जब से उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) गैरकानूनी धर्म परिवर्तन निषेध अधिनियम, 2021 पारित हुआ है, राज्य में ईसाई धर्म में धर्मांतरण के खिलाफ दर्ज होने वाली एफआईआर की संख्या बढ़ गई है.
लेखक ने उत्तर प्रदेश के 40 जिलों में विवादास्पद धर्म परिवर्तन विरोधी कानून के तहत दर्ज 170 एफआईआर का जायजा लिया. उसने पाया कि 2020 से कम से कम 700 लोगों पर गैरकानूनी धर्म परिवर्तन का आरोप लगाया गया है. वैसे कानून के तहत आरोपियों की कुल संख्या की जानकारी नहीं है.
खास तौर से धर्म परिवर्तन के चार कथित मामलों में, धर्म परिवर्तन विरोधी कानून नहीं लगाया गया था - दो मामलों में गैंगस्टर अधिनियम का इस्तेमाल किया गया था, और बाकी दो मामलों में आपराधिक रूप से धमकाने और सार्वजनिक व्यवस्था में रुकावट पैदा करने जैसी धाराओं का इस्तेमाल किया गया. इसके अलावा, इन FIR में 200 से अधिक आरोपी अनाम या अज्ञात लोग थे.
क्विंट हिंदी के अनुसार, आजमगढ़ में सबसे ज्यादा, 20 एफआईआर दर्ज की गई हैं. इसके बाद सीतापुर (14), फतेहपुर (13), जौनपुर (12), अंबेडकर नगर (8) और गोरखपुर (8) आते हैं.
हमारे द्वारा प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, 2020 में एक मामला, 2021 में 12, 2022 में 59 और 2023 में 99 मामले दर्ज किए गए.
यूनाइटेड क्रिश्चियन फोरम (यूसीएफ) के राष्ट्रीय समन्वयक एसी माइकल का कहना है कि हमारा संविधान किसी भी धर्म को मानने की इजाजत देता है, इसलिए धर्म परिवर्तन विरोधी कानून नागरिकों के संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन करता है. वह दलील देते हैं कि इसके तहत "बाइबिल बांटने जैसे मामूली आधारों पर भी गिरफ्तारी होती है".
वह सवाल करते हैं कि जब रामकृष्ण मिशन जैसे ग्लोबल हिंदू सेंटर्स लोगों को गीता बांटते हैं, तब क्या उन पर धर्म परिवर्तन का आरोप लगाया जाता है. वह यह भी कहते हैं कि "अब तक बहुत कम सजाओं में असल में धर्म परिवर्तन साबित हुआ है."
यूसीएफ ने जो डेटा जमा किए हैं, उनके मुताबिक 2020 और 2023 के बीच उत्तर प्रदेश में ईसाई धर्म में गैरकानूनी धर्म परिवर्तन के आरोप में 184 एफआईआर दर्ज की गई हैं. दिसंबर 2020 से 27 नवंबर, 2023 तक 398 लोग जेल गए हैं, जिनमें से 318 पुरुष और 80 महिलाएं शामिल थीं. ब्यौरा यह है- 2020 में 2 मामले, 2021 से 14 मामले, 2022 से 59 मामले और 2023 में 109 मामले.
माइकल कहते हैं कि ऐसे मामलों में एफआईआर हासिल करना अक्सर मुश्किल होता है, क्योंकि पुलिस अक्सर मामले का ब्यौरा देने से इनकार कर देती है. वह कहते हैं कि, ''वे सूचना हासिल करने के लिए पीड़ितों पर भरोसा करते हैं, क्योंकि 'कई मामले दर्ज ही नहीं हो पाते.''
उत्तर प्रदेश का धर्म परिवर्तन विरोधी कानून
उत्तर प्रदेश गैरकानूनी धर्म परिवर्तन निषेध अधिनियम, 2021 को नवंबर 2020 में राज्य सरकार ने पारित किया गया था और महीने के आखिर में उसे राज्यपाल ने मंजूर किया था.
