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कश्मीर में क्यों नहीं रहना चाहते हैं कश्मीरी पंडित?

"हमें कश्मीर से भारत के किसी भी हिस्से में भेज दें.हम कहीं भी जाने के लिए तैयार हैं. लेकिन कश्मीर में नहीं रह सकते"

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कश्मीर (Kashmir) के बडगाम जिले के चदूरा इलाके में आतंकवादियों द्वारा राहुल भट (Rahul Bhat) नाम के एक सरकारी कर्मचारी की गोली मारकर हत्या करने के बाद जम्मू और कश्मीर के विभिन्न हिस्सों में कश्मीरी पंडितों द्वारा बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए.

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द क्विंट के लिए सिटिजन जर्नलिस्ट ने स्थिति को समझने के लिए उस प्रदर्शन में शामिल श्वेता भट्ट से बात की.

12 मई को कश्मीर के चदूरा कस्बे में हमारे एक भाई राहुल भट को आतंकियों ने मार दिया. इस तरह की हत्या ने घाटी में रहने वाले कश्मीरी पंडितों में खौफ पैदा कर दिया है.

वह तहसील कार्यालय में मारा गया था, जो सुरक्षा बलों द्वारा सुरक्षित है. अगर उनके जैसा कोई सुरक्षित नहीं है तो मेरे जैसे दूसरे लोग सुरक्षित कैसे महसूस करेंगे?

90 के दशक में क्या हुआ था, यह आप बखूबी जानते हैं. 2010 में हमें पीएम ने पैकेज दिया था. वह पैकेज सिर्फ नाम का था. हमें यहां वापस लाया गया और नौकरी दी गई. लेकिन पुनर्वास पूरी तरह विफल रहा है क्योंकि हमें अभी आवास नहीं मिला है.

12 साल हो गए लेकिन अभी तक हमें आवास उपलब्ध नहीं कराया गया. 4,000-5,000 नौकरी के पद प्रदान किए गए हैं, लेकिन इनमें से कई पद अराजपत्रित हैं. कुछ पद चतुर्थ श्रेणी और कुछ कनिष्ठ सहायक हैं, जिनका वेतन 14,000 रुपये से 20,000 रुपये है. वे घर के किराए में 10,000 रुपये का भुगतान करते हैं. यह पुनर्वास कैसे है?

जब हम यहां पर पुनः अपना घर बसाने की कोशिश कर रहे हैं, तो हमें फिर से घाटी छोड़ने के लिए मजबूर किया जा रहा है. जब ये हत्याएं होंगी तो हम कैसे सुरक्षित महसूस करेंगे? मनुष्य के रूप में, हमें जीने का अधिकार है. हम यहां काम करने आए थे ताकि हम अपने परिवारों को यहां बसा सकें. लेकिन अगर हम सुरक्षित महसूस नहीं करेंगे, तो हम कैसे बसेंगे?

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हत्या के बाद हमने शाम से अपना विरोध शुरू कर दिया. यह बिल्कुल शांतिपूर्ण विरोध था. यहां लोग बिना हथियार के बैठे हैं. हम शेखपुरा में भी शांतिपूर्वक विरोध कर रहे थे. लेकिन वहां आंसू गैस के गोले दागे गए और लाठीचार्ज किया गया. वे निहत्थे प्रदर्शनकारी थे केवल अपने भाई की हत्या के लिए न्याय की मांग कर रहे थे. हम अपने लिए न्याय की मांग कर रहे हैं.

हमारी पहली मांग उस बॉन्ड को हटाने की है जिस पर हमने यहां आने पर हस्ताक्षर किए थे, जो कहता है कि हमें हर कीमत पर घाटी में रहना है. दूसरी बात यह है कि हम यहां सुरक्षित महसूस नहीं करते हैं.

हमें कश्मीर से भारत के किसी भी हिस्से में स्थानांतरित करें. हम कहीं भी जाने के लिए तैयार हैं. लेकिन हम कश्मीर में नहीं रह सकते. क्योंकि जब सुरक्षाकर्मी खुद सुरक्षित नहीं हैं और उन्हें मारा जा रहा है तो हम कैसे सुरक्षित महसूस करेंगे? इसलिए, कृपया हमें स्थानांतरित करें, या कृपया हमारे सामूहिक इस्तीफे को स्वीकार करें.

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(श्वेता भट्ट जम्मू-कश्मीर के राजस्व विभाग में अकाउंट असिस्टेंट हैं. सभी 'माई रिपोर्ट' ब्रांडेड कहानियां सिटिजन जर्नलिस्ट द्वारा द क्विंट को प्रस्तुत की जाती हैं. हालांकि द क्विंट प्रकाशन से पहले सभी पक्षों के दावों/आरोपों की जांच करता है, रिपोर्ट और ऊपर व्यक्त विचार सिटिजन जर्नलिस्ट के अपने हैं. क्विंट न तो इसका समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)

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