कोलकाता में इन दिनों जिस तरह के हालात बने वह काफी चौंकाने वाले हैं. केंद्र और राज्य सरकार के बीच इस तरह का सीधा टकराव यहां कभी नहीं देखने को मिला. यह भारत के फेडरल स्ट्रक्चर को चुनौती देने का काम किया है. अगर ऐसे ही हालात बने रहे तो भविष्य में देश की संघीय व्यवस्था के लिए यह सही नहीं रहेगा. किसी भी तरह से न तो ऐसी घटना किसी राज्य के लिए सही है न ही केंद्र के लिए.
सालों से इस शहर में रहने वाले लोगों के लिए ये घटना किसी अनहोनी से कम नहीं है. निश्चित रूप से बंगाल के लोगों के को शारदा स्कैम ने बुरी तरह से प्रभावित किया और यहां के लोग न्याय भी चाहते हैं. लेकिन जिस तरह से राजनीतिक रूप से चूहे-बिल्ली का खेल खेला जा रहा है, उससे यहां के लोगों को काफी निराशा हुई है. जब शुरुआत में इस स्कैम के लिए सीबीआई ने जांच शुरू की थी तो उम्मीद की एक किरण जगी थी, लेकिन अब समझ में आ रहा है कि यह महज चुनावी स्टंट है और कुछ नहीं.
बीजेपी का चुनावी स्टंट
अब यह बिल्कुल साफ है कि बीजेपी सरकार ने इस जांच को केवल बंगाल सरकार के खिलाफ राजनीतिक हथकंडा के रूप में इस्तेमाल कर रही है, वहीं ममता बनर्जी ने भी इस मामले में जो किया वह भी काफी खतरनाक है. दोनों पार्टियों के कई समर्थकों से मेरी बात हुई है. दोनों में कोई नहीं चाहते हैं कि केंद्र और राज्य के बीच का यह विवाद जारी रहे.
तमाम टीएमसी सपोर्टर जहां एकमत से मानते हैं कि बीजेपी ने ऐसा करके गलत किया है, बावजूद इसके वो ये अनऑफिसियल बंद का सपोर्ट नहीं करते. अभी तक भले ही कहीं से किसी तरह की हिंसा की कोई खबर नहीं आई है, लेकिन कौन जाने हिंसा कब और कहां से शुरू हो जाए. कई जगहों पर बंद की वजह से सड़क जाम किया जा रहा है, लेकिन लोग इस बात को लेकर डरे हुए हैं कि कहीं कोई अनहोनी न हो जाए.
बंद और धरना से चिंतिंत एक टीएमसी सपोर्टर ने कहा-
‘’मेरे बेटे का स्कूल खुला हुआ है, यहां तक कि कल उसके स्कूल में एग्जाम भी है, लेकिन मैं उसे भेजना नहीं चाहता. पता नहीं कब क्या हो जाए.’’
रोजाना दफ्तर जाने वाले आम लोग भी इसी तरह के कंफ्यूजन में हैं, मेरा एक सहयोगी सम्राट, जो टीएमसी सपोर्टर है, उसने पूछा कि ऑफिस खुला है या बंद. जब मैंने कहा कि स्ट्राइक नहीं है, ऑफिस खुला हुआ है, फिर भी वह ऑफिस जाने से हिचकिचाते नजर आया. किसी को पता नहीं है कि किस रास्ते और कैसे कहीं आना-जाना सेफ रहेगा.
लोगों का डर-आनेवाले दिनों क्या होगा?
कोलकाता में इन दिनों पत्थरबाजी की घटना देखने को मिल रही है. यहां के लिए यह बिल्कुल नया है. इसे देखते हुए मैं सेफ रास्ते के बारे में पता करके जाता हूं, जहां कम से कम हिंसा हो. हालांकि हालात उतना बुरा नहीं है, लेकिन सावधानी बरतना ही बेहतर है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले को दोनों पक्ष नैतिक या अनैतिक रूप से अपनी-अपनी जीत बता रहे हैं. लेकिन फिर भी आम लोग भविष्य को लेकर डरे हुए हैं. अगर राजीव कुमार को सीबीआई ने पूछताछ के बाद गिरफ्तार कर लिया, तो क्या होगा. एक बीजेपी कार्यकर्ता नाम नहीं जाहिर करने की शर्त पर बोला-
“टीएमसी के गुंडे हमारे लिए आने वाले हैं, लेकिन हम भी तैयार हैं. आँख के बदले आँख और हाथ के बदले हाथ होगा.”
