विकास दुबे के घर को तहस नहस करना पुलिस की बड़ी गलती साबित हो सकती है. हो सकता है कि विकास के बाकी गुर्गों को सजा दिलाने में पुलिस को इसी वजह से दिक्कत आए. गैंगस्टर विकास दुबे तो ढेर किया जा चुका है. लेकिन कानपुर एनकाउंटर केस में कानून तो अपना काम करेगा ही, कोर्ट में केस तो चलेगा ही. कानपुर कांड में 8 पुलिसवालों की हत्या कर मौका-ए-वारदात से विकास दुबे और उसके सहयोगी फरार हो गए थे.
'पुलिसबल', शासन-प्रशासन में इस कांड के बाद काफी गुस्सा था, ऐसे में वारदात के कुछ ही घंटों के बाद पुलिस ने विकास दुबे के किलेनुमा घर को पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया. रिपोर्ट्स के मुताबिक, उसी जेसीबी से विकास का घर गिराया गया, जिससे उसने पुलिस बल रास्ता रोका था. इस गैंगस्टर के घर में खड़ी गाडि़यों को भी तोड़ दिया गया. अब ऐसे में कानून के एक्सपर्ट सवाल उठा रहे हैं कि पुलिस ने जल्दीबाजी में कदम तो उठा लिया, लेकिन इस कांड के लिए सबूत और चार्जशीट कैसे पेश किए जाएंगे? नक्शा नजरी कैसे बनेगी?
‘पुलिस ने की है भारी तकनीकी भूल’
क्विंट से बातचीत में कानपुर बार एसोसिएशन के पूर्व उपाध्यक्ष एडवोकेट विनय मिश्रा इसके पीछे के कानूनी पहलुओं को समझाते हैं. मिश्रा का कहना है कि बिना किसी नियम-कानून के मकान को गिरा देना पुलिस की बड़ी तकनीकी भूल है. क्योंकि कोर्ट में चार्जशीट पेश करते हुए और केस डायरी में पुलिस नक्शा नजरी लगाती है, इसमें इस बात का ब्योरा होता कि मौका-ए-वारदात पर किस तरफ से पुलिस पार्टी आई, किस तरफ से अपराधी आए. किस प्वाइंट से पुलिस दल पर फायरिंग हुई, पुलिसवालों का शव कहां-कहां मिला. लेकिन पुलिस बल ने जल्दीबाजी में जो किया, मकान ध्वस्त कर दिया अब वो नक्शा नजरी कैसे पेश कर पाएगी.
अगर गैंगस्टर विकास दुबे का मकान जब्त करने की प्रकिया पुलिस को करनी ही थी तो कई और कानूनी प्रावधान मौजूद थे जिनकी मदद ली जा सकती थी.एडवोकेट विनय मिश्रा, पूर्व उपाध्यक्ष, कानपुर बार एसोसिएशन
एडवोकेट विनय कहते हैं कि जाने-अनजाने में पुलिसवालों से ये जो गलती हुई है, वो केस की सुनवाई के दौरान कमजोर कड़ी साबित हो सकती है.
'गलती तो हुई है लेकिन पुलिस संभाल लेगी'
वहीं कानपुर बार एसोसिएशन के उपाध्यक्ष और क्रिमिनल लॉयर उपेंद्र पाल कहते हैं कि गैंगस्टर विकास दुबे इतनी बड़ी वारदात को अंजाम दे ही नहीं पाता, अगर साल 2003 में सही गवाही दी गई होती. पाल कहते हैं,
जब साल 2003 में थाने में उसने राज्यमंत्री का कत्ल किया, उस वक्त पुलिसवाले ही गवाह थे, गवाही अगर दे दी गई होती तो इतना बड़ा कांड नहीं होता. उसी वक्त उसे सजा मिल गई होती, आजीवन कारावास हो जाता.
उपेंद्र पाल का कहना है कि कोर्ट में इस केस को रखने में दिक्कत तो आएगी ही, क्योंकि जब नक्शा नजरी ही नहीं बन सकेगी, तो कहां से कुछ साबित होगा.
इन्होंने जो मकान तोड़ दिया है, उससे नहीं हो पाएगा. नक्शा नजरी नहीं बन सकेगी, साक्ष्य ही मिट गए, अगर वो (विकास दुबे )जिंदा होता तो इस कारण बरी भी हो जाता. कितने आदमी कहां खड़े थे, कैसे ये वारदात अंजाम दिए गए, मकान ध्वस्त होने के साथ ही सबूत भी ध्वस्त हो गए हैं.उपेंद्र पाल, एडवोकेट
कुल मिलाकर दोनों ही वकीलों का कहना है कि विकास दुबे के मकान को ध्वस्त करना जल्दीबाजी और गुस्से में लिया गया फैसला था. इसका नुकसान खुद पुलिस को कोर्ट में उठाना पड़ सकता है.
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