भोपाल गैस त्रासदी (Bhopal gas tragedy) पूरी दूनिया की औधोगिक इतिहास की सबसे बड़ी घटना में से एक है. 3 दिसंबर, 1984 की आधी रात यूनियन कार्बाइड के कारखाने से रिसी जहरीली गैस ने हजारों लोगों के लिए काल बनकर आई थी. सरकारी आंकड़े करीब तीन हजार लोगों की मौत बताती है पर लोगों का दावा है कि हादसे में उस दिन करीब 16 हजार लोगों की मौत हुई थी. पांच लाख से भी ज्यादा लोग प्रभावित हुए थे और उनकी जिंदगी मौत से भी बदतर बन गई. ये घटना इतनी भयावह थी कि उसे भुलाया जाना असंभव है.
वहीं तीन दिसंबर, 1984 के यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री के हादसे से पीड़ितों की कहानी उन्हीं की जुबानी सुनाने वाला एक म्यूजियम है जिसे लोग 'रिमेंबर भोपाल म्यूजियम' (Remember Bhopal Museum) के नाम से जानते हैं. लेकिन ये म्यूजियम अब बंद होने जा रहा है.
बता दें कि फैक्ट्री से लगभग ढाई किलोमीटर की दूरी पर ये म्यूजियम स्थित है. हालांकि म्यूजियम की बाहरी दीवारों ने पूरी तरह से रंग छोड़ दिया है, दीवारों पर लिखे नारे धुंधले नजर आने लगे हैं, लेकिन इस म्यूजियम में उन पीड़ित के जीती-जागती चीजे हैं जो हमेशा याद दिलाती है उन लोगों की यादों का. लेकिन अब ये बंद हो रहा है. दरअसल, 11 महीनों से इस म्यूजियम मकान का रेंट नहीं चुकाया गया हैं. इसलिए मजबूरन इस म्यूजियम को बंद करने का निर्णय लिया गया है.
ये म्यूजियम साल 2014 से चल रहा है. 8 साल हो गए हैं अभी तक चलता आ रहा है. कोई भी विजिटर आते हैं उन्हीं की दान से ये म्यूजियम चलता आ रहा है और हमलोगों की सैलरी मिलती है.नफीसा बी केयरटेकर, रिमेंबर भोपाल म्यूजियम
रिमेंबर भोपाल म्यूजियम की केयरटेकर नफीसा बी बताती है कि, इस म्यूजियम में पांच कमरे हैं. पहले कमरा मुख्य रूप से घटना के समय का है. दूसरा कमरा, हादसे के बाद आस पास के पानी और जमीन, जो उस कचरे की वजह से प्रदूषित हुई है उसका है. वहीं तीसरा कमरा हादसे के बाद के प्रभावों यानी (हादसे के बाद के जन्म लें रहे विकलांग बच्चों) का है. चौथा कमरा बच्चों के संघर्ष का है और पांचवा कमरा पीड़ितों के तब से चले आ रहे संघर्षों (इंसाफ की जंग) के सबूतों से भरा पड़ा है.
ये म्यूजियम किन्हीं कारणों के चलते आगे नहीं चलेगा. जो बड़ी दुखःद बात है. इस म्यूजियम को बड़ी कठिन परिस्थियों में गैस पीड़ितों और गैस पीड़ित संगठनों ने शुरू किया. इसलिए आशा है मझे इस शहर और देश के लोगों से जो आगे आकर इसे बंद होने से रोकेंगे और इसके लिए फंड देंगे. ताकि फिर से गैस पीड़ित उभरेंगे और वो अपनी बात स्मारक के माध्यम से पहुंचाएंगें.रचना धींगरा, सामाजिक कार्यकर्ता
म्यूजियम की दीवारों में तस्वीरों के साथ दो टेलीफोन भी लगे हैं. ये टेलीफोन, में उन पीड़ित लोगों की कहानी हैं. इतना ही नहीं
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