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बंद क्यों नहीं हुआ CBSE छात्रों को धोखा देने वाला मॉडरेशन सिस्टम? 

छात्रों के साथ धोखाधड़ी करने वाला सीबीएसई मार्किंग का मॉडरेशन सिस्टम जारी है

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दो साल पहले शिक्षा मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने ऐलान किया था कि वह सीबीएसई की 12वीं कक्षा के छात्र-छात्राओं के मार्क्स में छेड़छाड़ करने वाला मॉडरेशन सिस्टम खत्म कर देंगे. लेकिन मंत्री जी के वादे और अदालत की ओर से इसे बंद करने के फैसले के बावजूद 2019 के रिजल्ट में भी मॉडरेशन पॉलिसी अपनाई गई.

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दो साल पहले मॉडरेशन सिस्टम हटाने का वादा किया गया था

24 अप्रैल 2017 को सीबीएसई और देश के 31 दूसरे बोर्ड ने ये तय किया था कि एग्जाम में छात्रों को नंबर बढ़ाकर (मॉडरेशन पॉलिसी) नहीं दिए जाएंगे. इस पॉलिसी को 2017 में ही बंद कर दिए जाने का फैसला किया गया था लेकिन एक याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने साल 2017 के लिए मॉडरेशन पॉलिसी को जारी रखने का निर्देश दिया था. 2018 से इसे बिलकुल हटा देने की बात थी.

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द क्विंट की पड़ताल से पता चला है कि कम मार्क्स लाने वाले छात्रों को भी ज्यादा मार्क्स देने की मॉडरेशन पॉलिसी खत्म नहीं हुई है. यह छात्र-छात्राओं के साथ साफ तौर पर चीटिंग का मामला है. 2017 में खुद केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने बोर्ड के इस तरीके के मार्किंग सिस्टम की आलोचना की थी, उन्होंने ये भी कहा था कि इसे खत्म करने की जरूरत है. लेकिन यह खत्म नहीं हुई.

छात्रों के साथ धोखाधड़ी करने वाला सीबीएसई मार्किंग का मॉडरेशन सिस्टम जारी है
शिक्षा मंत्री प्रकाश जावड़ेकर के वादे के बावजूद मॉडरेशन सिस्टम खत्म नहीं हुआ 
फोटो altered by the quint 
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मॉडरेशन सिस्टम है क्या?

मॉडरेशन सिस्टम के तहत परीक्षा में पाए गए छात्रों के नंबर को बढ़ाकर एक निश्चित अंक तक किया जाता है. उदाहरण के तौर पर अगर किसी छात्र के 91, 92 या 93 नंबर हैं तो उसे मॉडरेट करके 95 कर दिया जाता था. हालांकि 95 नंबर हासिल करने वाले छात्र के अंकों में कोई बदलाव नहीं होता था. मतलब साफ है कि अपनी मेहनत से अगर कोई छात्र 95 नंबर लाता है तो दूसरा छात्र जो उससे कम नंबर लाया है वो भी उसके बराबर ही हो जाता है. इसका असर कॉलेज एडमिशन पर दिखता था जहां 1-1 नंबर के लिए मारामारी मची रहती है.

छात्रों के परिणाम में इस तरह से मॉडरेशन किया गया कि ज्यादा से ज्यादा छात्रों को 95 अंक मिले हैं. वास्तव में इनमें से कइयों ने 94, 93, 92, 91 हासिल किए हैं, लेकिन उन्हें मॉडरेट करके इसे 95 कर दिया गया. ऐसे में ये बिलकुल सही नहीं है क्योंकि इससे छात्रों में अंकों के आधार पर भेदभाव हो जाता है.
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आखिर छात्रों को कैसे होता है नुकसान?

अगर मान लें कि दो छात्र A और B हैं. उनके दो सब्जेक्ट में पाए गए नंबर के आधार पर ही कॉलेज में प्रवेश मिलेगा. सब्जेक्ट 1 में अगर A 95 अंक हासिल करता है और B 85 अंक तो मॉडरेशन के बाद B के अंक 95 कर दिए जाते हैं. वहीं अगर सब्जेक्ट 2 में A, 95 अंक हासिल करता है और B, 96 अंक, तो एडमिशन के दौरान वास्तव में B, A से कुल 9 अंकों से पीछे हैं लेकिन वो मॉडरेशन के बाद 1 अंक आगे हो जाता है और B को कॉलेज की सीट मिल जाएगी. खामियाजा इतना बड़ा है.

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