कानून का घोषित इरादा "धर्म परिवर्तनों को रेगुलेट करना है. यह गलत बयानी, बलपूर्वक, प्रभावित करके, जबरदस्ती, प्रलोभन से, कपटपूर्ण साधनों के जरिए या विवाह करके गैरकानूनी रूप से धर्म परिवर्तन पर रोक लगाता है." कानून 29 में से आठ राज्यों में लागू हैं: अरुणाचल प्रदेश, ओडिशा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, झारखंड और उत्तराखंड.
इस कानून के तहत अवैध धर्म परिवर्तन को एक संज्ञेय (संज्ञेय मामलों में पुलिस बिना किसी आदेश के जांच कर सकती है) और गैर-जमानती अपराध माना जाता है, जिसमें दोषी पाए जाने पर 10 साल तक की कैद की सजा हो सकती है.
170 FIR से क्या पता चला?
170 एफआईआर की जांच करने पर पता चलता है कि उत्तर प्रदेश में धर्म परिवर्तन विरोधी कानून के तहत लगभग 700 व्यक्तियों को आरोपी बनाया गया है. सबसे ज्यादा, लगभग 200 अभियुक्तों पर फतेहपुर जिले में आरोप लगाए गए हैं. दूसरे स्थान जौनपुर जिले का है, जहां 90 लोगों पर आरोप लगे हैं. कुछ मामलों में, एक ही व्यक्ति पर अलग-अलग FIR में कई बार आरोप लगाए गए हैं.
1 जनवरी 2023 को उत्तर प्रदेश के धर्म परिवर्तन विरोधी कानून की धारा 3 और 5(1) के तहत 47 लोगों पर आरोप लगाते हुए फतेहपुर जिले के केथवाली पुलिस स्टेशन में एक एफआईआर दर्ज की गई.
आईपीसी, 1860 के तहत अतिरिक्त आरोप - धारा 420 (धोखाधड़ी), 467 (जालसाजी), 468 (दस्तावेजों की जालसाजी), 506 (आपराधिक रूप से धमकाना), और 120बी (आपराधिक साजिश) भी लगाए गए थे.
इसी तरह उसी साल 23 और 24 जनवरी को उसी थाने में दर्ज की गई दो अन्य एफआईआर में 47 व्यक्तियों पर समान धाराओं के तहत आरोप लगाए गए, जिनमें से कुछ नाम तीनों एफआईआर में दोहराए गए थे. इनमें से हरेक एफआईआर में लगभग 20 लोग अज्ञात थे.
शिकायतों में ईसाइयों पर कथित तौर पर यह आरोप लगाया गया कि उनका "संगठन जीसस का भक्त बनने और ईसाई धर्म अपनाने के लिए लोगों को तोहफा, कैश देने, नौकरियां लगवाने, बच्चों को शिक्षा देने का लालच देता है." इसके लिए विदेशों से भी पैसा मिलने का आरोप लगाया गया. ये तीन एफआईआर सीधे पीड़ितों की बजाय, तीसरे पक्ष की तरफ से, फतेहपुर में ब्रॉडवेल क्रिश्चियन अस्पताल से जुड़े लोगों के खिलाफ दर्ज की गईं.
क्विंट हिंदी ने पहले भी जांच की थी कि धर्म परिवर्तन विरोधी कितने मामले असल में गैरकानूनी हैं, क्योंकि वे तीसरे पक्ष की शिकायतकर्ताओं पर आधारित हैं.
इससे पहले अक्टूबर 2023 में आर्टिकल 14 रिपोर्ट में उत्तर प्रदेश की 101 एफआईआर का विश्लेषण करते हुए पाया गया कि ज्यादातर मामलों में कानूनी आधार के बिना जबरन धर्म परिवर्तन के गलत आरोप लगाए गए थे.
आरोपियों में से एक ईसाई पादरी भी शामिल हैं. उनके अनुसार, "भारत के विभिन्न हिस्सों जैसे झारखंड, हरियाणा, तमिलनाडु, केरल और उत्तराखंड के लगभग 68 परिवार, जो अस्पताल के कर्मचारियों या नर्सों के रूप में काम करते थे, इसका शिकार हुए." उनके जैसे कई लोग कई साल से उत्तर प्रदेश में रह रहे हैं.
