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जानिए,क्या है आरे के जंगलों का विवाद जिस पर मचा है मुंबई में बवाल?

चिपको आंदोलन की तर्ज पर आरे के पेड़ों को बचाने की मुहिम

Updated
भारत
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  • बॉम्बे हाई कोर्ट का आरे कॉलोनी को ‘जंगल’ मानने से इनकार
  • मेट्रो कार शेड के लिए पेड़ों की कटाई को हरी झंडी
  • 2600 से ज्यादा हरे-भरे पेड़ काटे जा रहे
  • आम लोगों से लेकर बॉलीवुड सितारे तक कर रहे विरोध
  • शिवसेना नेता आदित्य ठाकरे भी विरोध में उतरे
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क्या है मामला ?

BMC की ट्री अथॉरिटी ने 29 अगस्त, 2019 को मुंबई की आरे कॉलोनी में मेट्रो 3 प्रोजेक्ट के लिए कार शेड बनाने की योजना को मंजूरी दी थी. इस शेड के लिए करीब 2600 पेड़ काटे जाने थे. तभी से इस प्रोजेक्ट का विरोध हो रहा है. आम लोगों से लेकर बॉलीवुड सितारे तक इस योजना का विरोध कर रहे हैं.

4 अक्टूबर को तमाम लोगों की उम्मीदों को झटका देते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने आरे कॉलोनी को ‘जंगल’ घोषित करने की सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया.

कांग्रेस से चुनाव लड़ चुकीं एक्टर उर्मिला मातोंडकर ने 4 अक्टूबर की रात शुरू हुई पेड़ों की कटाई पर गहरा अफसोस जताया.

इससे पहले एक्टर मनोज वाजपेयी ने इसे ‘विकास’ के नाम पर हरियाली को बर्बाद करने की कोशिश बताया था.

वीडियो: आरे में पेड़ों की कटाई के खिलाफ प्रदर्शन

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कैसे हुई शुरुआत?

जून, 2014 में वर्सोवा से घाटकोपर तक मुंबई मेट्रो प्रोजेक्ट का पहला फेज जनता के लिए खुला था. उसके एक्टेंशन के लिए पार्किंग शेड की जरूरत थी. मेट्रो परियोजना से जुड़ी कंपनी मुंबई मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन लमिटेड (MMRCL) ने फिल्म सिटी गोरेगांव वाले इलाके की आरे कॉलोनी को इसके लिए चुना. इसे ही ‘आरे के जंगल’ भी कहते हैं.

शेड बनाने के लिए खुला मैदान चाहिए था जिसका मतलब था आरे के बरसों पुराने पेड़ों की कटाई. विरोध को देखते हुए राज्य सरकार ने मेट्रो कंपनी से कोई और लोकेशन देखने को भी कहा लेकिन उस इलाके में और कोई खाली जगह नहीं थी.

चिपको आंदोलन की तर्ज पर आरे के पेड़ों को बचाने की मुहिम
आरे इलाके में इसी मेट्रो कार शेड के लिए पेड़ों की कटाई हो रही है.
(फोटो: PTI)

एनजीटी से हाथ लगी निराशा

पर्यावरण संरक्षण संगठन ‘वनशक्ति’ और ‘आरे बचाओ ग्रुप’ ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की पुणे बेंच में याचिका आरे को ‘जंगल’ घोषित करने की याचिका दर्ज की. उनकी दलील थी कि संजय गांधी नेशनल पार्क आरे कॉलोनी में ही आता है और वहां के पेड़-पौधे भी वही हैं जो आरे के जंगलों के. दिसंबर 2016 में एनजीटी ने निर्माण ना कराने का आदेश दिया.

लेकिन वन विभाग ने आरे कॉलोनी इलाके को जंगल मानने से ही इनकार कर दिया. इसके बाद सितंबर 2018 में एनजीटी ने हाथ खींच लिए और मामले में किसी भी दखलंदाजी से इनकार कर दिया. एनजीटी ने ‘वनशक्ति’ को कोर्ट में गुहार लगाने को कहा.

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हाईकोर्ट पहुंचा मामला

एनजीटी से निराशा हाथ लगने के बाद पर्यावरण एक्टिविस्ट जोरू भटेना ने दो सितंबर को बॉम्बे हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की. याचिका में कहा गया था कि

यह इंसान बनाम इंसान का मामला नहीं है. यह मानवता के खिलाफ पर्यावरण और पेड़ों का मामला है.

लेकिन हाई कोर्ट ने 4 अक्टूबर को फैसला सुनाते हुए पेड़ों की कटाई पर रोक से इनकार कर दिया.

पंडित नेहरू ने रखी थी कॉलोनी की नींव

आजादी के दो साल बाद यानी साल 1949 में देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने आरे कॉलोनी की नींव रखी थी ताकि मुबंई शहर के लिए डेरी और दुग्ध उत्पादों का संचालन वहां से हो सके.

चिपको आंदोलन की तर्ज पर आरे के पेड़ों को बचाने की मुहिम
मार्च 1951 में देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू आरे कॉलोनी में पेड़ लगाते हुए.
(फोटो: http://www.nehrumemorial.nic.in)

पीएम के पौधारोपण के बाद इस इलाके में इतने पेड़ लगाए गए कि करीब 3166 एकड़ क्षेत्रफल में फैले जमीन के उस हिस्से ने कुछ ही सालों में जंगल का रूप ले लिया.

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