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500 साल बाद बाबर के मस्जिद बनाने के मामले की जांच करना मुश्किल: SC

पढ़िए- रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले में 15वें दिन की सुनवाई के दौरान क्या हुआ

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सुप्रीम कोर्ट ने गुरूवार को एक हिंदू संस्था की इस मांग को थोड़ी समस्या वाली बताया कि करीब 500 साल के बाद इस बात की न्यायिक तरीके से छानबीन की जाए कि क्या मुगल शासक बाबर ने अयोध्या में विवादित ढांचे को ‘अल्लाह’ को समर्पित किया था ताकि यह इस्लाम के तहत वैध मस्जिद बन सके.

‘अखिल भारतीय श्री राम जन्म भूमि पुनरुद्धार समिति’ के वकील ने चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ से कहा कि इलाहाबाद हाई कोर्ट ने यह कहकर गलती की कि वह इस मामले में नहीं जाएगा कि क्या बाबर ने बिना ‘शरिया’ ‘हदीस’ और अन्य इस्लामिक परंपराओं का पालन किये बिना मस्जिद का निर्माण कराया.

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हिंदू संगठन के वकील ने दलील में क्या कहा?

मामले में एक मुस्लिम पक्ष द्वारा दर्ज वाद में वादी हिंदू संगठन की ओर से वरिष्ठ वकील पी एन मिश्रा ने कहा कि बाबर जमीन का मालिक नहीं था और मस्जिद बनाने के लिए वैध तरीके से ‘वक्फ’ करने के लिहाज से अक्षम था, इन आरोपों पर फैसला करने के बजाय हाई कोर्ट ने कहा था कि चूंकि करीब 500 साल गुजर गये, वह इस मुद्दे को नहीं देखेगा जो ‘इतिहासकारों के लिए बहस’ का विषय हो सकता है.

मिश्रा ने राजनीतिक रूप से संवेदनशील रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद में 15वें दिन की सुनवाई के दौरान पीठ से कहा-

‘‘इस्लाम में बाबर जैसा निरंकुश शासक भी सबकुछ नहीं कर सकता था. उसे भी धर्म का पालन करना होता था.’’

हिंदू पक्ष की दलील पर कोर्ट ने क्या कहा?

पीठ ने कहा, ‘‘हाई कोर्ट ने कहा था कि बाबर को स्वच्छंद अधिकार थे और उसने कुछ किया था जिसकी समीक्षा नहीं की जा सकती. हाई कोर्ट ने कहा था कि हम इस सवाल को नहीं देख सकते कि बाबर ने जो किया था, वह ‘शरिया’ के खिलाफ था.’’

पीठ ने कहा कि इस्लामी कानूनों और परंपराओं के कथित उल्लंघन की बात करने के बजाय हाई कोर्ट ने कहा कि वह इस पहलू को देखेगी कि लोग इसे मस्जिद मानते हैं.

पीठ में जस्टिस एस ए बोबडे, जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस ए नजीर भी हैं.

पीठ ने कहा, ‘‘अगर हम बाबर द्वारा मस्जिद के तौर पर जमीन के इस्तेमाल की न्यायिक वैधता के बारे में पूछते हैं तो यह थोड़ी समस्या वाली बात है.’’

पीठ ने कहा कि मुसलमान दावा करते रहे हैं कि वे 400 साल से ज्यादा समय से नमाज अदा कर रहे हैं और हिंदू कहते हैं कि वे पिछले दो हजार साल से पूजा करते आ रहे हैं और दलील यह है कि अदालतों को इस बात का अध्ययन करना चाहिए कि क्या शासक का कृत्य अवैध है.

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मिश्रा ने कहा कि इस तरह के विवादों पर फैसला करने के लिए कोई धार्मिक फोरम नहीं है और अदालतें इस तरह के मुद्दों पर निर्णय करने से सीधे इनकार नहीं कर सकतीं और इस तरह के फैसले रहे हैं जो बताते हैं कि हिंदू और मुस्लिम कानूनों के आधार पर यह किया जा सकता है.

जस्टिस बोबडे ने कहा, ‘‘आप कह रहे हैं कि हाई कोर्ट को फैसला करना चाहिए था कि बाबर ने जो किया वह गलत था या सही.’’

इस पर वरिष्ठ वकील ने कहा, ‘‘अदालत कैसे कह सकती है कि वह निर्णय नहीं करेगी.’’ मामले का अध्ययन करीब 70 साल से अदालतों में किया जा रहा है.

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