में मेदांता हॉस्पिटल, गुरुग्राम के पीडीऐट्रिक हेमटो ऑन्कोलॉजी और बोने मैरो ट्रैन्स्प्लैंट, चिकित्सा और हेमेटो ऑन्कोलॉजी कैंसर इंस्टीट्यूट के निदेशक, डॉ सत्य प्रकाश यादव से जानेंगे.

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क्या है हीमोफीलिया (Haemophilia)?

मेदांता हॉस्पिटल, गुरुग्राम के पीडियाट्रिक आंकोलॉजी व बोन मैरो ट्रांसप्लांट के निदेशक डॉ सत्य प्रकाश का कहना है "हीमोफीलिया (Haemophilia) एक तरह का ब्लड डिसऑर्डर (Blood Disorder) है, जिसमें हमारा खून पतला हो जाता है. इसमें ब्लीडिंग कहीं से भी और कभी भी शुरू हो सकती है. हीमोफीलिया (Haemophilia) से पीड़ित बच्चों में चोट लगने पर लंबे वक्त तक ब्लीडिंग की समस्या बनी रहती है. ऐसा मरीजों में ब्लड क्लॉटिंग फैक्टर्स (Blood clotting factors) की कमी की वजह से ऐसा होता है"

यहां क्लॉटिंग फैक्टर्स को अगर आसान शब्दों में समझें, तो क्लॉटिंग फैक्टर एक तरह का प्रोटीन होता है, जो ब्लीडिंग कंट्रोल करने में खास भूमिका निभाता है. जब भी हमें चोट लगती है, तो हमारा खून जम जाता है. खून जमने के लिए ब्लड क्लॉटिंग फैक्टर चाहिए होते हैं. अगर वो न हो तो खून नहीं जमेगा और बहता रहेगा.

ब्लीडिंग होने के 2 कारण होते हैं, पहला अगर प्लेटलेट्स की कमी हो, दूसरा अगर ब्लड में ब्लड क्लॉटिंग फैक्टर्स (Blood clotting factors) नहीं हो.

बच्चों में हीमोफीलिया (Haemophilia) के प्रकार 

World Haemophilia Day पर डॉक्टर ने बताए हीमोफिलिया (Haemophilia) से बच्चों को सुरक्षित रखने के उपाय.

हीमोफीलिया में ब्लड क्लॉटिंग फैक्टर मौजूद नहीं होता है 

(फोटो:iStock)

हीमोफीलिया (Haemophilia) दो तरह का होता है, हीमोफीलिया ए (Haemophilia A) और हीमोफीलिया बी (Haemophilia B).

दरअसल हीमोफीलिया ए में फैक्टर 8 की कमी होती है और हीमोफीलिया बी में फैक्टर 9 की कमी होती है. ये दोनों ही शरीर में खून के ​थक्के बनाने के लिए जरूरी होते हैं.

ब्लड क्लॉटिंग फैक्टर (Blood clotting factor) का स्तर जितना कम होगा, बच्चों में ब्लीडिंग होने की संभावना उतनी ही ज्यादा होगी.

हीमोफीलिया बच्चों और बड़ों दोनों में होने वाली बीमारी है, जो अलग-अलग तरह की होती है.

बच्चों में हीमोफीलिया (Haemophilia) के लक्षण

World Haemophilia Day पर डॉक्टर ने बताए हीमोफिलिया (Haemophilia) से बच्चों को सुरक्षित रखने के उपाय.

नाक से खून आना हीमोफीलिया एक कारण हो सकता है 

(फोटो:iStock)

शरीर से जरूरत से ज्यादा खून बहना, किसी सर्जरी या चोट लगने की वजह से देर तक ब्लीडिंग की समस्या होना, बच्चों में हीमोफीलिया (Haemophilia) के प्रमुख लक्षण हैं. इसके अलावा कुछ अन्य लक्षण इस प्रकार हैं. जैसे:

  • नाक से लगातार खून निकलना

  • मांसपेशियों एवं जोड़ों से ब्लीडिंग होना

  • किसी सर्जरी के बाद ज्यादा वक्त तक ब्लीडिंग होना

  • मसूड़ों से लगातार ब्लीडिंग होना

  • स्किन के अंदर नीले निशान का आना

  • जॉइन्ट्स या ऐंकल में सूजन होना, जिसकी वजह से बच्चा लंगड़ा कर चलने लगे

  • कोहनी में सूजन, जिसकी वजह से बाहं हिलाने में दर्द हो

  • नीले पड़े निशान पर गांठ महसूस होना

  • पेट में ब्लीडिंग होने से पेट दर्द रहना

  • ब्रेन में ब्लीडिंग से सिर में तेज दर्द और बेहोशी आना

बच्चों में हीमोफीलिया (Haemophilia) के कारण

World Haemophilia Day पर डॉक्टर ने बताए हीमोफिलिया (Haemophilia) से बच्चों को सुरक्षित रखने के उपाय.

हीमोफीलिया (Haemophilia) जेनेटिक  कारणों से होता है 

(फोटो:iStock)

डॉ सत्य प्रकाश यादव कहते हैं, "हीमोफीलिया (Haemophilia) जेनेटिकल (Genetical) कारणों से होने वाली बीमारी है. ज्यादातर हीमोफीलिया ‘X' लिंक डिसॉर्डर होता है. इसका मतलब है, यह समस्या मां से बच्चे में जाती है".

महिलाएं इस डिसॉर्डर को साथ लेकर चलती हैं और उनसे ये समस्या बच्चों में जाती है. लड़कियों में इसके लक्षण देखने को नहीं मिलते हैं क्योंकि उनके पास दो 'X' क्रोमोसोम होते हैं.

एक में अगर समस्या होती है, तब भी दूसरा वाला ठीक से काम करता है. लड़कों में ऐसा नहीं होता है क्योंकि उनके पास केवल एक 'X' क्रोमोसोम होता है, जो मां से आता है, बच्चे को पिता से 'Y' क्रोमोसोम मिलता है. इसीलिए यह बीमारी परिवार के पुरुष सदस्यों के जीवन पर असर डालती हैं.

हीमोफीलिया से पीड़ित बच्चे के मामा और भाइयों में भी ये समस्या देखना को मिलती है. पिता से ये समस्या बेटियों में जा सकती है और फिर वहां से बेटी के बेटों को हो सकती है.
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बच्चों में हीमोफीलिया (Haemophilia) का डायग्नोसिस कैसे किया जाता है?

डॉ सत्य प्रकाश यादव कहते हैं कि हीमोफीलिया (Haemophilia) बीमारी की आशंका होने पर डॉक्टर कुछ टेस्ट करवाने की सलाह देते हैं. जो हैं:

  • कंप्लीट ब्लड काउंट (CBC) टेस्ट

  • प्रोथ्रॉम्बिन टाइम (Prothrombin Time [PT]) टेस्ट

  • एक्टिवेटेड पार्शियल थ्रोम्बोप्लास्टिन टाइम (PTT)

  • फैक्टर 8 एक्टिविटी टेस्ट

  • फैक्टर 9 एक्टिविटी टेस्ट

यहां बता दें, अगर परिवार में हीमोफीलिया (Haemophilia) की समस्या है, तो ऐसे में प्रीनेटल (Prenatal) टेस्ट भी कराया जाता है.

बच्चों में हीमोफीलिया (Haemophilia) का इलाज 

World Haemophilia Day पर डॉक्टर ने बताए हीमोफिलिया (Haemophilia) से बच्चों को सुरक्षित रखने के उपाय.

सरकारी हॉस्पिटल में फैक्टर 8 और फैक्टर 9 के इंजेक्शन मुफ्त में उपलब्ध हैं

(फोटो:iStock)

डॉ सत्य प्रकाश यादव ने फिट हिंदी से खास बातचीत में बच्चों में हीमोफीलिया (Haemophilia) के इलाज के बारे में विस्तार से बताया.

"हीमोफीलिया का इलाज उसके प्रकार और उसकी गंभीरता पर निर्भर करता है. आजकल हीमोफीलिया का इलाज है.

