सदियों पुराने अतिथि देवो भव से लेकर आज के जमाने में कहे जाने वाले इनक्रेडिबल इंडिया तक, भारतीय संस्कृति और नीति निर्धारण में पर्यटन एक केंद्र बिंदु रहा है. 27 सितंबर वर्ल्ड टूरिज्म डे है. हालांकि ये आज भी बहस का एक मुद्दा है कि क्या भारत अपने आपको पर्यटन के लिहाज से बड़ा नाम बन पाने की ओर बढ़ रहा है.
सबसे पहले आपको बताते हैं कि बीते कुछ सालों में विदेशी सैलानियों का आना और फिर फॉरेन एक्सचेंज से हो रही कमाई में इजाफा देखने को मिला है.
साल 2018 में उससे पिछले साल के मुकाबले विदेशी सैलानियों की संख्या में कमी हमारी चिंता का कारण बन सकती है, लेकिन इससे भी ज्यादा गंभीर मुद्दे हैं. साल 2016 में सरकार कि तरफ से जारी किए गए इकनॉमिक सर्वे में भारतीय पर्यटन के लिए अलग से सब-सेक्शन था.
इस सर्वे में भारत की तुलना बाकी कई देशों के साथ की गई थी. 2016 के इस सर्वे में अंतरराष्ट्रीय सैलानियों के आने के आंकड़ों का अध्ययन किया गया और भारत को 1.1 फीसदी के साथ 24वें स्थान पर रखा गया. 7.1 फीसदी के साथ फ्रांस पहले नंबर पर है. 4.8 फीसदी के साथ चीन चौथे पायदान पर है.
भारत, चीन और अमेरिका की तुलनात्म एनालिसिस भी इस सर्वे में छपा था. इसमें कई पहलुओं को उजागर भी किया गया.
सर्वे में इसके अलावा एक और डेटा जारी किया गया जिसमें बताया गया कि कैसे रूस, यूके, तुर्की, सिंगापुर और थाईलैंड से ज्यादा विश्व धरोहर होने के बावजूद भारत में कम पर्यटक आ रहे हैं.
वर्ल्ड इकनॉमिक फोरम की ओर से वर्ल्ड टूरिज्म कंप्टीटिव इंडेक्स 2019 में भी एक डेटा जारी किया जाएगा जो भारतीय पर्यटन में कुछ और ऐसी ही कमियों को दिखाएगा. जहां भारत 140 देशों में 34वें स्थान पर आता है, वहीं कई छोटे देश जैसे थाईलैंड(31वें), मलेशिया(29वें) और सिंगापुर(17वें) बेहरत रैंक पर हैं.
भारत सुरक्षा के मामल में मात खा जाता है. इसमें भारत 122वें पायदान पर है, वहीं स्वास्थ्य और हाइजीन में 105वें, इनफॉर्मेशन और कम्यूनिकेशन टेक्नोलॉजी में 105वें, पर्यावरण स्थिरता में 128वें और इंफ्रास्ट्रक्चर में 109वें पायदान पर आता है.
वहीं दामों की तुलना में भारत 13वें पायदान पर है, प्राकृतिक स्रोतों में 14वें और सांस्कृतिक स्रोतों में 13वें पायदान पर है.
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