अगर आप प्राइवेट सेक्टर में जॉब करते हैं, तो अप्रेजल फॉर्म आपके हाथों में भी आने ही वाला होगा. आपकी भी चाहत होगी कि आपकी सैलरी बढ़े और तरक्की हो. सो बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय की भावना से कुछ बातें हर किसी को रिमाइंड करना जरूरी है.
दफ्तर में काम करने (या न करने) वालों के लिए कुछ जरूरी टिप्स दिए गए हैं. आप अपनी सुविधा के मुताबिक इनका इस्तेमाल कर सकते हैं. कुछ शर्तों के साथ हम आपकी तरक्की की आधी वारंटी लेते हैं.
पढ़ने का मन नहीं, तो ऑडियो सुन लो भैया!
नीमयुक्त टूथपेस्ट का इस्तेमाल करें बंद
अगर नीम या किसी कड़वी चीज वाले टूथपेस्ट का इस्तेमाल करते हैं, तो कम से कम फरवरी-मार्च के लिए इसका लोभ त्याग दें. जब होठों पर कड़वाहट बनी रहेगी, तो जुबां से भी कड़वी बातें निकलने का खतरा बना रहेगा. बेहतर होगा कि अगले कुछ दिनों तक मनमोहक मुस्कान पैदा करने वाला टूथपेस्ट यूज करें.
(प्रोफेशनल चेतावनी: न मुस्कुराना सेहत के लिए हानिकारक है)
हिंदीभाषी 'प्लीज' कहने से कतराएं नहीं
हिंदी मीडियम से पढ़े-लिखे लोगों में एक भयंकर बीमारी होती है. ऐसे लोग इंग्लिश मीडियम वालों की तरह बात-बेबात, बेमतलब सॉरी, थैंक्स, प्लीज जैसे शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया करते.
अगर आप भी इस सिंड्रोम के शिकार हैं, तो कम से कम 1-2 महीने के लिए ऑफिस में इन शब्दों का इस्तेमाल बढ़ाएं. क्यों, ये समझने के लिए ऑन सेइंग प्लीज कहानी गूगल कर लें. इसमें कायदे से बताया गया है कि ऐसे शब्द जीवन के पहियों के लिए ऑयल का काम करते हैं.
आपको बता दें कि ये तेल बहुत काम का है. इसे खुद्दार लोग भी लगा सकते हैं.
चलो, अब परीक्षा की तैयारी में जुट जाएं
एक बार फिर अपने विद्यार्थी जीवन में लौट जाएं. सालभर खूब मस्ती, धमाचौकड़ी, लेकिन एग्जाम के दौरान एकाध महीने जमकर पढ़ाई. एक बार एग्जाम ठीक-ठाक निकल गया, फिर वैसी ही मस्ती.
ऑफिस में कुछ लोग बेहद कामकाजी (कामुक नहीं) टाइप के होते हैं. लेकिन कुछ कर्मचारियों का फलसफा थोड़ा अलग होता है, जो आपने भी सुना होगा:
कुछ करो या न करो,
काम की फिक्र करो,
फिक्र का जिक्र करो.
इसी बात को कवि टाइप के दूसरे लोग इस तरह कहते हैं:
बने रहो पगला, काम करेगा अगला
इसका एक नया वर्जन है, जो कि नॉनवेज टाइप का है. इसलिए हम आपके लिए इसका पालक-पनीर वर्जन पेश कर रहे हैं:
करो कम, दिखाओ ज्यादा
अगर आपके उसूल भी इससे मिलते-जुलते हों, तो आपको भी सावधान हो जाने की जरूरत है. अपने परीक्षा के पुराने दिनों को याद करते हुए ऑफिस में खूब मेहनत करनी होगी. सच कहें, तो करने से ज्यादा दिखानी होगी.
बात ज्यादा परेशान होने की नहीं है. आपको सिर्फ कुछ समय के लिए अपने पुराने उसूल को ताक पर रखना होगा. अप्रेजल के बाद आप इसे ताक से उतार सकते हैं.
धनिया पत्ती की भी कद्र करना सीखें
इन दिनों वॉट्सऐप पर एक जोक चल रहा है. आप तक भी जरूर पहुंचा होगा. बड़ा ही 'सारगर्भित' है.
ऑफिस के कुछ कर्मचारी कढ़ी पत्ता की तरह होते हैं. पकने में शुरू से अंत तक इस्तेमाल किए जाते हैं, लेकिन खाने से पहले वही चुनकर निकाले जाते हैं.
ऑफिस के कुछ कर्मचारी धनिया पत्ती की तरह होते हैं. पकने के बाद मिलाए जाते हैं, लेकिन स्वाद का पूरा क्रेडिट वही ले जाते हैं.
हमारी नेक सलाह है कि धनिया पत्ती को भी आदर दें. समतामूलक समाज की कोरी कल्पना में दुबले न हों, अपनी सेहत न गंवाएं.
अगर मनचाहा न हुआ तो...
वैसे तो इस बार के अप्रेजल के लिएबेस्ट ऑफ लक... लेकिन अगर किसी वजह से आपको मनचाही चीज न मिल सके, तो बिग बी की बिगर थ्योरी याद कर लें.
मन का हो, तो अच्छा. न हो, तो और भी अच्छा.
अगर ये समझने में कोई परेशानी आ रही हो, तो गीता के श्लोक का अर्थ समझने की कोशिश करें.
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन
गीता के बड़े-बड़े मर्मज्ञों ने इस श्लोक का अर्थ कुछ इस तरह बताया है, 'कर्म पर ही तुम्हारा अधिकार है, कर्मफल पर नहीं'
लेकिन ऑफिस मामलों के कुछ एक्सपर्ट इसकी व्याख्या इस तरह करते हैं:
कर्मण्येवाधिकारस्ते- कर्म करने वालों, तुझे धिक्कार है!
मा फलेषु कदाचन- फल तो नहीं ही मिलना है, कदाचित् चना मिल जाए, तो अलग बात है.
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