“संदेशे आते हैं
हमें तड़पाते हैं
तो चिट्ठी आती है
वो पूछे जाती है
के घर कब आओगे
के घर कब आओगे...
लिखो कब आओगे....
के तुम बिन ये घर सूना सूना है...”
ये गाना जितना सुनने में अच्छा है उतना ही मायूस भी करता है. आप लोगों के साहस और मेहनत को लेकर मेरे पास शब्द नहीं है बयान करने के लिए कि हमें आप पर कितना गर्व है शूरवीरों.
ये मेरा सौभाग्य है कि आप ये संदेश पढ़ सकते हैं. मुझे पता है मेरे शब्द आपकी तारीफ करने के लिए अधिक नहीं है. बस आप सबको धन्यवाद करना चाहती हूं.
शिवांगी गाजियाबाद
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