"मैं 25 साल पहले केरल से यहां आया था. मेरे आधार कार्ड पर उत्तर प्रदेश का पता है. मैं यहां गरीबों की सेवा करने के मिशन पर आया था, और हमारा अस्पताल अक्सर स्थानीय लोगों से कम पैसे लेता है, लेकिन बदले में हमें परेशान किया गया."पादरी
यह अस्पताल 109 साल पुराना है. इसकी वेबसाइट कहती है कि अस्पताल गरीबों और जरूरतमंदों की सेवा करता है. लेकिन कर्मचारियों का कहना है कि अब यहां कर्मचारियों की कमी है. चूंकि डॉक्टरों को गिरफ्तार कर लिया गया है और दूसरे लोगों ने डर की वजह से यहां आना बंद कर दिया है. इन मामलों में करीब 29 लोगों को 2-8 महीने की जेल हुई थी.
इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक वकील का कहना है कि धर्म परिवर्तन के आरोप बड़े पैमाने पर अप्रैल 2022 से लगने शुरू हुए, जब पुलिस और वीएचपी नेता फतेहपुर चर्च में इकट्ठा हुए, गेट बंद कर दिए और कई लोगों पर धर्म परिवर्तन का आरोप लगाए गए. यह वकील अपना नाम नहीं छपवाना चाहतीं.
उन्होंने बताया, "इसके बाद 2023 की शुरुआत में ऐसे मामलों में इजाफा हुआ, जिनमें पुख्ता सबूत नहीं थे. जैसे ब्रॉडवेल वाली घटना, जिसमें 60 से अधिक परिवारों को आरोपी बनाया गया था."
"मैं खुद कई एफआईआर देखी हैं. उनमें धर्म परिवर्तन विरोधी कानून के तहत आरोप तो लगाए ही गए थे, साथ ही पुलिसवालों और हिंदुत्व समूहों ने उनके साथ मार-पिटाई भी की थी."वकील, इलाहाबाद हाईकोर्ट
वह कहती हैं, "2018 से मैं उत्तर प्रदेश में ईसाई समुदायों के साथ काम कर रही हूं और हमने गाजीपुर, जौनपुर और फतेहपुर जैसी जगहों पर प्रेयर परमिशंस के लिए पीआईएल दायर की हैं. 2022 के बाद धर्म परिवर्तन विरोधी कानून के लागू होने की वजह से धर्म परिवर्तन के मामलों में काफी बढ़ोतरी हुई है."
कुछ मामलों में गैंगस्टर कानून का इस्तेमाल
उत्तर प्रदेश में ज्यादातर मामलों में आरोपियों के खिलाफ धर्म परिवर्तन विरोधी कानून की धारा 3 और 5(1) लागू की गईं. हालांकि, धर्म परिवर्तन का आरोप लगाने के बावजूद दो एफआईआर में सिर्फ आपराधिक रूप से धमकाने (506), सार्वजनिक व्यवस्था में रुकावट पैदा करने (504), और जानबूझकर चोट पहुंचाने (323) जैसी धाराएं लगाई गईं.
ऐसी एक एफआईआर दिसंबर 2020 में दर्ज की गई थी. दूसरी अगस्त 2023 में. इलाहाबाद हाईकोर्ट के वकील मुनीश चंद्र के अनुसार, धर्म परिवर्तन विरोधी कानून लागू होने से पहले आईपीसी की धाराओं के तहत आरोप लगाए जाते थे. निचली अदालतों से आरोपियों को जमानत मिल जाती थी और कुछ ही महीनों में मामले खत्म हो जाते थे. लेकिन नया कानून बनने के बाद हालात बदल गए.
"हमने पाया कि गैंगस्टर अधिनियम 1986, धारा 3(1) के तहत दो मामले दर्ज किए गए थे, जिनमें 2 से 10 साल की सजा थी. 10 सितंबर, 2023 को मालीपुर में एक एफआईआर में आरोप लगाया गया कि आरोपी "लोगों को धर्म परिवर्तन के लिए लालच दे रहे थे"- अधिनियम के तहत यह एक जघन्य अपराध है. इसी तरह 21 अक्टूबर को झांसी में एफआईआर में प्रतिवादियों पर "ईसाई धर्म में धर्म परिवर्तन का लालच देने" का आरोप लगाया गया. इसमें धर्म संबंधी रीडिंग मैटीरियल को जब्त करने की बात कही गई थी."मुनीश चंद्र, वकील, इलाहाबाद हाईकोर्ट
झांसी मामले के वकील चंद्र ने कहा कि आरोपियों में एक एनजीओ वर्कर और कॉलेज की एक लड़की शामिल हैं, जिनका कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है. फिर भी उन्हें गैंगस्टर करार दिया गया.
