कर्नाटक हाईकोर्ट ने ये कहते हुए हिजाब बैन (Hijab Ban) को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया है कि 'हिजाब पहनना इस्लाम की अनिवार्य धार्मिक प्रथा नहीं है. हाईकोर्ट ने कहा कि ड्रेस कोड का निर्देश संवैधानिक है और स्टूडेंट्स इसपर आपत्ति नहीं कर सकते.
कर्नाटक हाईकोर्ट के इस फैसले का जहां बीजेपी ने स्वागत किया है, तो वहीं महबूबा मुफ्ती, असदुद्दीन ओवैसी जैसे नेताओं ने फैसले की आलोचना की है.
जर्नलिस्ट आर्फा खानुम शेरवानी ने लिखा कि भारत में अब इकलौती जरूरी चीज बहुसंख्यकवाद है. बहुमत अल्पसंख्यकों के लिए शर्तें तय करेगा. इसे आज कानूनी मुहर मिल गई है.
जामिया मिल्लिया इस्लामिया की स्टूडेंट सफूरा जरगर ने लिखा, "ये पितृसत्तात्मक जनादेश स्वीकार्य नहीं है. किसी को ये तय करने का अधिकार नहीं है कि मैं क्या पहनूंगी या क्या नहीं पहनूंगी."
ट्विटर यूजर @ayshaa_nourin ने लिखा, "फैसले से हैरान नहीं हूं, लेकिन ये दुखद है कि कैसे हम मुसलमानों को कोर्ट और सिस्टम द्वारा अलग किया जा रहा है, लड़ाई तब तक जारी रहेगी जब तक हमें हमारे छीने गए अधिकार वापस नहीं मिल जाते."
ट्विटर यूजर @AfreenFatima136 ने लिखा कि कर्नाटक हाईकोर्ट स्पष्ट रूप से आगे निकल गया है और इस्लाम के लिए क्या जरूरी है और क्या नहीं, इस पर टिप्पणी करने के लिए सही नहीं है. ये स्वीकार नहीं है.
ट्विटर यूजर @sheik_hiba ने लिखा, "मेरे संविधान ने मुझे अपने धर्म का पालन करने का अधिकार दिया है. कैसे कोर्ट हिजाब को इस्लाम का अभिन्न अंग नहीं मान सकती है? हिजाब के लिए मेरी लड़ाई जारी रहेगी. पीछे नहीं हटेंगे."
ट्विटर यूजर @sabah_maharaj ने लिखा कि ये याद रखा जाना चाहिए कि हिजाब के खिलाफ आक्रोश युवा, कट्टरपंथी स्टूडेंट्स और कुछ स्कूल अधिकारियों की भीड़ द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले उत्पीड़न, धमकी और डर की एक सीरीज के रूप में शुरू हुआ, जो अब कोर्ट के फैसले में बदल गया है.
ट्विटर यूजर @magicanarchist ने कोर्ट के आदेश को इतिहास में एक ब्लैक मार्क बताया. उन्होंने लिखा कि एक हाईकोर्ट का मुस्लिम महिलाओं का इस तरह से हिजाब पहनने का अधिकार छीनना शर्मनाक है.
ट्विटर यूजर @sabah_maharaj ने लिखा कि मुस्लिम लड़कियों के हिजाब पहनने से किसी को दिक्कत नहीं हो रहे थे.
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