30 जनवरी को डिपार्टमेंट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी ने जूनियर रिसर्च फेलो (JRF) और सीनियर रिसर्च फेलो (SRF) के लिए फेलोशिप में बढ़ोतरी की घोषणा की. जेआरएफ की फेलोशिफ 25,000 रुपये से बढ़ाकर 31,000 और एसआरएफ की फेलोशिप 28,000 से बढ़ाकर 35,000 रुपये कर दी गई.
एमएचआरडी मिनिस्टर ने इसे मोदी सरकार की तरफ से रिसर्च स्कॉलर के लिए सबसे बड़ा तोहफा बताया. लेकिन रिसर्च स्कॉलर्स की तरफ से इस पर अलग-अलग तरह के रिएक्शन आए. ज्यादातर स्कॉलर इस घोषणा से निराश ही हुए हैं. क्योंकि इससे पहले आखिरी बार अक्टूबर 2014 में फेलोशिप को रिवाइज किया गया था, जिसके बाद से ट्यूशन फी में बड़े पैमाने पर बढ़ोतरी हुई है. देश भर के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च (IISER) संस्थानों में 2014 के बाद से फीस में 276 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. वहीं आईआईटी दिल्ली में पीजी और रिसर्च कोर्सेज की फीस भी दोगुनी हो गई है.
अभी सरकार की तरफ से फेलोशिप में महज 24 फीसदी की बढ़ोतरी की गई है, जो 2006 के बाद होनेवाली सबसे कम बढ़ोतरी है. सरकारी रिपोर्टों के आंकड़ों के मुताबिक, 2006 में 60% की बढ़ोतरी हुई थी, इसके बाद 2007 में 50%, 2010 में 33% और 2014 में 56% बढ़ोतरी हुई थी, लेकिन इस बार इसमें सबसे कम बढ़ोतरी हुई है.
देश भर के स्कॉलर्स अप्रैल 2018 से फेलोशिप में 80 प्रतिशत बढ़ोतरी की मांग कर रहे थे. उन्होंने कई तरह के कैंपेन कर मिनिस्ट्री तक अपना मैसेज भी पहुंचाया. लेकिन उसका कोई फायदा नहीं हुआ. उल्टे फेलोशिप में अब तक सबसे कम बढ़ोतरी की गई है.
700 से अधिक रिसर्च स्कॉलर को 17 जनवरी को एमएचआरडी, नई दिल्ली के सामने विरोध प्रदर्शन करते हुए गिरफ्तारी का सामना भी करना पड़ा. उनके इस विरोध प्रदर्शन में आईआईटी मद्रास के स्कॉलर्स भी खुलकर सामने आए और उसी शाम अपना असंतोष जताने के लिए अपने कैंपस में एक विरोध प्रदर्शन का आयोजन किया. वे हिमालय के लॉन में इकट्ठा हुए और ऑफिस मेमोरेंडम को जलाकर उसे रिजेक्ट कर दिया. साथ ही अपनी ऑरिजिनल मांगें पूरी नहीं होने तक विरोध जारी रखने का फैसला किया है.
चार साल बाद स्कॉलरशिप को रिवाइज किया गया है. ऐसे में आईआईटी मद्रास के स्कॉलर्स का मानना है कि 24 प्रतिशत प्रतिशत बढ़ोतरी बहुत कम है. इन चार सालों के दौरान एकेडमिक फी में 42.5% और हॉस्टल फी में 32% की वृद्धि हुई है. वहीं संस्थानों के प्राइवेटाइजेशन की कोशिश की जा रही है.
पीएचडी स्कॉलर थर्ड ईयर की स्टूडेंट लक्ष्मी ने कहा कि फेलोशिप को कम करके लोगों को जबरदस्ती रिसर्च से बाहर किया जा रहा है.
“फीस के रूप में सालाना लगभग 76,000 रुपये की भारी-भरकम राशि का भुगतान करने के बाद, हमें जो फेलोशिप मिलता है, वह स्कॉलर्स के लिए एक सम्मानजनक जीवन जीने के लिए पर्याप्त नहीं है. यह कई स्टूडेंट्स खासकर महिलाओं को रिसर्च करने के बजाए अच्छे पैकेज वाली सैलरी पर जॉब करने को मजबूर करेगा. क्योंकि वे 5-6 साल की कॉलेज एजुकेशन के बाद इकोनॉमेकिली इंडिपेंडेंट होना पसंद करेंगी. प्रॉपर फैलोशिप की कमी सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े समुदायों के स्टूडेंट्स को भी रिसर्च करने से हतोत्साहित करने का काम करेगा.”
सरकार का एक तरफ नारा है, ''जय अनुसंधान''. वहीं अनुसंधान करने वालों के लिए ऐसा फैसला लिया गया. सरकार के इस फैसले से तमाम स्कॉलर्स को झटका लगा है. रिसर्च स्कॉलर्स ने वास्तविकता में 80 प्रतिशत बढ़ोतरी की मांग की थी साथ ही महंगाई को देखते हुए हर साल इसमें बढो़तरी की मांग थी. लेकिन वृद्धि हुई महज 24 फीसदी की और बाकी मांगों को ठुकरा दिया गया.
‘’फेलोशिप में वृद्धि की घोषणा केवल केंद्र सरकार की एक चुनावी स्टंट के रूप में देखा जा सकता है. इसके अलावा अब यह साफ हो गया है कि केंद्र सरकार को देश के रिसर्च स्कॉलर्स से संबंधित वास्तविक मुद्दों को हल करने में कोई दिलचस्पी नहीं है. गैर-नेट फेलोशिप के बारे में कुछ भी उल्लेख नहीं किया गया है, जिसे एक दशक से अधिक समय से संशोधित नहीं किया गया है और गैर-नेट श्रेणी के तहत साथी रिसर्च स्कॉलर्स की हालत हमारे मुकाबले और भी बदतर है.”उममेन, फोर्थ ईयर पीएचडी स्कॉलर
(लेखक आईआईटी मद्रास में रिसर्च स्कॉलर हैं. सभी माई रिपोर्ट सिटिजन जर्नलिस्टों द्वारा भेजी गई रिपोर्ट है. द क्विंट प्रकाशन से पहले सभी पक्षों के दावों / आरोपों की जांच करता है, लेकिन रिपोर्ट और इस लेख में व्यक्त किए गए विचार संबंधित सिटिजन जर्नलिस्ट के हैं, क्विंट न तो इसका समर्थन करता है, न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)
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