"यह शिकायत एक पुलिसवाले ने दर्ज कराई थी. लेकिन अगर उनके खिलाफ पहले कोई मामला दर्ज नहीं तो वे लोग गैंगस्टर कैसे हो सकते हैं."मुनीश चंद्र, वकील, इलाहाबाद हाईकोर्ट
वह बताते हैं कि भले ही उन्होंने एफआईआर रद्द करवा दी, लेकिन जो परेशानी झेलना पड़ी, उसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.
झांसी के प्रेम नगर पुलिस स्टेशन के एसएचओ शिव कुमार सिंह का कहना है कि, ''मुझे हाल ही में यहां नियुक्त किया गया है और मुझे इस मामले के बारे में कोई जानकारी नहीं है.''
इसके बाद हमने झांसी के एसपी राजेश एस से पूछा कि कथित धर्म परिवर्तन के मामले में धर्म परिवर्तन विरोधी कानून की बजाय गैंगस्टर अधिनियम क्यों लगाया गया, तो उन्होंने जवाब दिया, "आप कानून देखें. मामले अदालत में विचाराधीन हैं, और हम टिप्पणी नहीं कर सकते."
FIR में 200 से ज्यादा आरोपियों के नाम नहीं
लेखक ने 170 एफआईआर की जांच की तो पाया कि उनमें 200 से ज्यादा आरोपियों का नाम नहीं थे या वे लोग अज्ञात थे. ज्ञात आरोपियों की संख्या वैसे भी काफी अधिक है और उस पर, अज्ञात लोगों के जुड़ने से आरोपियों की संख्या और भी ज्यादा हो जाती है.
एक आरोपी ऐसा भी है, जिसका नाम एफआईआर में नहीं था. वह एफआईआर जो 14 अप्रैल, 2022 को धर्म परिवर्तन विरोधी कानून की धारा 3 और 5(1) के तहत दर्ज की गई थी.
वह बताता है कि, "मैं उस जगह पर नहीं था, जहां कथित तौर पर धर्म परिवर्तन कराया जा रहा था. जब मैंने पुलिस से पूछा कि वे लोग उन लोगों को किस आधार पर आरोपी बना रहे हैं, जिन्हें मैं जानता हूं, तो पुलिस ने मेरा नाम भी एफआईआर में जोड़ दिया."
वह कहते हैं कि, "अक्सर जब किसी व्यक्ति पर आरोप लगाया जाता है, तो पुलिस उसकी आईडी की कॉपी ले लेती है. इसका इस्तेमाल दूसरे मामलों में उनका नाम जोड़ने के लिए किया जाता है."
ऐसे ही एक मामले में कुशीनगर जिले के एक अन्य आरोपी ने कहा, "हम गरीब हैं. मामले के बाद पुलिस कई बार हमारे पास आई कि घूस लेकर मामला रफा-दफा कर देगी. गरीब होने की वजह से हमारे पास क्या चारा है? हम इन कानूनों के बारे में कुछ नहीं जानते."
इससे हालात और बदतर हो जाते हैं. पुलिस अक्सर मामलों से नाम हटाने के लिए लोगों से घूस लेती है. डर के मारे लोग घूस दे दिया करते हैं. सीतापुर के एक मामले में एफआईआर में 500 अज्ञात आरोपी थे. हम वैरिफाई नहीं कर सके, क्योंकि हमें वह एफआईआर नहीं मिली.मुनीश चंद्र, वकील, इलाहाबाद हाईकोर्ट
ईसाई नेताओं का कहना है कि अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने के लिए कानून से खिलवाड़
ईसाई नेताओं ने चिंता जताई है कि अल्पसंख्यकों को परेशान करने और संविधान में प्रदत्त धार्मिक स्वतंत्रता के हक का उल्लंघन करने के लिए धर्म परिवर्तन विरोधी कानून का दुरुपयोग किया जा रहा है.
अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर अमेरिकी आयोग के मार्च 2023 के अपडेट में 12 भारतीय राज्यों में ऐसे कानूनों की समीक्षा की गई थी. उसने सुझाव दिया था कि इन कानूनों के प्रावधान अस्पष्ट हैं और नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतरराष्ट्रीय अनुबंधों (ICCPR) जैसी मानवाधिकार संधियों का उल्लंघन करते हैं.
उत्तर प्रदेश के कानून का हवाला देते हुए आयोग ने कहा कि इस कानून की भाषा इतनी विशाल है कि स्वेच्छा से धर्म परिवर्तन भी इसके दायरे में आ जाता है. जैसा कि हरियाणा के कानून में है, कुछ प्रावधान खास तौर से तथाकथित "लव जिहाद" को रोकने पर केंद्रित हैं (इस शब्द का इस्तेमाल षड्यंत्र के तहत अंतर्धामिक शादी करने के प्रयास को लेकर किया जाता है)
एसी माइकल का कहना है, "मैंने मुख्यमंत्री सहित बड़े अधिकारियों के आदेश देखे हैं, जिनमें पुलिस पर मामले दर्ज करने का दबाव डाला जाता है. यह एकदम राजनैतिक है, आस्था से इसका कोई ताल्लुक नहीं है."
ईसाइयों का आरोप है कि कानून पारित होने के बाद से हिंदुत्व कट्टरपंथियों के हमले बढ़ गए हैं. यूसीएफ की एक रिपोर्ट में 2023 में 23 राज्यों में ईसाइयों के साथ हिंसा के मामले दर्ज हैं. इनमें मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश में 155 मामले और छत्तीसगढ़ में 84 मामले शामिल हैं.
ज्यादातर मामले एफआईआर स्तर तक भी नहीं पहुंच पाते, क्योंकि पीड़ितों को धमकी दी जाती है कि वे चुप रहें.'एसी माइकल, राष्ट्रीय समन्वयक, यूनाइटेड क्रिश्चियन फोरम
सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी, एसआर दारापुरी के अनुसार, "धर्म परिवर्तन विरोधी कानून मुख्य रूप से धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ है. यह किसी व्यक्ति के अपने धर्म का पालन करने के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है. यह केवल ईसाइयों पर ही नहीं, बल्कि धर्म परिवर्तन के बहाने अल्पसंख्यकों पर हमला है. ईसाइयों के अलावा मुस्लिम और बौद्ध भी इसका शिकार हो रहे हैं.”
जब उनसे पूछा गया कि ईसाई समूह किन आधारों को कथित रूप से कमजोर बताते हैं, तो उन्होंने कहा:
"अगर धर्म से जुड़े टेक्स्ट का होना या उन्हें बांटना, धर्म परिवर्तन का आधार माना जाता है तो यह सिर्फ अल्पसंख्यकों के लिए क्यों है? दरअसल इनका इस्तेमाल करके लोगों को फंसाया जा रहा है."एसआर दारापुरी, रिटायर्ड आईपीएस
गैंगस्टर कानून के इस्तेमाल पर उन्होंने कहा, "यह सरासर कानून का दुरुपयोग है क्योंकि गैंगस्टर अधिनियम में संगठित अपराध करने वाले गिरोह शामिल होते हैं. धर्म परिवर्तन उस कानून के तहत नहीं आता है."
लेखक ने उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक प्रशांत कुमार को ईमेल किया है. हमारे सवालों में कई मुद्दे शामिल हैं, जैसे धर्म परिवर्तन विरोधी कानून और इस कानून के साथ-साथ गैंगस्टर कानून के तहत आरोपों के मामलों में वृद्धि, एफआईआर में अज्ञात आरोपियों की मौजूदगी और आरोपों के लिए कमजोर आधार- मिसाल के तौर पर बाइबिल जैसी धार्मिक सामग्री का किसी के पास होना.
उनका उत्तर मिलने पर हम इस आर्टिकल को अपडेट कर देंगे.
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