वहीं बीजेपी के एक अन्य कार्यकर्ता ने कहा-
“वे हमारा मुकाबला नहीं कर सकते, अगर वे पुलिस लेकर आएंगे, तो हम आरएएफ लाएंगे. हम गुंडों को सही सबक सिखाने के लिए पूरी तरह तैयार हैं.”
अब समय ही बताएगा कि आनेवाले दिनों में कोलकाता किन हालातों का सामना करता है. लेकिन बंगाल के लोगों ने कम्युनिस्ट शासन के दौरान जिस तरह की राजनीतिक हिंसाएं देखी है, उन काले दिनों को फिर से नहीं देखना चाहती.
थर्ड फ्रंड लीडर के रूप में दीदी की मजबूत दावेदारी
एक तरफ सीएम ममता बनर्जी यानी बंगाल की दीदी थर्ड फ्रंड के नेता के रूप में अपनी मौजूदगी दर्ज कराने में जी-जान से जुटी हैं. वहीं दूसरी तरफ अगर शारदा स्कैम की सही से जांच होती है, तो उनके कई मिनिस्टर इसमें नप सकते हैं. अगर ऐसा होता है जो राज्य में हिंसा को कोई नहीं रोक सकता.
हालांकि, अगर CBI के पास राजीव कुमार को गिरफ्तार करने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं हुए तो यह मोदी सरकार और पश्चिम बंगाल की भविष्य की योजनाओं के लिए एक झटका होगा. साथ ही सीबीआई की साख पर भी सवाल उठेगा और यह जनता की नजरों में अपना इमेज भी गिराने का ही काम करेगी. वहीं ऐसा होने पर दीदी की स्थिति अपोजिशन लीडर के रूप में और अधिक मजबूत होगी, जिन्होंने सीबीआई से लोहा लेने की हिम्मत की.
दीदी अगर ईमानदार हैं, तो ऐसा हंगामा क्यों?
सही कहें तो, कोई भी धरना, बंद और उसके बाद होने वाली असुविधा के फेवर में नहीं है. वह भी एक ऐसे सिविल सर्वेंट के लिए जिसका कुख्यात शारदा घोटाले में रोल हो सकता है. दीदी के प्रति लोगों के प्यार में भी कमी आएगी. लोगों ने सवाल उठाना शुरू भी कर दिया है-
‘’आखिर वह क्या छुपाना चाहती हैं. अगर सही में ईमानदार हैं, तो ऐसा हंगामा क्यों मचा रही हैं?”
नॉन-पॉलिटिकल लोग ये सवाल बार-बार उठा रहे हैं. पीएम मोदी और दीदी दोनों से बंगाल के लोग नाराज हैं. जो भी उस गुस्से को काबू में कर पाएगा, वही जीतेगा. अभी तक ऐसा लग रहा है कि टीएमसी के मुकाबले बीजेपी थोड़ा आगे है, लेकिन अगले तीन महीनों में बहुत कुछ बदल सकता है.
(लेखक कोलकाता के रहने वाले हैं, ब्लॉग और फिल्म रिव्यू लिखने के शौकीन हैं. सभी माई रिपोर्ट सिटिजन जर्नलिस्टों द्वारा भेजी गई रिपोर्ट है. द क्विंट प्रकाशन से पहले सभी पक्षों के दावों / आरोपों की जांच करता है, लेकिन रिपोर्ट और इस लेख में व्यक्त किए गए विचार संबंधित सिटिजन जर्नलिस्ट के हैं, क्विंट न तो इसका समर्थन करता है, न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)
यह भी पढ़ें: फेलोशिप में बढ़ोतरी से क्यों नाराज IIT मद्रास के रिसर्च स्कॉलर्स?
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)