इसके इलाज का सबसे आसान तरीका है, फैक्टर 8 और फैक्टर 9 के इंजेक्शन . यह बाजार में आसानी से मिल जाते हैं. जब भी हीमोफीलिया से पीड़ित बच्चे को चोट लगती है और ब्लीडिंग आती है, तो उपलब्ध इंजेक्शन लगवाने से ब्लीडिंग तुरंत बंद हो जाती है".

डॉ सत्य प्रकाश यादव आगे कहते हैं, "पश्चिमी देशों में कई जगह मुफ्त में हीमोफीलिया से पीड़ित बच्चों को सावधानी के तौर पर हफ्ते में 2 दिन, फैक्टर के इंजेक्शन लगवा दिए जाते हैं ताकि अगर चोट लगे भी तो ब्लीडिंग न हो. बच्चे सामान्य जीवन जी सकें, खेल-कूद सके.

भारत में फैक्टर के इंजेक्शन महंगे हैं, पर सरकारी हॉस्पिटल में मरीजों को मुफ्त में, चोट लगने के बाद हो रही ब्लीडिंग रोकने के लिए दिए जाते हैं".

सरकारी अस्पतालों के हीमोफीलिया सेंटर में मरीजों के लिए फैक्टर 8 और फैक्टर 9 के इंजेक्शन मुफ्त में उपलब्ध हैं.
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इलाज के लिए फैक्टर 8 और फैक्टर 9 के इंजेक्शन लगवाने होते हैं साथ ही बच्चे को चोट से बचाने के लिए सावधानी बरतनी होती है.

"हीमोफीलिया के इलाज में नया और लंबे समय तक असर करने वाले फैक्टर भी अब भारत में आ गए हैं. इसमें मरीज महीने में एक बार एक इंजेक्शन लगवा कर महीने भर के लिए निश्चिंत रह सकते हैं. हर हफ्ते 2 -3 बार आ कर इंजेक्शन लगवाने के चक्कर से बच सकते हैं. ये इंजेक्शन भारत में कुछ ही समय पहले आए हैं और महंगे हैं" ये बताते हुए डॉक्टर आगे कहते हैं कि

"पश्चिमी देशों में इस बीमारी के लिए नया इलाज आया है, जीन थेरपी. इसमें हम वायरस के जरिए फैक्टर 8 या फैक्टर 9, जिसकी कमी है हमारे शरीर में, उसको लिवर में डाल कर ठीक कर सकते हैं. इसके बाद लिवर सेल्ज फैक्टर 8 और फैक्टर 9 बनाना शुरू कर देते हैं. यह इलाज अभी भारत में नहीं शुरू हुआ है पर उम्मीद है कुछ समय में शुरू हो जाएगा."
डॉ सत्य प्रकाश यादव, निदेशक, हेमेटो ऑन्कोलॉजी कैंसर इंस्टीट्यूट, मेदांता हॉस्पिटल
कई माता-पिता फैक्टर के इंजेक्शन खरीद कर घर पर रख लेते हैं और इंजेक्शन लगाना भी सीख लेते हैं. बच्चे को घर पर ही समय-समय पर इंजेक्शन देते रहते हैं.

माता-पिता इन बातों का रखें ध्यान 

  • समय-समय पर डॉक्टर से कंसल्ट करते रहें

  • दवाईयों को नियम से देते रहें

  • बच्चे के बीमार पड़ने पर डॉक्टर को पहले ही बता दें कि बच्चा हीमोफीलिक है

  • बच्चे को चोट लगने से और साथ ही कांटेक्ट स्पोर्ट्स खेलने से बचाना चाहिए

  • डेंटल केयर पर ध्यान दें क्योंकि दांतों से जुड़ी परेशानी होने पर ब्लीडिंग की समस्या का खतरा बना रहता है

बच्चे के स्कूल में टीचर को हीमोफीलिया (Hemophilia) की जानकारी देकर रखें, ताकि अगर बच्चे को स्कूल में किसी भी कारण चोट लगने की वजह से ब्लीडिंग की समस्या होती है, तो ऐसे में वो परिवार और डॉक्टर से जल्द से जल्द कंसल्ट करें.

बच्चा अगर इस बीमारी के बारे समझने लगा है, तो उसे भी सावधानी बरतने की सलाह दें.

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